सरदार निधान सिंह ‘पंज हत्था सिंह’: वीरता और बलिदान की अमर गाथा
भारत की धरती पर, जहां वीरता और बलिदान की कहानियाँ अनगिनत हैं, उनमें से एक है सरदार निधान सिंह की गाथा, जिन्हें ‘पंज हत्था सिंह’ के नाम से जाना जाता है। ‘शेर-ए-पंजाब’ महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में, जब पंजाब एक सशक्त राज्य के रूप में खड़ा था, उनकी सेना में ऐसे वीर सेनानायक थे, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उन्हीं में से एक अमर योद्धा थे सरदार निधान सिंह।
नौशेरा की लड़ाई और ‘पंज हत्था सिंह’ का खिताब
14 मार्च 1842 ई. में, पेशावर घाटी पर अधिकार के लिए ‘शेर-ए-पंजाब’ महाराजा रणजीत सिंह और पश्तून जनजातियों (गाजियों) के बीच नौशेरा में एक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह स्वयं युद्ध का नेतृत्व कर रहे थे। उनके साथ अकाली फूला सिंह, सरदार निधान सिंह, और साहिबजादा खड़क सिंह जैसे महान सेनानायक युद्ध के मैदान में थे।
गाजियों की सेना, जो तोपों और बंदूकों से लैस थी, संख्या में 3500 थी। दूसरी ओर, सिख सेना के 1500 शूरवीर थे, जो अपने अद्वितीय युद्ध कौशल और महाराजा के नेतृत्व में मैदान-ए-जंग में डटे हुए थे।
युद्ध के दौरान, सरदार निधान सिंह ने अपनी अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। घोड़े पर सवार होकर वे शत्रुओं के घेरे को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहे थे, तभी एक गोली उनके घोड़े को लगी। घोड़ा ज़मीन पर गिर पड़ा, लेकिन सरदार निधान सिंह ने तुरंत छलांग लगाकर अपनी तलवार खींची और दुश्मनों पर टूट पड़े। उनके खंडे (चौड़ी, दोधारी तलवार) के वार से कई गाजी मारे गए।
पाँच गाजियों के विरुद्ध अद्वितीय युद्ध कौशल
गाजियों की सेना में हड़कंप मच गया। पाँच गाजी योद्धाओं ने एक साथ मिलकर सरदार निधान सिंह पर आक्रमण किया। उनकी योजना थी कि सरदार का सिर काटकर अपने पैरों तले कुचला जाए। लेकिन सरदार निधान सिंह ने गरजते हुए कहा, “अभी तुमने श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी के सूरमाओं का जौहर देखा ही कहाँ है!”
अपने एक हाथ में ढाल और दूसरे हाथ में खंडा लेकर उन्होंने ऐसा पैंतरा दिखाया कि पाँचों गाजी एक साथ ढेर हो गए। महाराजा रणजीत सिंह ने इस अद्भुत दृश्य को अपनी आँखों से देखा। जब सरदार निधान सिंह उनके समक्ष पाँचों गाजियों के हथियार लेकर उपस्थित हुए, तो महाराजा ने उन्हें गले से लगा लिया और ऐलान किया, “आज से तुम ‘पंज हत्था सिंह’ के नाम से जाने जाओगे।”
महाराजा ने उन्हें ‘पंज हत्था सिंह’ का खिताब दिया और उपहार स्वरूप 5000 रुपये की जागीर प्रदान की। इस युद्ध में सिख सेना विजयी रही, और गाजियों को भागना पड़ा। हालांकि, इस लड़ाई में महान सेनानायक अकाली फूला सिंह ने शहादत का जाम पिया।
‘पंज हत्था सिंह’ की वीरता के अन्य किस्से
1832 ई. में, जब सरदार हरि सिंह नलवा ब्रिटिश गवर्नर से मिलने शिमला गए, तो ‘पंज हत्था सिंह’ भी उनके साथ थे। गवर्नर ने उनकी वीरता की कहानियाँ सुन रखी थीं। जब उन्होंने सरदार निधान सिंह को देखा, तो उनके बलशाली शरीर और घावों के निशानों को देखकर हैरान रह गए।
गवर्नर ने व्यंग्य में पूछा, “आपके तो केवल दो ही हाथ हैं, फिर आपको ‘पंज हत्था सिंह’ क्यों कहा जाता है?” इस पर सरदार निधान सिंह ने उत्तर दिया, “गोरा साहिब, मेरे हाथ तो दो ही हैं, लेकिन जब मैं इनसे पाँच हाथों का करतब दिखाता हूँ, तो दुश्मन सीधे दूसरी दुनिया में पहुंच जाता है।”
जमरूद की लड़ाई और बलिदान
जमरूद के किले पर अफगानी सेना ने आक्रमण किया। इस युद्ध में पठान सेना के बलशाली योद्धा मोहम्मद अकबर खान ने ललकारते हुए कहा, “कहाँ है तुम्हारा ‘पंज हत्था सिंह’? मैं उसी से युद्ध करना चाहता हूँ।”
इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, सरदार निधान सिंह ने कहा, “तुझे पाँच हाथ दिखाने की ज़रूरत नहीं, मेरे एक हाथ से ही काम चल जाएगा।” अपनी तलवार के वार से उन्होंने अकबर खान को टुकड़े-टुकड़े कर दिया। इस जीत के बाद सिख सेना ने पठानों की 18 तोपों पर कब्ज़ा कर लिया।
हालांकि, इस युद्ध के दौरान, पहाड़ियों में छुपे पठानों ने गोलियों की बौछार कर दी। घायल होने के बावजूद, सरदार निधान सिंह ने शत्रु सेना का पीछा किया। अंततः मातृभूमि की रक्षा करते हुए, ‘पंज हत्था सिंह’ शहीद हो गए।
नमन वीर योद्धाओं को
सरदार निधान सिंह ‘पंज हत्था सिंह’ और उनके जैसे अनेक सिख वीरों की गाथाएँ हमें यह सिखाती हैं कि मातृभूमि की रक्षा और धर्म की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति सर्वोपरि है। उनका साहस और बलिदान हमारी प्रेरणा का स्रोत है। इन वीर योद्धाओं को कोटि-कोटि नमन।