अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि- स्वर्गीय जत्थेदार सरदार सुरिंदर सिंह अरोरा (उज्जैन निवासी भोग, 24/05/25).
संगत जी, इस नश्वर संसार की सबसे अटल और सत्य धारा है, जन्म और मृत्यु! जिस प्रकार प्रभु प्रत्येक आत्मा को एक देह के रूप में इस धरा धाम पर प्रकट करते हैं, उसी प्रकार एक नियत क्षण पर वह आत्मा उसी स्रोत की ओर लौट जाती है, जहां से उसका आरंभ हुआ था।
आज दिनांक 24 मई 2025. को हम सब संगत जन एक ऐसी महान आत्मा को श्रद्धा सहित अश्रुओं के साथ अंतिम प्रणाम अर्पित कर रहे हैं, जिन्होंने न केवल अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को गुरुवाणी के सच्चे अनुकरण में व्यतीत किया, बल्कि निष्काम सेवा को ही अपना धर्म, जीवन और तपस्या बना लिया।
स्वर्गीय जत्थेदार सुरिंदर सिंह अरोरा वीर जी, यह नाम केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग, एक विचार, एक जाज्वल्यमान सेवा परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है। आपने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ ही नहीं, वरन् समस्त भारतवर्ष के सिख समुदाय के बीच सेवा, समर्पण और सहजता की जो दिव्य ज्योति प्रज्वलित की, वह हमेशा पथ-पथ पर राह दिखाती रहेगी।
आपका जीवन स्वयं में एक पूर्ण ग्रंथ था, जहाँ हर पृष्ठ पर ‘कीरत’ की गाथा अंकित है, हर अध्याय में ‘गुरुवाणी’ की महिमा है और हर पंक्ति में निष्काम कर्म की चमक स्पष्ट दिखलाई पड़ती है। आपने सांसारिक जीवन के हर आयाम को साधारण रूप में जीते हुए भी, उसमें ईश्वरत्व की उपस्थिति को प्रत्यक्ष कर दिखाया।
आप न केवल एक सफल व्यवसायी थे, बल्कि उससे कहीं बढ़कर एक दृढ़ संकल्पित धर्मयोद्धा थे। आपने व्यवसाय की ऊँचाइयों को कभी भी स्वार्थ के बिंदु से नहीं देखा अपितु उसे सेवा का माध्यम बनाया। आप जिस भी क्षेत्र में कार्यरत रहे, वहाँ आपकी प्रखर प्रज्ञा, शुद्ध निष्ठा और निर्मल समर्पण की सुगंध अवश्य बिखरी।
विशेष रूप से गुरुद्वारा श्री गुरु नानक घाट, उज्जैन का भव्य निर्माण कार्य (उसारी) आपके तप, पुरुषार्थ और आस्था का भौतिक प्रतिरूप है। यह केवल एक भवन नहीं अपितु सेवा की चिरस्मरणीय समाधि है, जो हर उस संगत को प्रेरणा देती है, जो इस पावन स्थल पर शीश नवाती है।
आपका जीवन ऐसा दीपक था, जिसकी लौ कभी डगमगाई नहीं। आपने अपनी सेवाओं के माध्यम से आम संगत को संबल प्रदान किया, मार्गदर्शन दिया, और अनेकानेक को सांसारिक भटकावों से निकालकर गुरमत की राह पर अग्रसर किया।
आपकी आत्मीयता, आपकी करुणा, और आपकी सहृदयता, यह केवल गुण नहीं थे, अपितु आपके भीतर यह समस्त गुण एक सजीव ऊर्जा की भाँति बहते रहते थे। आपकी वाणी में ऐसी स्निग्धता थी जो संतप्त हृदय को सांत्वना देती थी; आपका व्यवहार जीवन को दिशा देने वाली शीतल वाणी बन जाता था।
आपकी सादगी, आपकी शांति, आपकी सेवा और आपकी समर्पित दृष्टि, इन सभी में ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की उस वाणी की सुगंध थी, जिसने समूचे मानवता को नाम जपो, कीरत करो, वंड़ छको के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। आपने न केवल इन गुरुबाणी मूल्यों का प्रचार – प्रसार किया अपितु उन्हें अपने जीवन में जिया, निभाया और समाज के सम्मुख जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया।
आपकी सेवाओं की यह पवित्र धारा अनवरत प्रवाहित रही, जैसे किसी शांत नदी की सतत ध्वनि, न मौन, न मुखर, परंतु सदा जागरूक, सदा प्रवाहमान।
“उज्जैन की धरती, जहां गुरुओं की सेवा को सौभाग्य माना जाता है, वहाँ सुरिंदर वीर जी के रुप में एक ऐसा रत्न जन्मा जिसने सेवा को केवल कर्म नहीं, वरन् अपना संपूर्ण जीवन बना लिया। स्वर्गीय जत्थेदार सुरिंदर सिंह अरोरा वीर जी ने उज्जैन की सिख संगत को आत्मा से अपनाया और परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने करुणामय नेतृत्व से आधार प्रदान किया।
आप उज्जैन की संगत के अत्यंत लाडले, अत्यंत आत्मीय और पूरे समाज की गौरवशाली पूँजी थे। आपके सरल किंतु प्रभावशाली व्यक्तित्व में सेवा की जो अद्भुत निष्ठा थी, वह विरलों में ही देखने को मिलती है। आपने अपने पारिवारिक व्यवसाय को शून्य से प्रारंभ कर, अथक परिश्रम, धैर्य और विवेक से अनंत ऊँचाइयों पर स्थापित किया परंतु उस ऊँचाई से आपने कभी अहंकार की ओर नहीं देखा; आप सदा धरती से जुड़े रहे, संगत में रमे रहे, सेवा में जुटे रहे।
आपका संपूर्ण जीवन एक ऐसी जलती लौ था, जो स्वयं तपती रही परंतु औरों को रोशनी देती रही। आपने कर्तव्यनिष्ठा को धर्म और धर्मनिष्ठा को कर्तव्य माना और जीवन के प्रत्येक मोड़ पर गुरमत मर्यादा को सिरमौर बनाकर जिया।आपके लिए सेवा न कोई औपचारिकता थी, न कोई प्रदर्शन; वह तो आंतरिक श्रद्धा की सहज धारा थी, जो आपके प्रत्येक कर्म से प्रकट होती थी।
आपने हमेशा दूसरों के दुखों को अपने सुखों से ऊपर रखा। दूसरों के आँसुओं को पोंछने में आपको आत्म संतोष की अनुभूति होती थी, और अपने दुखों को आप सदा मौन, संयम और प्रभु भक्ति से सहते रहे। यही गुण आपको एक सच्चे गुरमुख की परिभाषा में प्रतिष्ठित करते हैं।
भाई गुरदास जी की वाणी साक्षी है-
गुरमुख पर उपकारी विरला आइआ।
गुरमुख सुख पाइ आप गवाइआ।
गुरमुख साखी शबद सिख सुनाइआ।
गुरमुख शबद विचार सच कमाइआ।
सच रिदै मुहि सच सच सुहाइआ।
गुरमुख जनम सवार जगत तराइआ ॥
(वारा भाई गुरदास जी क्रमांक 19)
यह पंक्तियाँ जैसे आपके जीवन की ही झलक हैं, आपने अपने जीवन को केवल सँवारा ही नहीं, अपितु दूसरों के जीवन में भी उजास का दीपक प्रज्वलित किया। आप न केवल धर्म के वाहक थे, बल्कि संवेदनशीलता और करुणा के गूढ़ दूत भी थे।
आपका इस प्रकार अचानक चला जाना निःसंदेह उज्जैन के सिख समाज के लिए एक गंभीर क्षति, एक “क्षितिज का अस्तांचल” है। एक ऐसा क्षण है जब संगत मौन है, किंतु उनकी आँखें बोल रही हैं, आभार, प्रेम और असीम शोक से भरी हुई। इस मौन में भी आपकी स्मृतियाँ गूंज रही हैं, आपकी सेवाएं शब्द बनकर हवा में तैर रही हैं, और आपकी कर्मठता आने वाली पीढ़ियों के लिए पथ प्रदर्शक बन चुकी है।
“आपकी धर्मपत्नी अलका भाभी जी और पुत्रियाँ शीनू कौर, शिल्पा कौर, स्वाति कौर, आपके तप और सेवा के उसी वृक्ष की शाखाएँ हैं, जो अब समाज के साथ इस वियोग को सहन कर रही हैं। हम सभी संगत जन, पूरे मन और आत्मा से इस शोक की घड़ी में उनके साथ हैं, और वाहिगुरु से अरदास करते हैं कि वह उन्हें भाना मानने का बल, सहन की शक्ति और आध्यात्मिक साहस प्रदान करे।
सत्कार योग्य वीर थे, सेवा के सागर,
कर्मभूमि पर चलने वाले सच्चे पथ गामी।
जत्थेदार हमारे सुरिंदर वीर जी का जीवन,
“संगत के लिए समर्पण का अडिग गान अग्रगामी।
गुरु नानक घाट की भव्यता में आपकी दृष्टि समाई,
हर ईंट में आपके कर-कमलों की श्रमगाथा समाई।
जहाँ भटके मनों को मिली गुरमत की राह,
वहीं समर्पण की इस सेवा ने हर दुख को दी पनाह।
आपने दिए समाज को प्रखर विवेक के दीप,
उत्साह और सम्मान के जलाए अनेक स्नेह दीप।
गुरुवाणी के मूल्य बनें जिनके जीवन की मशाल,
आपने बँधी हर हृदय में भक्ति की विशाल माल।
वाहिगुरु की मेहर रही थी, सदा आपके सिर पर,
चढ़दी कला से सजा था, आपका हर सवेरा।
आपकी सेवाओं से रोशन है समाज का माथा,
हम नतमस्तक हैं, आपकी सेवा है युगों तक की अमर कथा।
वाहिगुरु जी का खालसा।
वाहिगुरु जी की फतेह॥


पहाड़ियों की पुकार