सरदार बोता सिंह और गरजा सिंह: अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक
मुगल सल्तनत के दौर में, जब सिख कौम पर अत्याचारों की पराकाष्ठा हो चुकी थी, उस समय के शासकों ने खालसा पंथ को जड़ से मिटाने की कसम खा ली थी। नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली जैसे लुटेरे जब-जब हिंदुस्तान को लूटकर वापस लौटते, सिख वीर उनके मार्ग में बाधा बन खड़े हो जाते और लूटे गए माल को उनसे छीनकर जरूरतमंदों में बांट देते। इससे मुगल शासक बौखला उठे। पंजाब के तत्कालीन गवर्नर जकरिया खान ने सिखों के सिर पर इनाम घोषित कर दिया और यह प्रचारित कर दिया कि सिख अब समाप्त हो चुके हैं।
इस दमनकारी दौर में, श्री दरबार साहिब अमृतसर जैसे पवित्र स्थल पर भी सिखों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया। ऐसे कठिन समय में, बाबा बोता सिंह और बाबा गरजा सिंह ने सिख कौम पर हो रहे अत्याचारों को सहन न करते हुए बदला लेने की ठान ली। इन दोनों वीरों ने नूरुद्दीन सराय के निकट एक पुल पर अपना डेरा डालकर संघर्ष की शुरुआत की। उन्होंने वहां एक चुंगी नाका स्थापित किया और आने-जाने वाले मुसाफिरों से चुंगी वसूलनी शुरू कर दी।
सिख वीरता का ऐलान
इसी स्थान से उन्होंने एक व्यंग्यात्मक पत्र जकरिया खान को भेजा। इस पत्र में उन्होंने उसे ‘भाभी’ कहकर संबोधित किया और घोषणा की कि खालसा राज स्थापित हो चुका है। पत्र में बाबा बोता सिंह के शब्द कुछ इस प्रकार थे:
चिट्ठी लिखे सिंह बोता,
हथ है सोटा, विच राह खड़ोता।
आना लाया गड्डे नूं,
पैसा लाया खोता।
आखे भाबी खानो नूं,
यो आखे सिंह बोता।
जब यह पत्र जकरिया खान तक पहुंचा, तो वह अपमानित हुआ और उसने 200 सैनिकों का एक दस्ता इन वीरों को मारने के लिए भेजा।
घमासान युद्ध और शहादत
मुगल सैनिकों ने इन शूरवीरों को चारों ओर से घेर लिया। बाबा बोता सिंह ने उन्हें ललकारते हुए कहा, “यदि तुम में साहस है, तो एक-एक करके मेरे सामने आओ!”
सैनिकों ने बारी-बारी से हमला किया, लेकिन बाबा बोता सिंह ने अपनी लाठी से एक दर्जन सैनिकों को धराशायी कर दिया। जब दो-दो सैनिकों ने आना शुरू किया, तब भी ये वीर उन पर भारी पड़े। अंततः, क्रोधित होकर सभी मुगल सैनिकों ने एक साथ हमला किया।
इस घमासान युद्ध में बाबा बोता सिंह और गरजा सिंह ने अद्भुत वीरता का परिचय दिया और दो दर्जन से अधिक मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। अंततः 27 जुलाई सन 1739 ई. को इन दोनों वीरों ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहादत प्राप्त की।
प्रेरणा का स्रोत
बाबा बोता सिंह और बाबा गरजा सिंह का यह साहसिक कार्य हमें यह सिखाता है कि अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होना हर युग में सच्चे वीरों का कर्तव्य है। उनकी शहादत आज भी सिख कौम के लिए प्रेरणा का स्रोत है और यह सिद्ध करती है कि अन्याय और अधर्म के सामने झुकने की अपेक्षा मर-मिट जाना ही सच्ची वीरता है।