समर्पण और त्याग की मूर्ति: जगत् माता गुजरी जी

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समर्पण और त्याग की मूर्ति: जगत् माता गुजरी जी

ੴ सतिगुर प्रसादि॥

चलते-चलते. . . .

सफर-ए-शहादत

(टीम खोज-विचार की पहेल)

सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान॥

यदि किसी देश, धर्म या कौम के इतिहास को परिपेक्ष्य करना हो तो उसका आधार उस स्थान पर विकसित समाज पर निर्भर करता है और उस समाज का आधार होता है उस स्थान पर निवास करने वाले परिवार! परिवार का आधार परिवार के व्यक्तियों पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की धरोहर होती है बचपन में प्राप्त हुई मां की गोद! मां से प्राप्त संस्कारों से ही व्यक्ति एक उत्तम नागरिक में परिवर्तित होता है। बचपन में मां से प्राप्त संस्कार, भविष्य के संपूर्ण जीवन की रूपरेखा होते हैं। संसार की आम रिवायत है कि जब हम किसी आदर्श व्यक्ति से रुबरु होते हैं तो कहते है कि धन्य है, उन्हें जन्म देने वाली मां! विचार करने वाली बात यह है कि दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ को संपूर्णता का शिखर प्रदान करने वाली जगत् माता गुजरी जी कितनी महान और  होगी? इस महान और गौरवशाली इतिहास को लिखने के लिये शायद दुनिया के किसी भी लेखक की कलम की परिपक्वता इसे सोच नहीं सकती है।

बीबी गुजरी जी (जिन्हें सिख संगत अत्यंत सम्मान पूर्वक माता गुजरी जी कहकर संबोधित करती है), भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की सुपत्नी ‘गुरु के महल’ के रूप में सन् 1633 ईस्वी. में गुरु पातशाह जी के जीवन में आई थी और सन् 1705 ईस्वी. लगभग 72 वर्षों तक आप जी ने एक बहू, पत्नी, बहन, माता, चाची और दादी के रूप में गुरु घर की 5 पीढ़ियों को अपनी महान सेवाएं अर्पित कर, शहीदी प्राप्त की थी।

रूहानी शख्शियत की धनी, माता गुजर कौर जी का जन्म करतारपुर साहिब में गुरु घर के अनन्य भक्त भाई लालचंद जी के गृह में माता बिशन कौर की कोख से हुआ था। युवावस्था की दहलीज पर आप जी का परिणय बंधन (आनंद कारज) बाबा त्याग मल जी अर्थात् भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से 4 फरवरी सन् 1633 ईस्वी. में संपन्न हुआ था। आप जी का जीवन छठे गुरु पातशाह जी से लेकर 10 वें गुरु पातशाह जी एवं चार साहिबज़ादों के जीवन से आत्मिक रूप से संबंधित रहा है। विश्व में यह अनूठा उदाहरण है कि, आप जी ऐसी जगत् माता हुई है, जिसके पति शहीद, भाई शहीद, पुत्र शहीद, पौत्र शहीद और आप स्वयं भी शहीद! महत्वपूर्ण इतिहास यह भी है कि, आप जी ननद (बीबी वीरों जी जो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की इकलौती बहन थी, के दो पुत्र भी भंगानी के युद्ध में सन् 18 सितंबर 1688 ईस्वी. को शहीद)! सचमुच इस संसार में ना ऐसी नारी शक्ति पैदा हुई है और ना होगी!

सन् 1633 ईस्वी. में आप जी जब से छठे गुरु पातशाह जी की बहू बनकर आई तो गुरु घर में आप जी को बेटियों की तरह प्यार मिला और आप जी ने भी अपनी सेवा  सुश्रुषा और समर्पण से सभी का दिल जीत लिया था। आप भी मृदभाषी, मिलनसार और कोमल ह्रदय की गुरु चरणों में समर्पित सेवादारनी थी। सन् 1635 ईस्वी. में करतारपुर साहिब जी में छठे गुरु पातशाह जी का पैंदे ख़ान से भयानक युद्ध हुआ था तो उस तात्कालिक समय में अपने पति बाबा तेग बहादुर जी की तेग से दुश्मनों को झुझते हुये देखकर आप जी ने प्रोत्साहित (हल्लाशेरी) करते हुए अपने पति की हौसला अफजाई की थी। इस युद्ध के पश्चात ही छठे गुरु पातशाह जी ने बाबा त्याग मल को बाबा तेग बहादुर की उपाधि से सम्मानित किया था। इस युद्ध के पश्चात छठे गुरु पातशाह जी किरतपुर शहर में आकर बस गये थे, उस तात्कालिक समय में बाबा तेग बहादुर जी को बकाले नामक स्थान पर सिख धर्म का केंद्र स्थापित करने के लिये एवं भविष्य के कठिन समय की तैयारी के लिए भेज दिया गया था। इस स्थान पर निवास करते हुए एवं इस स्थान को सिख धर्म के प्रचार-प्रसार का मुख्य केन्द्र बनाकर दूर-दराज के इलाको में लगभग 25 वर्षों तक आप जी ने सिख धर्म का प्रचार-प्रसार करते हुये, एकांत प्रिय होकर, वैराग्य की मूर्ति बनकर, भक्ति करते हुए समय गुजारा ताकि भविष्य में धर्म की रक्षा और मिट्टी के स्वाभिमान के लिये, आप जी सृष्टि की चादर के रूप में स्वयं को परिपक्व कर सकें। इस कठिन समय में जगत् माता गुजर कौर जी ने एक परछाई की तरह अपने पति के उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु तन-मन-धन से गुरु घर में समर्पित होकर अपना जीवन व्यतीत करती रही थी। जहां बाबा तेग बहादुर जी अत्यंत सुज्ञ थे, वहीं माता नानकी जी (गुरु पातशाह जी की माता जी) एवं माता गुजरी जी अपनी जवाबदेही, आम स्त्रियों को सिख धर्म से जोड़कर निभा रही थी।

जब 7 वें ‘श्री गुरु हरि राय साहिब जी’ को गुरु गद्दी पर विराजमान किया गया तो बाबा तेग बहादुर जी एवं माता गुजरी जी ने आयु में बड़े होने के पश्चात भी गुरु पातशाह जी को नमन कर, अपना शीश झुका कर, प्राप्त सेवाओं को बखूबी निभा रहे थे। जब आप जी को ‘श्री गुरु हरि राय जी’ से प्राप्त जवाबदारी के कारण सिख धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और उड़ीसा जाना पड़ा तो इस प्रचार दौरे में माता नानकी जी और माता गुजरी जी लंबे समय तक आपके साथ सदैव साथ रही थी एवं इस प्रचार दौरे में एक समर्पित सेवादार की तरह अपनी सेवाएं अर्पित करती रही थी।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को जब गुरु गद्दी प्राप्त हुई तो गुरु गद्दी प्राप्त करने पश्चात आप जी अमृतसर और किरतपुर साहिब जी में आये थे ओर आप जी ने श्री आनंदपुर साहिब जी शहर को बसाया था एवं आप जी समय की नजाकत को देखते हुये, अपने परिवार को पटना साहिब में छोड़कर बंगाल और असम की यात्रा पर रवाना हो गये थे, उस समय में पटना शहर में सन् 1666 ईस्वी. में आप जी के गृह में साहिबजादा गोविंद राय जी का प्रकाश (आविर्भाव) हुआ था। इस माता गुजरी जी के प्रसव के कठिन समय में भी गुरु पातशाह जी मातृभूमि की एकता और अखंडता के लिए यात्रा कर रहे थे तो भी माता गुजरी जी ने संयमित होकर माता नानकी जी की ममतामयी ठंडी छांव और भाई कृपाल जी का आत्मिय सहारा स्वयं के शीश पर होने के कारण इस प्रसव के कठिन समय को भी सहजता से बिताया था और नवजात बाल गोविंद राय की सेवा-सुश्रुषा कर, अपनी मां होने का कर्तव्य निभाया था। उस समय में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ढ़ाका में थे, इस सौभाग्य जोडे़ ने अपने इकलौते पुत्र के जन्म की खुशी साथ रहकर नही मनाई थी अपितु हमारे बच्चों के भविष्य की खुशीयों के लिये महान त्याग किया था, पांच वर्षों के पश्चात गुरु पातशाह जी ने अपने इकलौते पुत्र का दीदार किया था। निश्चित ही गुरु पातशाह जी की पूर्व की यात्राएं धरती के भार को हटाने वाली यात्राएं साबित हुई थी। माता गुजर कौर जी अपने साहिबज़ादे बाल गोविंद राय की बहुपक्षीय शख्सियत और संस्कार, शिक्षा  दीक्षा के संबंध में अत्यंत सुचेत और सतर्क रहती थी, आज जी ने अपने साहिबज़ादे बाल गोविंद राय जी को इतना परिपक्व किया था कि वह छोटी उम्र में ही बड़े-बड़े कारनामे कर गए थे।

जब सन् 1673 ईस्वी. को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ शहादत देने हेतु दिल्ली को प्रस्थान कर रहे थे तो आप जी ने बड़ी संजीदगी से पीछे से परिवार को संभालने की जवाबदारी को परिवार की रीढ़ की हड्डी बनकर, स्वीकार किया एवं आप जी ने गुरु पातशाह जी को इस महान शहीदी के लिए प्रेरित भी किया, निश्चित जगत् माता गुजरी जी का जीवन विश्व की समस्त महिलाओं के लिए एक आदर्श उदाहरण है। जब भाई जैता जी ने कपड़े में लपेटे हुए गुरु पातशाह जी का शीश दशमेश पिता की गोद में रखा होगा तो उस समय उस सुहागन की अवस्था को समझने का प्रयास करें, जिसके पती का शीश आज पुत्र की गोद में समक्ष है, कितना अड़ोल जिगर है जगत माता तेरा? उपस्थित सभी संगत ने शीश को नमन किया और इस जगत माता ने अपने सुहाग के शीश के दर्शन अपने पुत्र की गोदी में किये तो भावनावश उपस्थित संगत को प्रणाम कर, वचन किये है सतगुरु! तेरा जीवन निभ गया है, अब कृपा करना की मेरा भी निभ जाये। विचार  मनन करने जैसा इतिहास है कि कैसी कठिन परिस्थितियां थी? पति शहीद हो गये, 9 वर्ष के साहिबज़ादे बाल गोविंद राय को गुरु गद्दी पर आसीन करना, गृह कलह के कारण धीरमल्ली और मिणीयों के घोर विरोध का सामना करना, उधर मुगल फ़ौज ख़ालसा राज का समूल नष्ट करना चाहती थी, नियुक्त किये हुए मसंदों के द्वारा ‘दसवंद’ (किरत कमाई का दसवां हिस्सा) देने में आनाकानी करना और सारे हिंदुस्तान में फैली सिखी की रक्षा करने की जवाबदारी, साथ ही ‘श्री गुरु गोविंद राय जी’ की शिक्षा  दीक्षा में भी पूर्ण योगदान देना और माता नानकी जी के समक्ष पुत्र के स्थान पर खड़ा होकर उन्हें धीरज देकर (अरदास) प्रार्थना करनी कि मेरे पति इस सांसारिक यात्रा को निभा गये है, बस्स मेरी भी यात्रा उस अकाल पुरख (प्रभु-परमेश्वर) के बहाने में निभ जाये. . . . .

विशेष ध्यान देने योग्य है कि, जब दशमेश पिता ने अप्रैल सन् 1699 ईस्वी. में खंडे-बाटे की पाहुल छका कर (अमृतपान की विधि) ख़ालसा सजाया और उस महा इकठ्ठ में 80 हजार खालसे शामिल हुए थे, उस समय में श्री आनंदपुर साहिब के आयोजन की सभी महत्वपूर्ण जवाबदेही माता गुजरी जी के कंधों पर थी साथ ही ख़ालसा सजाने की प्रक्रिया के पूर्व लगभग 5 वर्षों तक दशमेश पिता जी ने माता गुजरी से गहन विचार मंथन किया था अर्थात् ख़ालसा सजाने की अभिभूत प्रक्रिया में माता गुजर कौर जी का महत्वपूर्ण मार्गदर्शन था। निश्चित ही आप जी बेहतरिन सलाहकार और रणनीतिकार थी।

जब समय ने करवट बदली तो दिसंबर (पोह) महीने की ठंडी पिछली रात को अचानक श्री आनंदपुर साहिब जी का किला छोड़ना पड़ा और बाढ़ के तूफानी जल प्रवाह में सिरसा नदी को पार करते समय अपने पारिवारिक सदस्यों से बिछड़ना अत्यंत दुख दायक था, जीवन के हर अगले क़दम पर कष्टों के पहाड़ खड़े थे, ऐसे कठिन समय में भी आप जी ने अडिग और अडोल रहकर, दृढ़ता से छोटे साहिबज़ादों को गुरु इतिहास और गुरुवाणी को सुनाकर इतना परिपक्व कर दिया था कि छोटे साहिबज़ादे हंसते-हंसते शहादत का जाम पी गये थे।

जब ठंडे बुर्ज पर माता गुजरी जी और छोटे साहबजादे को क़ैद किया गया था, कैसा भयानक समय था? जब दशमेश पिता जी माछी वाडे़ के ग़िरफ्तारलों में ज़मीन पर पत्थर की ओट लगाकर विश्राम कर रहे थे तो ठंडे बुर्ज की ज़मीन पर बैठकर जगत् माता अपने जिगर के टुकड़े को गुरु घर की शहादतों परंपराओं से परिपक्व करवा रही थी, निश्चित ही वह साहिबज़ादों के संस्कारों से बेफिक्र थी परंतु उन्होंने अपनी जवाबदारी से मुंह नहीं मोड़ा था। उस वक्त का सोचो कि जब इकलौते बेटे बाल गोविंद राय को पास खड़ा कर, एक सुहागन के रूप में उन्होंने अपने पति (सुहाग) ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को शहीदी के लिए प्रोत्साहित किया था और आज 82 वर्ष की दादी मां ठंडे बुर्ज पर अपने दोनों पौत्र (साहिबज़ादों) को शहीदी के लिए कलगी सजा कर, उस अकाल पुरख (प्रभु-परमेश्वर) का शुकराना अदा कर, विदाई दे रही थी। वह जानती थी कि पती पुन: नही आये और इन पोतों ने भी पुन: मुड़कर नहीं आना है, आओ उस जगत् माता के अंतरमन की स्थिति का पूर्वावलोकन करें तो ज्ञात होता है कि इन महान शहीदियों ने हिंदुस्तान की गुलामी की जंजीरों को काट के रख दिया था। सच जानना. . . . . हिंदुस्तान की तवारिख में यह इतिहास गवाही भरता है कि, है जगत् माता गुजरी जी! तेरी कुर्बानियों का इस देश की मिट्टी और ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ कैसे क़र्ज चुकाएगा? छोटे साहिबज़ादों की अडिग और अडोल शहीदी ने संसार के अंतरमन को झंझावात कर दिया और इस खबर को पाकर भी उस जगत् माता गुजरी जी ने साहिबज़ादों द्वारा निभाई हुई शहादत का अपने विशाल हृदय से शुकराना अदा किया साथ ही इस जगत् माता ने स्वयं भी ‘शहादत’ प्राप्त कर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के प्रति अपने फ़र्ज को निभा गई थी। ऐसी महान जगत् माता के लिये ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का फरमान है—

धनु जननी जिनि जाइआ धंनु पिता परधानु॥

सतगुरु सेवि सुखु पाइआ विचहु गइआ गुमानु॥

   (अंग क्रमांक 32)

निश्चित ही जगत् माता गुजरी जी का 72 वर्षों का गुरु घर में व्यतीत जीवन संपूर्ण विश्व की बहुएं, बेटियां, बहनें, पत्नियां, माएं और दादीयों के लिये एक सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।

जगत् माता गुजरी जी को सादर नमन!

नोट 1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है एवं लेखों में प्रकाशित चित्र काल्पनिक है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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अमर शहीद भाई मोतीराम जी मेहरा

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