Ranjeet Singh

प्रसंग क्रमांक 88: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय धमतान साहिब जी में गुरु जी के द्वितीय दौरे का इतिहास।

सफर-ए-पातशाही नौवीं श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 87 में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से संबंधित गुरुद्वारा धमतान साहिब जी के इतिहास से हम अवगत होंगे। इस स्थान पर गुरु पातशाह जी दो बार पधारे थे। पहले समय गुरु जी इस स्थान पर सन् 1665 ई. की बैसाखी पर पधारे थे और दूसरे समय सन् […]

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प्रसंग क्रमांक 87: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम कांजला, ग्राम भैणीमराज, ग्राम मुलोवाल, ग्राम बुढ़लाडा़ और ग्राम संगरेढ़ी का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत ग्राम कांजला, ग्राम भैणीमराज और ग्राम मूलोवाल में पहुंचे थे। इस प्रसंग को गति देते हुए इन ग्रामों के इतिहास की जानकारी प्राप्त करेंगे। ग्राम कांजला में गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस ग्राम कांजला

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प्रसंग क्रमांक 86: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम जहांगीर एवं ग्राम बबनपुर का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने सिखों और परिवार के साथ धर्म प्रचार-प्रसार की यात्रा करते हुए ग्राम जहांगीर नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब गुरु जी यहां पधारे थे तो उस समय यह ग्राम जहांगीर पूर्ण रूप से आबाद नहीं हुआ था। जब गुरु जी इस स्थान में पहुंचे तो पास ही एक

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प्रसंग क्रमांक 85: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम फरवाही एवं ग्राम सेखां का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु ग्राम फरवाही नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब गुरु पातशाह जी का इस स्थान पर आगमन हुआ तो उस समय इस स्थान पर हैजे की बीमारी से स्थानीय निवासी भयानक रूप से संक्रमित थे। हम सभी जानते हैं कि हैजे का संक्रमण दूषित पानी

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प्रसंग क्रमांक 84: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम रुडे़ के कला, ग्राम केलों, ग्राम ढ़िलवां और ग्राम दुलमिकी का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के इतिहास से संबंधित ग्राम रुड़े के कला के इतिहास से इस प्रसंग में संगत (पाठकों) को अवगत करवाया जाएगा। जब इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम इस ग्राम रूड़े के कला में पहुंची और स्थानीय लोगों से जानना चाहा कि गुरु जी के इतिहास से संबंधित इस

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प्रसंग क्रमांक 83: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम कट्टू, ग्राम सोहिआना एवं ग्राम हंडियाना का इतिहास।

इस श्रृंखला के विगत प्रसंग क्रमांक 81 में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के इतिहास से संबंधित भाई संघा जी के इतिहास से अवगत हुए थे। इसी इतिहास से संदर्भित ग्राम खीवां कला में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इसी श्रृंखला में जब हम आगे बढ़ते हैं तो गुरु जी

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प्रसंग क्रमांक 82: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम पंधेर (बरनाला) एवं ग्राम शाहपुर का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने पूरे परिवार और संगत के साथ ग्राम खीवां कला से चलकर कुछ दूर पर जब गए तो स्थानीय संगत आपके दर्शन-दीदार करने के लिए उपस्थित हुई थी। गुरु जी ने संगत को नाम-वाणी से जोडा़ था। इस यात्रा के दरमियान कुछ दूरी चलकर शाम हुई तो काफिले को

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प्रसंग क्रमांक 81: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम बछोआना एवं ग्राम खीवां कला का इतिहास।

श्रृंखला के विगत प्रसंग के अंतर्गत संगत (पाठकों) को भाई मुगलु जी के इतिहास से अवगत करवाया गया था। इस श्रृंखला के अंतर्गत हम जिस ग्राम का इतिहास जानने वाले हैं, वह ग्राम कनकवाल नामक ग्राम से 10 किलोमीटर और ग्राम गंडुआं से, यहां के भाई मुगलू जी निवासी थे। (विगत प्रसंग में हम सभी

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प्रसंग क्रमांक 80: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम गंडुआं (मानसा) का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ सुबा पंजाब के मालवा प्रांत में धर्म प्रचार-प्रसार के लिए निरंतर यात्राएं कर रहे थे। इस यात्रा में आप जी के साथ 300 के करीब संगत और गुरु जी का परिवार भी यात्राएं कर रहे थे। इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत गुरु जी ग्राम गंडुआं में पहुंचकर एक

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प्रसंग क्रमांक 79: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम समाउ एवं ग्राम कनकवाल का इतिहास।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम धलेवां से चलकर आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम समाउ नामक स्थान पर पहुंचे थे। दूसरी और गुरु जी जब अपना धर्म प्रचार-प्रसार का दौरा सुबा प्रांत के मालवा प्रदेश में कर रहे थे तो वह अपने साथी-सेवादारों को अपने गृह नगर ‘चक नानकी’ पर भेज कर

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