भाई सुखा सिंह जी और भाई महताब सिंह जी: सिख धर्म की आन, बान और शान
भाई सुखा सिंह जी और भाई महताब सिंह जी ने सिख धर्म की आन, बान और शान के लिए श्री हरमंदिर साहिब, अमृतसर की बेअदबी करने वाले मस्सा उद्दीन उर्फ मस्सा रंगड़ का सरेआम वध कर, उसका सिर एक ही तलवार के वार से अलग कर दिया। उन्होंने इस कार्य के माध्यम से श्री हरमंदिर साहिब का पूरा बदला लिया।
9 मार्च सन 1739 ई. को मुगल आक्रमणकारी नादिर शाह ने दिल्ली पर हमला किया और हिंदुस्तान की दौलत और अस्मत लूटकर 25 मई सन 1739 ई. को वापस जाने लगा। जब वह चिनाब नदी के पास अखनूर पहुँचा, तो गुरु के सिखों ने उसे घेर लिया। उन्होंने नादिर शाह की सेना पर प्रहार कर देश की लूटी गई दौलत और अस्मत को सुरक्षित वापस लिया। देश की सभी बेटियों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुँचाया। इस हार से हताश नादिर शाह ने लाहौर के फौजदार ज़करिया खान के साथ मिलकर सिखों को समाप्त करने की योजना बनाई।
ज़करिया खान ने अपने अधिकारियों और ग्राम प्रधानों को आदेश दिया कि जहाँ भी सिख मिलें, उन्हें मार डालें या गिरफ्तार करें। सिखों के सिर लाने पर इनाम की घोषणा की गई। परिणामस्वरूप, हज़ारों सिख, पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए। अमृतसर में श्री दरबार साहिब का प्रभार मस्सा रंगड़ को सौंपा गया। उसने हरमंदिर साहिब की परिक्रमा को घोड़ों के अस्तबल और मुख्य हॉल को नृत्य कक्ष में बदल दिया।
सिखों का एक जत्था जयपुर के पास डेरा डाले हुए था। जब उन्हें हरमंदिर साहिब की बेअदबी का समाचार मिला, तो भाई महताब सिंह और भाई सुखा सिंह ने मस्सा रंगड़ को दंडित करने का निश्चय किया। दोनों गुरु के सिख अमृतसर पहुँचे और सिक्कों से भरे थैले के बहाने हरमंदिर साहिब में प्रवेश किया। उन्होंने मस्सा रंगड़ को नशे में वेश्याओं के साथ देखा। भाई महताब सिंह ने थैले को मस्सा रंगड़ की चारपाई के नीचे फेंका। जैसे ही वह सिक्के उठाने झुका, उन्होंने अपनी तलवार से उसका सिर काट दिया।
इस घटना के बाद ज़करिया खान ने अपराधियों को पकड़ने का आदेश दिया। भाई महताब सिंह को अंततः गिरफ्तार कर लिया गया और लाहौर लाया गया। उन्हें क्रूरतम तरीके से चरखड़ी पर शहीद किया गया।
इस घटना ने सिद्ध कर दिया कि सिख अपने पवित्र स्थानों की पवित्रता को अपने प्राणों से अधिक महत्व देते हैं।