सरदार शाम सिंह अटारी: एक अप्रतिम देशभक्त और वीर योद्धा

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सरदार शाम सिंह अटारी: एक अप्रतिम देशभक्त और वीर योद्धा

सरदार शाम सिंह अटारी, जिनका नाम सिख इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में अमर है, का जन्म सन् 1788 ई. में भारत के पंजाब प्रांत के प्रसिद्ध ग्राम अटारी में हुआ। यह स्थान वर्तमान में अमृतसर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर, पाकिस्तान की सीमा के मार्ग पर स्थित है। उनका जन्म जाट सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता सरदार निहाल सिंह सिद्धू, उस समय के सम्मानित और प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक थे।

शिक्षा और आरंभिक जीवन

सरदार शाम सिंह बचपन से ही मेधावी और गुणवान थे। उन्होंने गुरुमुखी और फारसी में उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त किया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ने उनके व्यक्तित्व को निखारा और उन्हें नेतृत्व क्षमता और नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण बनाया।

महाराजा रणजीत सिंह के विश्वासपात्र

जब महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब पर अपनी हुकूमत स्थापित की, तो उन्होंने सरदार शाम सिंह की योग्यता और नेतृत्व क्षमता को पहचाना। महाराजा ने उन्हें ‘अटारी वाला’ ग्राम की सेवाएँ सौंप दीं और 5000 घुड़सवारों की सैन्य टुकड़ी का जत्थेदार नियुक्त किया। यह जिम्मेदारी उनके प्रति महाराजा के गहरे विश्वास का प्रतीक थी।

सैन्य अभियानों में वीरता

सन् 1817 ई. से लेकर सन् 1837 ई. तक, सरदार शाम सिंह ने अनेक सैन्य अभियानों में भाग लिया। इनमें मुल्तान, पेशावर, कश्मीर, और सीमांत प्रांतों के युद्ध प्रमुख थे। प्रत्येक अभियान में उन्होंने अपनी अद्भुत वीरता और युद्ध कौशल का परिचय दिया।
कश्मीर अभियान (सन् 1819 ई.) में उन्होंने सेनापति हरि सिंह नलवा के नेतृत्व में सिख सेना के साथ लड़ते हुए अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया। अफगान-सिख युद्धों में उन्होंने अटक, मुल्तान और पेशावर के युद्धों में भी शानदार प्रदर्शन किया। उनकी युद्ध कला और रणनीतिक कौशल ने उन्हें महाराजा रणजीत सिंह के सबसे विश्वसनीय सैन्य कमांडरों में शामिल कर दिया।

पारिवारिक जीवन और संबंध

सरदार शाम सिंह अटारी वाला के परिवार का सिख साम्राज्य से गहरा नाता था। उनकी पुत्री का विवाह महाराजा रणजीत सिंह के पोते कुंवर खड़क सिंह के बेटे राजकुमार नौ निहाल सिंह से हुआ। यह वैवाहिक संबंध उनके परिवार और सिख साम्राज्य के बीच आपसी विश्वास और स्नेह का प्रतीक था।

सभराऊ का युद्ध और शहादत

अपने जीवन के अंतिम दिनों में, सरदार शाम सिंह ने सन 1846 ई. में हुए सभराऊ के युद्ध में भाग लिया। यह युद्ध उनके जीवन का अंतिम और सबसे गौरवपूर्ण अध्याय साबित हुआ। उन्होंने अद्भुत साहस और वीरता का परिचय देते हुए मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

सती की घटना

सरदार शाम सिंह की शहादत के बाद उनकी पत्नी माई दासी ने उनके प्रति अपनी असीम श्रद्धा और प्रेम का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने सती होकर अपने प्राण त्याग दिए। यह घटना उस समय की समाजिक और वैवाहिक निष्ठा का प्रतीक मानी जाती है।

स्मारक और विरासत

सरदार शाम सिंह अटारी का स्मारक आज भी ग्राम अटारी में स्थित है। यह स्मारक न केवल उनकी महानता का प्रतीक है, बल्कि यह सभी देशभक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी है। उनकी अद्भुत वीरता, निष्ठा और बलिदान की गाथाएँ आज भी ‘गुरु पंथ खालसा’ और सिख इतिहास के गौरवशाली अध्याय का हिस्सा हैं।

नमन

सरदार शाम सिंह अटारी वाला का जीवन देशभक्ति, कर्तव्यपरायणता और बलिदान का अनुपम उदाहरण है। ऐसे महान देशभक्त और वीर योद्धा को सिख साम्राज्य और भारत का इतिहास सदैव स्मरण करेगा। उनकी शहादत और त्याग आज भी हमें मातृभूमि के प्रति समर्पण और निष्ठा की प्रेरणा देते हैं।

सरदार शाम सिंह अटारी जैसे महान देशभक्तों को शत-शत नमन!


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