Ranjeet Singh

प्रसंग क्रमांक 27 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की जीवन यात्रा से संबंधित ग्राम वल्ले का इतिहास।

22 नवंबर सन् 1664 ई. को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अमृतसर पहुंचे थे। आप जी का दरबार साहिब में प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया था। आप जी ‘दरबार साहिब के बाहर बने हुए थडे़ पर विराजमान हुए थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा ‘थडा साहिब’ स्थित है। इस स्थान से प्रस्थान […]

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प्रसंग क्रमांक 26 : श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की जीवन यात्रा से संबंधित माता हरो जी का इतिहास।

22 नवंबर सन् 1664 ई. को गुरु जी अपने पूरे परिवार को और काफिले के साथ ‘बाबा बकाले’  से प्रस्थान कर के ग्राम कालेके, तसरिका और लेहल से मार्गस्थ होकर शाम को दरबार साहिब अमृतसर में पहुंचे थे।  दरबार साहिब में हरि जी के मसंदों के द्वारा गुरु जी का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया था।

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प्रसंग क्रमांक 25 : श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी का दरबार साहिब में प्रवेश के प्रतिबंध का इतिहास।

22 नवंबर सन् 1664 ई. को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए ‘बाबा-बकाला’ नामक स्थान से प्रस्थान कर गए थे। इस यात्रा में आप जी अपने काफिले के साथ ग्राम ‘कालेके’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। आप जी इस स्थान से प्रस्थान करते हुए ग्राम ‘तसरिका’ नामक स्थान पर पहुंचे

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प्रसंग क्रमांक 24: गुरता गद्दी के पश्चात श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी का प्रथम अमृतसर प्रयाण का इतिहास।

11 अगस्त सन् 1664 ई. के दिवस ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को गुरता गद्दी का तिलक सुशोभित किया गया था। दो महीने पश्चात 9 अक्टूबर सन् 1664 ई. के दिवस भाई मक्खन शाह लुबाना के द्वारा सच्चे गुरु की खोज के पश्चात गुरु लादो रे! गुरु लादो रे! ऐसी घोषणा दी गई थी।

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प्रसंग क्रमांक 23 : धीरमल के द्वारा श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी पर हुए आक्रमण का इतिहास।

भाई मक्खन शाह लुबाना दिल्ली से 8 अक्टूबर सन् 1664 ई. को ‘बाबा बकाले’ नामक स्थान पर पहुंचे थे। यहां पर पहुंचने पर ज्ञात हुआ था कि ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ के अंतिम वचन ‘बाबा बकाले’ के अनुसार इस स्थान पर कई झूठे गुरु गद्दी लगाकर आसीन हैं और स्वयं को आप ही 9वें

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प्रसंग क्रमांक 22 : भाई मक्खन शाह लुबाना द्वारा बाबा-बकाला नामक स्थान पर सच्चे गुरु की खोज का इतिहास ।

विगत प्रसंग के अनुसार जिस समय मक्खन शाह लुबाना का जहाजी बेड़ा डूब रहा था तो उसने सच्चे दिल से ‘अरदास’ की थी जिसे महिमा प्रकाश ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है– करचित इकागर जप को पडा़। पुनि सतिगुरु जी का कीआ धिआन मन मीटे भरम गुरि लोह पछान। (महिमा प्रकाश साखी

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प्रसंग क्रमांक 21: भाई मक्खन शाह लुबाना का इतिहास|

सन् 1340 ई. में एक राजा था। जिसका नाम राजा धज था। राजा धज का बेटा कोधज था, कोधज का बेटा केशव था, केशव का बेटा चाड्डा था,चाड्डा का बेटा थिड्डा था, थिड्ड़ा का बेटा मौला था, मौला का बेटा मौता था’ मौता का बेटा बोहरू था और बोहरू का बेटा ‘सावन नायक’ था। ‘सावन

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प्रसंग क्रमांक 20 : श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी की गुरता गद्दी का इतिहास।

विगत प्रसंगों के इतिहास अनुसार ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ राजा जयचंद के निमंत्रण पर दिल्ली पहुंचकर दिल्ली में चेचक से पीड़ित रोगियों की सेवा-सुश्रुषा कर आप जी ने उनका इलाज भी किया था। आम जन समुदाय को दर्शन-दीदार देकर आप जी आम समुदाय के दुखों को भी दूर कर रहे थे। जब बादशाह औरंगजेब

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प्रसंग क्रमांक 19 : गुरु श्री हरकृष्ण साहिब जी का ज्योति-ज्योत समाने का इतिहास।

सन् 1664 ई. में जो दिल्ली में भयानक चेचक (चिकन पॉक्स)  नामक रोग का संक्रमण हुआ था तो उस समय ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ ने दिल्ली में निवास करते हुए स्वयं के दर्शन-दीदार देकर चेचक के रोगियों का सफलतापूर्वक इलाज किया था। स्वयं के अवासिय बंगले में गुरु जी ने अपने कर-कमलों से निर्मल

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प्रसंग क्रमांक 18 : श्री गुरु हर कृष्ण साहिब जी द्वारा दिल्ली में अर्पित कि गई सेवाओं का इतिहास।

 ‘श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी’ दिल्ली में राजा जयचंद के बंगले में निवास करते हुए स्थानीय संगत के दर्शन-दीदार कर रहे थे। सन् 1664 ई. में दिल्ली में अचानक से चेचक (चिकन पॉक्स) नामक संक्रमण की बीमारी का प्रादुर्भाव हो गया था। इस संक्रमण से लगभग पूरी दिल्ली के लोग संक्रमित हो गए थे। दिल्ली

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