Ranjeet Singh

प्रसंग क्रमांक 17 : श्री गुरु हर राय साहिब जी का ज्योति-ज्योत समाना और श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी को गुरता गद्दी प्रदान करने का इतिहास।

सन् 1661 ई. में जब सिख धर्म के सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’  का अंतिम समय निकट आया तो आप जी ने गुरु पुत्र ‘श्री हरकृष्ण साहिब जी’  को गुरु गद्दी पर विराजमान करने का निर्णय लिया था। अमृतवेले (ब्रह्म मुहूर्त) के समय ‘आसा जी की वार’ के कीर्तन के पश्चात भरे […]

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प्रसंग क्रमांक 16 : गुरु पुत्र राम राय की औरंगजेब से दिल्ली में की हुई मुलाकात का इतिहास।

प्रसंग क्रमांक 15 तक के इतिहास से स्पष्ट है कि शाहजहां जिसका गुरु घर से वैर था और हमेशा अपनी सैन्य शक्ति से गुरु घर पर लगातार आक्रमण किया  करता था परंतु जब शाहजहां का पुत्र दारा शिकोह दुर्गम रोगों से पीड़ित था और पूरे भारत में उसका कहीं इलाज संभव नहीं था तो उसने 

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प्रसंग क्रमांक 15 : कीरतपुर में निवास करते हुये श्री गुरु हर राय साहिब जी का इतिहास।

सिख धर्म के सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ ने अपने कार्यकाल में  किरतपुर में निवास करते हुए स्वयं के कर-कमलों से 52 सुंदर बगीचों का निर्माण करवाया था। इन सुंदर बगीचों में स्वयं के हाथों से पेड़ों को लगाया गया था। विशेष  रूप से इन 52 बगीचों में दुर्लभ जड़ी-बूटियों का रोपण

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प्रसंग क्रमांक 14 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का बाबा-बकाला नामक स्थान पर निवास करते हुये आप जी की दिनचर्या से संबंधित इतिहास ।

भावी गुरु ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’, ‘माता गुजर कौर जी’ और ‘माता नानकी जी’ ने ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान पर ‘भाई मेहरा जी’ के निवास को अपना स्थाई निवास बनाया था। कारण ‘भाई मेहरा जी’ को ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के दिये हुए वचनों के अनुसार गुरु परिवार ने इस स्थान को अपने

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प्रसंग क्रमांक 13 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी का बाबा बकाला नामक स्थान पर निवास करते हुये जीवन यात्रा का इतिहास।

बटाला शहर का पुरातन नाम ‘बकन’ था। फारसी भाषा के शब्द ‘बकन’ का भावार्थ होता है कि वो स्थान जहां पर हिरण घास चरते हो। इस स्थान पर एक हरा-भरा टीला था। इस टीले पर हिरण झुंडों में चरने आते थे। इस ‘बकन’ नामक स्थान को कालांतर में ‘बकनवाड़ा’ नामक स्थान से भी संबोधित किया

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प्रसंग क्रमांक 12 : श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी के ज्योति-ज्योत समाने का इतिहास।

सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने ‘गुरता गद्दी’ की महत्वपूर्ण जवाबदारी ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ को सौंपने के पश्चात आप जी ने अपने ‘सचखंड गमन’ की पूर्व तैयारी आरंभ कर दी थी और दीवान में आप जी ने गुरुवाणी के द्वारा उपस्थित संगत को उपदेशित किया था। आप

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प्रसंग क्रमांक 11 : श्री गुरु हर राय साहिब जी की गुरता गद्दी का इतिहास ।

सन् 1634 ई. में सिख धर्म के छठे गुरु ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ परिवार सहित करतारपुर से किरतपुर स्थलांतरित हो गए थे। सन् 1638 ई. तक गुरु जी के पांच गुरु पुत्रों में से तीन गुरु पुत्र अकाल चलाना (स्वर्गवास) कर गए थे।  वर्तमान समय में ‘बाबा सूरजमल जी’ और भावी गुरु ‘श्री गुरु 

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प्रसंग क्रमांक 10 : श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी का कीरतपुर में निवास करते हुये आगामी जीवन के दस वर्षों का इतिहास|

करतारपुर का युद्ध समाप्त होने के तुरंत पश्चात ‘श्री गुरु हर गोविंद साहिब जी’ ने उस समय की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेकर करतारपुर से किरतपुर परिवार के साथ स्थालांतरित हो गए थे। किरतपुर में स्थानांतरित होकर निवास करने के पूर्व गुरु पुत्र ‘बाबा गुरदित्ता जी’ को इस स्थान पर भेजकर ‘मोहड़ी गड्ड’ कर के 

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प्रसंग क्रमांक 9 :करतार पुर के युद्ध में श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के द्वारा प्रदर्शित अद्भुत युद्ध कौशल का इतिहास।

‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने अपने जीवन काल में चार युद्ध किए थे। प्रथम युद्ध को इतिहास में ‘अमृतसर’ के युद्ध से जाना जाता है। इस युद्ध के पूर्व बीबी बीरों के ‘परिणय बंधन’ को आयोजित किया गया था। इस परिणय बंधन के अवसर पर ही युद्ध प्रारंभ हो गया था। उस समय भावी

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प्रसंग क्रमांक 8 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के परिणय बंधन का इतिहास।

सन् 1593-94 ई. के अंतर्गत सिख धर्म के पांचवे गुरु ‘श्री गुरु अर्जुन देव साहिब जी’ ने टाहली (शीशम) के पेड़ का एक मजबूत खूंटा (थंम) को गाड़ के स्वयं के कर-कमलों से करतारपुर नगर की नींव को रखा था। इस नवनिर्मित नगर में निवास हेतु नवीन भवनों का निर्माण किया गया था। जिस स्थान

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