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प्रसंग क्रमांक 23 : धीरमल के द्वारा श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी पर हुए आक्रमण का इतिहास।

भाई मक्खन शाह लुबाना दिल्ली से 8 अक्टूबर सन् 1664 ई. को ‘बाबा बकाले’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। यहां पर पहुंचने पर ज्ञात हुआ था कि ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ के अंतिम वचन ‘बाबा बकाले’ के अनुसार इस स्थान पर कई झूठे गुरु गद्दी लगाकर आसीन हैं और स्वयं को आप ही 9वें […]

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प्रसंग क्रमांक 22 : भाई मक्खन शाह लुबाना द्वारा बाबा-बकाला नामक स्थान पर सच्चे गुरु की खोज का इतिहास ।

विगत प्रसंग के अनुसार जिस समय मक्खन शाह लुबाना का जहाजी बेड़ा डूब रहा था तो उसने सच्चे दिल से ‘अरदास’ की थी जिसे महिमा प्रकाश ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है– करचित इकागर जप को पडा़। पुनि सतिगुरु जी का कीआ धिआन मन मीटे भरम गुरि लोह पछान। (महिमा प्रकाश साखी

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प्रसंग क्रमांक 21: भाई मक्खन शाह लुबाना का इतिहास|

सन् 1340 ई. में एक राजा था। जिसका नाम राजा धज था। राजा धज का बेटा कोधज था, कोधज का बेटा केशव था, केशव का बेटा चाड्डा था,चाड्डा का बेटा थिड्डा था, थिड्ड़ा का बेटा मौला था, मौला का बेटा मौता था’ मौता का बेटा बोहरू था और बोहरू का बेटा ‘सावन नायक’ था। ‘सावन

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प्रसंग क्रमांक 20 : श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी की गुरता गद्दी का इतिहास।

विगत प्रसंगों के इतिहास अनुसार ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ राजा जयचंद के निमंत्रण पर दिल्ली पहुंचकर दिल्ली में चेचक से पीड़ित रोगियों की सेवा-सुश्रुषा कर आप जी ने उनका इलाज भी किया था। आम जन समुदाय को दर्शन-दीदार देकर आप जी आम समुदाय के दुखों को भी दूर कर रहे थे। जब बादशाह औरंगजेब

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प्रसंग क्रमांक 19 : गुरु श्री हरकृष्ण साहिब जी का ज्योति-ज्योत समाने का इतिहास।

सन् 1664 ई. में जो दिल्ली में भयानक चेचक (चिकन पॉक्स)  नामक रोग का संक्रमण हुआ था तो उस समय ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ ने दिल्ली में निवास करते हुए स्वयं के दर्शन-दीदार देकर चेचक के रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया था। स्वयं के अवासिय बंगले में गुरु जी ने अपने कर-कमलों से निर्मल

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प्रसंग क्रमांक 18 : श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी द्वारा दिल्ली में अर्पित कि गई सेवाओं का इतिहास।

 ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ दिल्ली में राजा जयचंद के बंगले में निवास करते हुए स्थानीय संगत के दर्शन-दीदार कर रहे थे। सन् 1664 ई. में दिल्ली में अचानक से चेचक (चिकन पॉक्स) नामक संक्रमण की बीमारी का प्रादुर्भाव हो गया था। इस संक्रमण से लगभग पूरी दिल्ली के लोग संक्रमित हो गए थे। दिल्ली

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प्रसंग क्रमांक 17 : श्री गुरु हर राय साहिब जी का ज्योति-ज्योत समाना और श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी को गुरता गद्दी प्रदान करने का इतिहास।

सन् 1661 ई. में जब सिख धर्म के सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’  का अंतिम समय निकट आया तो आप जी ने गुरु पुत्र ‘श्री हरकृष्ण साहिब जी’  को गुरु गद्दी पर विराजमान करने का निर्णय लिया था। अमृतवेले (ब्रह्म मुहूर्त) के समय ‘आसा जी की वार’ के कीर्तन के पश्चात भरे

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प्रसंग क्रमांक 16 : गुरु पुत्र राम राय की औरंगजेब से दिल्ली में की हुई मुलाकात का इतिहास।

प्रसंग क्रमांक 15 तक के इतिहास से स्पष्ट है कि शाहजहां जिसका गुरु घर से वैर था और हमेशा अपनी सैन्य शक्ति से गुरु घर पर लगातार आक्रमण किया  करता था परंतु जब शाहजहां का पुत्र दारा शिकोह दुर्गम रोगों से पीड़ित था और पूरे भारत में उसका कहीं इलाज संभव नहीं था तो उसने 

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प्रसंग क्रमांक 15 : कीरतपुर में निवास करते हुये श्री गुरु हर राय साहिब जी का इतिहास।

सिख धर्म के सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने अपने कार्यकाल में  किरतपुर में निवास करते हुए स्वयं के कर-कमलों से 52 सुंदर बगीचों का निर्माण करवाया था। इन सुंदर बगीचों में स्वयं के हाथों से पेड़ों को लगाया गया था। विशेष  रूप से इन 52 बगीचों में दुर्लभ जड़ी-बूटियों का रोपण

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प्रसंग क्रमांक 14 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का बाबा-बकाला नामक स्थान पर निवास करते हुये आप जी की दिनचर्या से संबंधित इतिहास ।

भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’, ‘माता गुजर कौर जी’ और ‘माता नानकी जी’ ने ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर ‘भाई मेहरा जी’ के निवास को अपना स्थाई निवास बनाया था। कारण ‘भाई मेहरा जी’ को ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के दिये हुए वचनों के अनुसार गुरु परिवार ने इस स्थान को अपने

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