ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
पूता माता की आसीस॥
निमख न बिसरउ हरि हरि सदा भजहु जगदीस ॥॥रहाउ॥
कापड़ु पति परमेसरु राखी भोजनु कीरतनु नीति॥
अंम्रित पीवहु सदा चिरु जीवहु हरि सिमरत अनद अनंता॥
रंग तमासा पूरन आसा कबहि न बिआपै चिंता॥
भवरु तुमारा इहु मनु होवउ हरि चरणा होहु कउला॥
नानक दासु उन संगि लपराइओ जिउ बूंदहि चात्रिकु मउला॥
( 'श्री ग्रंथ गुरु साहिब जी' अंग क्रमांक 486)
मनोगत --
✍️डाॅ. रणजीत सिंह 'अर्श'
प्रत्येक इंसान को उस प्रभु-परमेश्वर ने कुछ विशेष प्रकार की प्रतिभाओं से नवाजा है। यदि इंसान अपनी इन प्रतिभाओं को पहचानकर और उसे निखार कर समाज के सम्मुख लाने पर, वो इंसान अपनी इन विशेष प्रतिभाओं से समाज हित में कई उत्तम कार्यों को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकता है।
कोरोना संक्रमण के लॉकडाउन कॉल में मैंने अप्रैल 2020 से अपनी लेखन की प्रतिभा को पहचान कर अपने लेखन कार्य के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं पर, विभिन्न विषयों पर, विशेषकर गुरबाणी और सिख इतिहास पर टीम खोज-विचार के द्वारा आज तक रचित सभी लेखों के संग्रहण को इस ब्लॉग ARSH.BLOG के अंतर्गत लगातार प्रकाशित किया जाएगा। मेरे द्वारा रचित और संग्रहित इन लेखों के द्वारा मैंने अपना एक सकारात्मक विचारों का दृष्टिकोण रखा है। मेरा यह लेखन कार्य ‘अर्श’ उत्पत्ति से अभिभूत है। भूत-भावन बाबा महाकाल की नगरी अवंतिका की गलियों में गुजारा बचपन सचमुच एक खुला विश्वविद्यालय था। बिना दीवारों के इस विद्यालय में जीवन की सच्चाई और कटुता को समझकर ‘संघर्ष ही जीवन है’ के इस मूलमंत्र को आत्मसात कर अपना स्वयं का मार्ग प्रशस्त करने की यह गाथा है। मेरा जन्म एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था परंतु एक जिद्दी थी की पारिवारिक परिस्थितियों को संभालते हुए स्नातक की डिग्री हासिल करना है। विद्यालयीन और महाविद्यालयीन शिक्षण के साथ-साथ इस जीवन के खुले विश्वविद्यालय में बहुत कुछ सीखने को मिला। व्यक्तिगत जीवन शैली में मालवा की मृदगंध, आचार-विचार, व्यवहार, त्यौहार, मृदभाषा और दूसरों के प्रति आत्मीयता शरीर के रोम-रोम से पुलकित होती है। विद्यार्थी जीवन में उज्जैन नगरी में किया हुआ संघर्ष निश्चिती मुझे हमेशा एक नई ऊर्जा और प्रेरणा देता है। मेहनत करना, भूख से लड़ना अपने व्यक्तिगत कार्य प्यार और सहजता से, दूसरों का विश्वास जीतकर निकालना इसी खुले विश्वविद्यालय की देन है। बचपन में गुरु घर की सेवाओं में नियमित रूप से अपना योगदान देना साथ ही छात्र जीवन की राजनीति ने जीवन में एक विशेष प्रकार का संगठन कौशल का निर्माण किया है। विद्यालयीन जीवन में हिंदी माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने के कारण बचपन से ही गद्य,पद्य, निबंध और स्तंभ लेखन में विशेष रूचि रही। हिंदी साहित्य को पढ़कर, निरंतर समझने की कोशिश की और लिखने का शौक बचपन से ही रहा है। मैंने समयानुसार शौकिया तौर पर गुरमुखी और मराठी भाषा का अध्ययन कर, दोनों भाषाओं को सिख कर उत्तम प्रभुत्व हासिल किया है। जीवन जीने के इस संघर्ष, भागदौड़ और उठापटक में अपने लेखन के शौक तो मैं समय ही नहीं दे पाया था।
आज में एक टी.यु. वी.सर्टीफाइड प्रायव्हेट लिमिटेड कंपनी का मैनेजींग डायरेक्टर हूँ। ऑटोमोबाइल उद्मोग के अंतर्गत स्थित औद्मोगिक क्षैत्र में भी कई टेस्टिंग उपकरणों का निर्माण अपने ज्ञान और अनुभव से किया है। इस क्षेत्र में अपने ज्ञान, लगन, मेहनत, एकाग्रता और ईमानदारी से कई बेमिसाल कार्य किये है जो जीवन में माइल स्टोन है। यह सब लिखने का कारण यह है की एक गरीब परिवार का लड़का जिसने उज्जैन जैसे धार्मिक शहर में अपना बचपन गुजारा और आज एक मुकाम पर पहुंचने के बाद अपने जीवन की समस्त जवाबदारीयों से मुक्त होकर, स्वयं को समाज के लिये लेखन कार्य के लिये समर्पित कर दिया है। मेरे इस शौक को विशेष रूप से स्थाई भाव देने का का कार्य कोरोना संकट के लाक डाउन ने किया है| लाक डाउन में मिले समय का सदुपयोग कर मैने अपने मन में चल रहे शब्दों के द्वंद को कलम की मदद से कागज पर उतारने की कोशिश की थी पश्चात मैं इतिहासकार सरदार भगवान सिंघ जी ‘खोजी’ के सानिध्य में आया और अपने लेखन कार्य को सिक्ख इतिहास और गुरुबाणी को लिखने में समर्पीत कर दिया| मेरे उत्तम लेखन कार्यो का संज्ञान लेकर दिनांक ५ सितंबर सन् २०२२ को “विश्व मानवाधिकार सुरक्षा आयोग” की और से मुझे DOCTORATE IN INDIAN HISTORY (GURUBANI AND SIKH HISTORY) की उपाधी से नवाजा गया|
साहित्य, लेखन और फिल्मों के क्षैत्र में चलन है की जो भी व्यक्ति इन क्षैत्रों में कार्य करते है उनका एक उपनाम जरूर होता है। व्यक्तिगत मित्रों की सलाह थी की मुझे भी एक उपनाम जरूर रखना चाहिये। कई दिनों के विचार मंथन के बाद दोस्तों के द्वारा प्रस्तावित उपनाम ‘अर्श’ पर मेरी मोहर लगी। इस ‘अर्श’ शब्द के और भी अर्थ है जैसे की खुला आकाश, मुकुट या उपहार और अंग्रेज़ी वर्णमाला में यदि ARORA RANJEET SINGH को शार्ट कर लिखते है तो ‘ARSH’ शब्द की उत्पत्ति होती है।
मेरी अपनी चाहत है की मेरी लेखनी खुले आकाश की तरह हो और पाठक इसे पढ़कर मुकुट की तरह धारण करें और यही मेरी लेखनी के द्वारा समाज को दिया गया यह एक अनूठा उपहार होगा।
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मनोगत--
सरदार भगवान सिंह जी 'खोजी' (इतिहासकार)
‘गुरु पंथ-खालसा’ के महान विद्वान, इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ का जन्म 9 नवंबर सन् 1976 ई. को सुबा पंजाब के पटियाला शहर में हुआ था। बचपन से ही परिवार से प्राप्त सांस्कृतिक और धार्मिक संस्कारों के कारण आप जी का विशेष झुकाव गुरुबाणी के अध्ययन और सिख इतिहास की खोज पर केन्द्रित रहा है। (आप जी की ‘खोज विचार’ नामक श्रृंखला, यू ट्यूब और फेसबुक पर प्रसिद्ध है) आप जी के द्वारा गुरु ‘श्री तेग बहादर साहिब जी’ के संपूर्ण जीवन पर गुरुमुखी भाषा में वीडियो क्लिप की श्रृंखला बनाकर आम जन समुदाय तक पहुंचाने के लिए विशेष प्रयत्न किया जा रहा है।
सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ ने सन् 1989 ई. में गुरबाणी की उक्ति–
बाबाणिआ कहानिआ पुत सपुत करेनि॥
के वाक्यानुसार ‘खंडे-बांटे’ का अमृत छक कर के 16 वर्ष की आयु में आप जी तैयार-बर-तैयार हो गए थे और सन् 1989 ई. में ही आप जी ने सांसारिक शिक्षाओं के अतिरिक्त जीवन में तीन वर्षों तक गुरबाणी, श्री गुरु ग्रंथ साहब जी की वाणी और सिख इतिहास कंठस्थ कर लिया था। पश्चात आप जी ने चंडीगढ़ स्थित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब विद्या केंद्र’ में सिख इतिहास गुरबाणी और गुरमत संगीत की विद्याओं का लगातार तीन वर्षों तक गहन अध्ययन किया था। इसी के साथ पूरे विश्व में लगातार यात्राएं कर गुरबाणी का प्रचार-प्रसार किया ‘गुरबाणी ज्ञान प्रकाश केंद्र पटियाला’ (पंजाब) में आप जी ने दो सौ विद्यार्थियों को सिख धर्म की शिक्षाओं का गहन अभ्यास करवाया था। आप जी ने अकाल ‘अकादमी वडु साहिब’ (पंजाब) में भी दो वर्षों तक विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षाओं से अवगत करवाया था। आप जी ने महाविद्यालय में कला शाखा के विद्यार्थियों को भी शिक्षित किया था।
सिख इतिहास के विभिन्न, नवीनतम ऐतिहासिक पहलुओं को सफलतापूर्वक खोजने के कारण आप का उपनाम ‘खोजी’ पड़ गया है। खोजी जी ने अपने अर्जित ज्ञान से जीवन में कुछ विशेष करने की ठानी थी और अपनी शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा देकर सोशल मीडिया के माध्यम से आप जी ने गुरबाणी और सही-सटीक, विशुद्ध सिख इतिहास को आम जन समुदाय तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। अपने प्रथम प्रयत्न में ही आप जी ने सिख इतिहास को प्रोजेक्टर की मदद से 300 घंटे का स्लाइड शो बनाकर आम जन समुदाय तक पूरे भारतवर्ष में पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। आप जी ने टी.वी.शो के माध्यम से 70,000 विद्यार्थीयों को गुरबाणी और सिख इतिहास से जोड़ने का बेमिसाल कार्य भी किया है।
आप जी ने सन् 2019 ई. में गुरु ‘श्री नानक देव साहिब जी’ के 550 वर्ष प्रकाश पर्व पर विश्व स्तर पर हिंदी और पंजाबी भाषाओं के अंतर्गत ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की जीवनी पर आधारित 550 प्रश्नों से 10,000 युवा प्रतिस्पर्धीयों को टी.वी. के माध्यम से जोड़कर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की जीवनी से सभी को रुबरू करवाया था।
सन् 2021 ई. में पूरे विश्व में ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ का प्रकाश पर्व पूरे उत्साह और हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस महान ऐतिहासिक पर्व को पूरे विश्व में हर्षोल्लास से क्यों मनाया जा रहा है? कारण यदि हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखेंगे तो आज से 100 वर्ष पूर्व अर्थात सन् 1921 ई. में भी यह गुरु पर्व 300 साल के रूप में आया था परंतु उस समय आज के आधुनिक युग की तरह से पूरी दुनिया की संगत को जोड़कर शताब्दीयां नहीं मनाई जाती थी। इतिहास गवाह है कि 20 फरवरी सन् 1921 ई. को ‘साका ननकाना साहिब’ हुआ था। उन दिनों में पूरी सिख कौम महंतों से गुरुद्वारों को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। यदि हम 200 वर्ष और पीछे जाते हैं तो सन् 1821 ई. में ‘शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह जी’ का राज्य था। उस समय ‘सिक्ख राज’ अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रहा था। उस समय प्रकाश पर्व तो मनाया गया था परंतु 200वर्ष को शताब्दी पर्व के रूप में नहीं मनाया गया था। यदि हम 300वर्ष और पीछे जाते हैं तो उस समय ‘बाबा बंदा सिंह बहादुर जी’ की शहीदी को मात्र पांच वर्ष ही हुए थे। उस समय ‘सिख पंथ’ अनेक कठिनाइयों का लगातार सामना कर रहा था। सिख योध्दाओं को घोड़ों की पीठ पर बैठकर जंगलों में रहकर रात गुजारना पड़ रही थी। उस समय भी नौवीं पातशाही ‘धर्म की चादर गुरु श्री तेग बहादुर जी’ का प्रकाश पर्व नहीं बनाया जा सका था।
इस गुरु पर्व का विशेष महत्व इसलिए भी है कि प्रथम पातशाही ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने अपनी चार उदासी यात्राओं में 36,000 माईल्स की यात्रा की और इन यात्राओं के माध्यम से जगत का कल्याण किया था। उसके पश्चात पातशाही नौवीं ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ ने जगत कल्याण के लिए सबसे अधिक भ्रमण किया था।
गुरबाणी में अंकित है:-
जिथै जाइ बहै मेरा सतिगुरु सो थानु सुहावा राम राजै॥
(अंग 450)
अर्थात् जिस-जिस स्थान पर सदगुरु जी के चरण पड़े वो स्थान अकाल पुरख की कृपा से ‘सुहावा’ अर्थात स्वर्ग है। इस उच्चारित गुरबाणी के अनुसार जहां-जहां भी गुरु जी ने धर्म प्रचार-प्रसार के लिए भ्रमण किया उन स्थानों पर जाकर उन स्थानों पर बने ऐतिहासिक गुरुद्वारे और गुरु जी की निशानियां और उनके द्वारा बनाए गए कुओं के दर्शन इन वीडियो क्लिप और चित्रों के माध्यम से संगत को होंगे। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक ‘गुरु पंथ-खालसा’ की फुलवारी के दर्शन इन साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से पाठकों को होंगे।
इस प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के संपूर्ण इतिहास को विश्व के पटल पर रखने का अनोखा प्रयास सिख पंथ के महान विद्वान, इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ जी का है। इस इतिहास का सभी संदर्भित ग्रंथों से अध्यन कर श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विशेष रूप से इस श्रृंखला के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के प्रकाश पर्व से लेकर ज्योति-ज्योत समाने के संपूर्ण इतिहास को विस्तार से संगत (पाठकों) के सम्मुख रखा जाएगा।
गुरु जी के इतिहास से संबंधित वो सभी ‘चरण चिन्हित’ स्थान जिनका वर्णन संदर्भित ग्रंथों में है। व्यक्तिगत रूप से उन स्थानों पर जाकर स्थानीय इतिहासकारों एवं बुजुर्गों से सभी अनमोल ऐतिहासिक जानकारियों को एकत्र कर पुनः पातशाही नौवीं ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के स्वर्णिम-अनमोल इतिहास को सोशल मीडिया के माध्यम से और पुस्तकों को प्रकाशित कर पूरे विश्व के समक्ष रखने का बेहतरीन प्रयास सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ और टीम खोज-विचार के सभी सेवादारों के माध्यम से किया जा रहा है।
आप जी को दिनांक 17 जुलाई सन् 2021 ई. को ON LINE WORD RECORD संस्था की और से “MOST HISTORICAL PLACES OF GURU TEG BAHADUR JI VISTED BY A PERSON BY VISITING 100 + HITORICAL PLACES OF GURU TEG BHADAR JI AS A SINGLE PERSON अवार्ड से नवाजा गया है। इस अवार्ड हेतु आपको ON LINE WORLD RECORD संस्था की और से प्रशस्ति पत्र एवम् मेडल प्रदान किया गया है।
भविष्य में शीघ्र ही आप जी के द्वारा गुरुबाणी और सिख इतिहास के अनुसंधान के लिये, सर्व आधुनिक तकनिकी सुविधाओं से युक्त गुरमत शिक्षा केन्द्र के रुप में एक बुंगा ‘ज्ञान बुंगा’ को प्रारंभ करने की योजना है।