सरदार हरि सिंह नलवा: अद्वितीय वीरता और उच्च आदर्शों के प्रतीक
सरदार हरि सिंह नलवा का जन्म सन् 1791 ई. में पंजाब के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान में) में हुआ। उनके पिता गुरदयाल सिंह और माता धरम कौर की छत्रछाया में उनका बचपन बीता। मात्र सात वर्ष की आयु में पिता की शहादत ने उनके जीवन में संघर्ष और दृढ़ता के बीज बो दिए।
शौर्य और प्रारंभिक उपलब्धियां
14 वर्ष की आयु में बसंत पंचमी के अवसर पर उन्होंने शस्त्र विद्या में जो उत्कृष्टता दिखाई, उसने शेरे-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने हरि सिंह को अपने निजी अंगरक्षक नियुक्त कर गले का बहुमूल्य कंठहार भेंट किया। 17 वर्ष की आयु में एक बब्बर शेर का जबड़ा अपने हाथों से फाड़कर उन्होंने अपनी वीरता की मिसाल कायम की। इसी अद्वितीय पराक्रम के कारण उन्हें “नलवा” की उपाधि प्राप्त हुई।
रणभूमि में अपराजेय योद्धा
सरदार हरि सिंह नलवा के नेतृत्व में कश्मीर, अटक, कसूर, मुलतान, और पेशावर जैसे क्षेत्रों में विजय प्राप्त की गई। 825 वर्षों के बाद पेशावर पर कब्जा उनकी रणकुशलता का प्रमाण है। उन्होंने जमरूद के अभेद्य किले को जीतकर पंजाब को आक्रमणकारियों से सुरक्षित रखा। सरदार हरि सिंह नलवा ने अफगान आक्रमणकारियों को हिंदुस्तान की सीमा में प्रवेश से रोकने में मुख्य भूमिका निभाई। उनका निर्माण किया गया जमरूद का किला न केवल सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि पंजाब के गौरव का प्रतीक भी बना। उनका जीवन खालसा पंथ की “मिरी-पीरी” की परंपरा का आदर्श उदाहरण है।
महान व्यक्तित्व और आदर्श जीवन
हरि सिंह नलवा का जीवन उच्च विचारों और आदर्शों का प्रतीक था। 19 वर्षीय पठानी लड़की बानो के साहसिक प्रस्ताव को नलवा ने अपनी धार्मिक और नैतिक मूल्यों के अनुसार अस्वीकार करते हुए, उसे धर्म माता का स्थान देकर उसके सम्मान को बनाए रखा। उन्होंने बीबी सरनी को भी अपनी धर्म बहन बनाकर सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ साहसिक उदाहरण प्रस्तुत किया।
शहादत: खालसे के स्वाभिमान की रक्षा
30 अप्रैल सन 1837 ई. को जमरूद किले की रक्षा करते हुए सरदार हरि सिंह नलवा ने अपने प्राणों की आहुति दी। अंतिम समय में उन्होंने अपने साथियों को प्रेरित किया कि खालसा पंथ की मर्यादा और सम्मान को बनाए रखने के लिए हर स्थिति में डटे रहें। उनकी मृत्यु की सूचना गुप्त रखते हुए सरदार महा सिंह ने उनका अंतिम संस्कार अत्यंत सादगी और गोपनीयता से किया।
प्रेरणा और विरासत
सरदार हरि सिंह नलवा की वीरता, रणनीति, और उच्च नैतिक मूल्यों का यह प्रेरक जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्चा नेतृत्व केवल विजय नहीं, बल्कि मानवता और आदर्शों के प्रति समर्पण में है।