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प्रसंग क्रमांक 13 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का बाबा बकाला नामक स्थान पर निवास करते हुये जीवन यात्रा का इतिहास।

बटाला शहर का पुरातन नाम ‘बकन’ था। फारसी भाषा के शब्द ‘बकन’ का भावार्थ होता है कि वो स्थान जहां पर हिरण घास चरते हो। इस स्थान पर एक हरा-भरा टीला था। इस टीले पर हिरण झुंडों में चरने आते थे। इस ‘बकन’ नामक स्थान को कालांतर में ‘बकनवाड़ा’ नामक स्थान से भी संबोधित किया […]

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प्रसंग क्रमांक 12 : श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी के ज्योति-ज्योत समाने का इतिहास।

सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने ‘गुरता गद्दी’ की महत्वपूर्ण जवाबदारी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को सौंपने के पश्चात आप जी ने अपने ‘सचखंड गमन’ की पूर्व तैयारी आरंभ कर दी थी और दीवान में आप जी ने गुरुवाणी के द्वारा उपस्थित संगत को उपदेशित किया था। आप

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प्रसंग क्रमांक 11 : श्री गुरु हर राय साहिब जी की गुरता गद्दी का इतिहास ।

सन् 1634 ई. में सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ परिवार सहित करतारपुर से किरतपुर स्थलांतरित हो गए थे। सन् 1638 ई. तक गुरु जी के पांच गुरु पुत्रों में से तीन गुरु पुत्र अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गए थे।  वर्तमान समय में ‘बाबा सूरजमल जी’ और भावी गुरु ‘श्री गुरु 

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प्रसंग क्रमांक 10 : श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी का कीरतपुर में निवास करते हुये आगामी जीवन के दस वर्षों का इतिहास|

करतारपुर का युद्ध समाप्त होने के तुरंत पश्चात ‘श्री गुरु हर गोविंद साहिब जी’ ने उस समय की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेकर करतारपुर से किरतपुर परिवार के साथ स्थालांतरित हो गए थे। किरतपुर में स्थानांतरित होकर निवास करने के पूर्व गुरु पुत्र ‘बाबा गुरदित्ता जी’ को इस स्थान पर भेजकर ‘मोहड़ी गड्ड’ कर के 

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प्रसंग क्रमांक 9 :करतार पुर के युद्ध में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के द्वारा प्रदर्शित अद्भुत युद्ध कौशल का इतिहास।

‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने अपने जीवन काल में चार युद्ध किए थे। प्रथम युद्ध को इतिहास में ‘अमृतसर’ के युद्ध से जाना जाता है। इस युद्ध के पूर्व बीबी बीरों के ‘परिणय बंधन’ को आयोजित किया गया था। इस परिणय बंधन के अवसर पर ही युद्ध प्रारंभ हो गया था। उस समय भावी

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प्रसंग क्रमांक 8 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के परिणय बंधन का इतिहास।

सन् 1593-94 ई. के अंतर्गत सिख धर्म के पांचवे गुरु ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ ने टाहली (शीशम) के पेड़ का एक मजबूत खूंटा (थंम) को गाड़ के स्वयं के कर-कमलों से करतारपुर नगर की नींव को रखा था। इस नवनिर्मित नगर में निवास हेतु नवीन भवनों का निर्माण किया गया था। जिस स्थान

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प्रसंग क्रमांक 7 : वैराग्य से अभिभूत श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी की विस्मय बोध युक्त जीवन यात्रा का इतिहास ।

भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ से आयु में दो वर्ष बड़े भ्राता का अचानक अकाल चलाना (निधन) कर गये थे। इस आकस्मिक घटित घटना का आपके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था। सन् 1628 ई. में सिक्ख  धर्म के पांचवे गुरु ‘श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी’ के ‘महल’ (सौभाग्यवती शब्द को गुरुमुखी

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प्रसंग क्रमांक ६ :गुरु श्री तेग बहादर साहिब जी के बडे़ भ्राता बाबा अटल जी की जीवन यात्रा का इतिहास।

‘बाबा अटल जी’ का जन्म सन् 1621 ई. में ‘माता नानकी जी’ के कोख से हुआ था। आप जी आयु में भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से दो वर्ष बड़े थे। भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का जन्म भी ‘माता नानकी जी’ की कोख से ही हुआ था अर्थात

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प्रसंग क्रमांक 5 : गुरु श्री तेग बहादुर साहिब जी द्वारा ग्रहण की गई उच्च शिक्षाओं का इतिहास ।

भावी ‘श्री गुरु तेग बहादुर जी’ की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा के लिए आपको दरबार साहिब के प्रथम हेड ग्रंथी ‘बाबा बुड्ढा जी’ के पास रमदास स्थित विद्यालय में भेजा गया था। इस स्थान पर ही ‘बाबा बुड्ढा जी’ ने सिख धर्म के पहले ‘श्री गुरु नानक देव जी’ से पांचवें  ‘श्री गुरु अर्जुन देव जी’ के

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प्रसंग क्रमांक 4 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी द्वारा ग्रहण की शिक्षाओं का इतिहास।

सिख धर्म में धार्मिक शिक्षाओं का अत्यंत महत्व है। यदि हम सिख धर्म के प्रथम गुरु ‘श्री गुरु नानक साहिब जी’ के समय से इतिहास का अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है कि उस समय पाठशालाओं और मदरसों में बच्चों को शिक्षित किया जाता था। ‘श्री गुरु नानक साहिब जी’ ने पाठशाला में शिक्षा ग्रहण

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