प्रसंग क्रमांक 11 : श्री गुरु हर राय साहिब जी की गुरता गद्दी का इतिहास ।

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सन् 1634 ई. में सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ परिवार सहित करतारपुर से किरतपुर स्थलांतरित हो गए थे। सन् 1638 ई. तक गुरु जी के पांच गुरु पुत्रों में से तीन गुरु पुत्र अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गए थे।

 वर्तमान समय में ‘बाबा सूरजमल जी’ और भावी गुरु ‘श्री गुरु  तेग बहादुर साहिब जी’ ही सांसारिक जीवन यात्रा  का आनंद मना रहे थे। गुरु पुत्र सूरजमल जी ने मसंदों (स्वयं के कट्टर अनुयायी) के बहकावे में आकर एक बार इस बात का विवाद भी खड़ा किया था कि भविष्य में ‘गुरु गद्दी’ का उत्तराधिकारी कौन होगा?  उस समय ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’  ने जो उत्तर दिया था उसे इतिहास में इस तरह अंकित किया गया है–

इह सेवक की चीज है कोइ ना इरख पाये।

कर सेवा सोइ लहै श्री गुरु हरख धराइ।।

अर्थात् किसी को भी ‘गुरु गद्दी’ पर हक जताने की कोई आवश्यकता नहीं है।  जिस पर भी ‘अकाल पुरख’ की कृपा होगी उसे ही ‘गुरु गद्दी’ का उत्तराधिकारी घोषित किया जाएगा। यह कृपा केवल ‘अकाल पुरख’ जी ही कर सकते हैं।

 सन् 1638 ई. में ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के बड़े गुरु पुत्र ‘बाबा गुरदित्ता  जी’ अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गए थे। ‘बाबा गुरदित्ता जी’ के धीरमल  और भावी  ‘श्री गुरु हर राय साहिब  जी’ नामक दो पुत्र थे। इस वर्तमान समय में धीरमल जी करतारपुर में निवास कर रहे थे एवं श्री आदि ग्रंथ जी की बीड़ (ग्रंथ साहिब) श्री धीरमल जी के अधीन थी। इस कारण से धीरमल जी स्वयं को ‘गुरु गद्दी’ के उत्तराधिकारी मानते थे।

 उस समय की परिस्थितियों के अनुसार ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ का भावी  ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ से अत्यंत स्नेह था। भावी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ भी अपने दादा ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के नक्शे कदमों पर चलकर जीवन सफल कर रहे थे।

 दूसरी और  किरतपुर में  ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के कर-कमलों से सुंदर बगीचे को लगाया गया था। नितनेम की हाजिरी एवं संगत से मुलाकात के पश्चात गुरु जी इस सुंदर बाग में टहलने जाते थे।

गुरु जी के साथ ही उनके पौत्र भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ चहलकदमी करते थे। एक दिन भावी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी के लंबे चोले  के कारण बाग का एक फूल टूट गया था। जब ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने जानकारी लेते हुए पूछा कि इस फूल को तोड़कर ‘कुदरत का विनाश’ किसने किया? तो उस समय ज्ञात हुआ कि फूल भावी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के लंबे चोले के कारण पेड़ की टहनी के अटकने से टूट गया था।

  ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने उस समय अपने पौत्र भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को मृदु भाषा में स्नेहित होकर समझाया था कि पुत्तर जी जब आप बड़े चोला धारण करते हो तो उसे संभालकर आगे कदम रखना चाहिए।  इस वाक्य का भावार्थ था कि जब जीवन में बड़ी जवाबदारी को निभाना हो तो दामन को संभालकर, सुरक्षित होकर कदम बढ़ाना चाहिए। इस वचन को भावी गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने शेष जीवन एक मंत्र के रूप में माना और वह हमेशा अपने चोले को संभालकर, सुरक्षित कर चलते थे। किरतपुर की धरती पर ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने एक  दिन भरे दीवान में फरमान जारी किया था। जिसे इतिहास में इस तरह अंकित किया गया है–

श्री गुरु हरि गोविंद आगिया कीन, पुरनमासी महि दिन तीन।

तिस दिन होइ है दरस हमारा इतना करो मंगल कारा॥

अर्थात्‌ पुरनमासी (पूर्णिमा) को अभी तीन दिवस शेष है और आप सभी संगत  उस दिन मित्र परिवार और रिश्तेदारों के साथ दीवान में आमंत्रित हैं।

 तीन दिनों पश्चात पूर्णिमा के दिवस सजे हुए बड़े पंडाल में विशाल जनसमूह (संगत/श्रध्दालुओं) के समक्ष ‘बाबा बुड्डा जी’ के ज्येष्ट पुत्र भाई ‘भाना जी’ के कर-कमलों से ‘गुरता गद्दी’ की समस्त रस्मों को पूर्ण कर ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को ‘गुरु गद्दी’ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया था। उस समय ‘श्री गुरु  हरगोविंद साहिब जी’ ने जिन वचनों को उद्गारित  किया था; उन वचनों को इतिहास में इस तरह अंकित किया गया है–

पुन सभ को,  गुरु कही सुनाइ मम सति अबि जोन हरि राये॥

अर्थात्‌ आज के पश्चात ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की ज्योत ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ में समाहित हो चुकी है। उपस्थित  संगत को बहुत बधाइयां! आज के पश्चात ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’  सिख धर्म के गुरु होंगे और ‘श्री गुरु हर गोविंद साहिब जी’ स्वयं प्रथम ‘गुरु गद्दी’ के समक्ष नतमस्तक हुए थे। भाई ‘भाना जी’ ने ‘गुरता गद्दी’ के तिलक को ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के कपाल पर लगाया था।

 गुरु पुत्रों में से एक भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने 14 वर्ष की आयु के ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ जो कि रिश्ते में आपके भतीजे लगते थे और आप जी से आयु में 10 वर्ष छोटे थे। भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जी ने स्वयं आगे होकर शीश झुकाकर नतमस्तक की मुद्रा में अभिवादन किया था। उपस्थित सभी संगत ने भी नतमस्तक होकर गुरु जी का अभिवादन किया था। इस समय ‘माता नानकी जी’ ने ‘श्री गुरु हर गोविंद साहिब जी’ को निवेदन किया था कि पातशाह जी वर्तमान समय से करीब 24 से 25 वर्षों पूर्व आपने वचन किए थे कि भावी गुरु ‘श्री गुरु  तेग बहादुर साहिब जी’  कोई साधारण बालक नहीं है। भविष्य में यह बालक ‘गुरु गद्दी’ के उत्तराधिकारी हो सकते हैं परंतु सच्चे पातशाह जी आपकी यहां महिमा समझ में नहीं आई। ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने अपनी सौभाग्यवती पत्नी को वचन स्वरूप जो उत्तर दिया उसे इतिहास में इस तरह से अंकित किया गया है–

श्री गुरु कहि तुम चित तज समां पाइ  तुम आइ।

तुम सुत नंदन अमित बल सभ जग करै सहाइ॥

(उपरोक्त वाणी गुरु बिलास पातशाही 6 वीं में अंकित है।)

 आप जी ने भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के भविष्य के संबंध में उपरोक्त वचन उद्गारित किए थे। इस प्रकार से ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ की ‘गुरता गद्दी’ का कार्यक्रम संपन्न हुआ था।

प्रसंग क्रमांक 12 : गुरु श्री हरगोविंद साहिब जी के ज्योति–ज्योत समाने का इतिहास

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