Ranjeet Singh

प्रसंग क्रमांक 57: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम रोहटा का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम धंगेड़ा और ग्राम अगोल से चलकर ग्राम रोहटा में पधारे थे। यह ग्राम रोहटा, ग्राम अगोल से 12 किलोमीटर दूरी पर और पटियाला से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर एवं शहर नाभा से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस ग्राम के बाहर एक सुंदर-रमणीय स्थान पर […]

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प्रसंग क्रमांक 56: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम धंगेडा़ एवं ग्राम अगोल का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम सिम्बडों से चलकर ग्राम धंगेड़ा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस स्थान पर गोकुल नामक बालक ने गुरु जी की समर्पित भाव से सेवा की थी। वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में बहुत सुंदर और विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं इस स्थान पर सुशोभित है। पुरातन

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प्रसंग क्रमांक 55: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम टहलपुरा, ग्राम आकड़ एवं ग्राम सिम्बडों का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम नौलखा से चलकर ग्राम लंग में पहुंचे थे। इस ग्राम लंग से पटियाला शहर के समीप ग्राम टहलपूरा में गुरु जी के इतिहास से संबंधित निशानियां इस स्थान पर मौजूद है। उस पुरातन समय में ग्राम टहलपूरा का कोई अस्तित्व नहीं था। इसके पश्चात प्रसिद्ध इतिहासकार भाई कान

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प्रसंग क्रमांक 54: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम लंग का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत ग्राम लंग नामक स्थान पर सहपरिवार और प्रमुख सिखों के साथ पहुंचे थे। गुरु जी ने इस ग्राम लंग में जिस स्थान पर निवास किया था उस स्थान पर स्थित पुरातन ‘खिरनी’ का वृक्ष वर्तमान समय में भी स्थित है। ‘खिरनी’ का पेड़

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प्रसंग क्रमांक 53: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार के समय ग्राम नौलखा का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने पूरे परिवार और प्रमुख सिखों सहित धर्म प्रचार-प्रसार की यात्राएं निरंतर कर रहे थे। इस यात्रा के तहत गुरु जी पटियाला शहर के समीप नौलखा नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब गुरु जी इस ग्राम में पधारे तो आसपास के इलाके की संगत श्रद्धा-भावना से आपके सम्मुख उपस्थित

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प्रसंग क्रमांक 51: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम बीबीपुर खुर्द, ग्राम बुधमुर एवं ग्राम कराह का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम ननहेड़ी से चलकर ग्राम बीबीपुर खुर्द नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम में गुरु जी की स्मृति में ग्राम के बाहर की और भव्य गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस गुरुद्वारा साहिब जी की हदूद (परिसर) में एक कुआं भी स्थित है। गुरु जी की इस धर्म

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प्रसंग क्रमांक 52: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम लैहल (वर्तमान समय में पटियाला शहर) का इतिहास।

 ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ धर्म प्रचार-प्रसार हेतु लगातार विभिन्न ग्रामों की यात्रा कर रहे थे। आम लोगों के कल्याण हेतु आप जी लोगों को नाम-वाणी से जोड़ते थे। उन ग्रामों के भ्रमण का नक्शा तैयार किया जाता था और ग्रामों में धर्म का प्रचार-प्रसार कर गुरु जी अपने धर्म प्रचार-प्रसार के केंद्र बिंदु

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प्रसंग क्रमांक 48: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने बहादुर गढ़ में कैसे चौमासा (वर्षा ऋतु के चार महीने) बिताये थे? इसका संपूर्ण इतिहास।

जब’ श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के अंतर्गत सैफाबाद नामक स्थान पर पहुंचे थे तो वहां के नवाब सैफुद्दीन बड़ी ही आत्मीयता और आदर-सम्मान पूर्वक गुरु जी को अपने महल में निवास के लिए लेकर गये थे। जब महल के समीप पहुंचकर गुरु जी ने निकट ही एक मस्जिद को

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प्रसंग क्रमांक 49: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम महमदपुर जट्टा, ग्राम रायपुर, ग्राम सील, ग्राम शेखुपुरा, ग्राम हरपालपुर नामक स्थानों पर पहुंचे थे। इन समस्त ग्रामों का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने नवाब सैफुद्दीन के महल में चौमासा का समय व्यतीत कर अपने गुरु परिवार और साथ में जुड़ी हुई संगत के साथ अपनी भविष्य की यात्रा हेतु चल पड़े थे। सर्वप्रथम गुरु जी बहादुरगढ़ से चलकर ग्राम महमदपुर जट्टां नामक स्थान पर पहुंचे थे। ग्राम महमदपुर जट्टां पर मुख्य

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प्रसंग क्रमांक 50: श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम हसनपुर-कबुलपुर एवम् ग्राम ननहेड़ी का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के दौरान पूरे परिवार और संगत के साथ हरपालपुर से चलकर ग्राम हसनपुर-कबूलपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। ग्राम हसनपुर-कबुलपुर दो सगे भाइयों के नाम पर आबाद हुआ है। इन दोनों भाइयों का नाम हसन और कबूल था। हसन के नाम पर ग्राम हसनपुर एवं

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