सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया: खालसा पंथ के अभूतपूर्व योद्धा
सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया का जन्म सन् 1723 ई. में लाहौर जिले के इचोहिल गांव (अब पाकिस्तान) में हुआ। उनके पिताजी ज्ञानी भगवान सिंह थे, जो अपनी गहरी विद्वता और साहसिक दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे। पिता-पुत्र ने अपने जीवन को खालसा पंथ की सेवा में समर्पित कर दिया और नवाब कपूर सिंह जी के नेतृत्व में खालसा दल में शामिल हो गए। दुर्भाग्यवश, सन् 1738 ई. में ज्ञानी भगवान सिंह शहीद हो गए, लेकिन उनका बलिदान और शिक्षाएं जस्सा सिंह के जीवन में प्रेरणा बनकर जीवित रही।
रामगढ़ किले का निर्माण और प्रसिद्धि
बाबा बंदा सिंह बहादुर के शहीदी के बाद, सरदार जस्सा सिंह ने श्री अमृतसर साहिब में राम रानी नामक किले का निर्माण कराया, जिसे बाद में “रामगढ़” नाम दिया गया। इसी कारण से वे सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया के नाम से प्रसिद्ध हुए। यह किला उनकी दूरदर्शिता और संगठनात्मक कौशल का प्रमाण है, जिसने खालसा पंथ को मजबूती प्रदान की।
राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व
सरदार जस्सा सिंह ने अपनी चतुराई और नेतृत्व क्षमता से न केवल खालसा पंथ को सशक्त किया, बल्कि मुगलों के खिलाफ संघर्ष में भी सफलता पाई। उन्होंने हरगोविंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी बनाया और पहाड़ी राजाओं के मध्य सिख राज्य की नींव रखी। उनका राजनीतिक कौशल और सैन्य रणनीतियां खालसा पंथ को एक मजबूत शक्ति के रूप में स्थापित करने में सहायक रहीं।
दिल्ली विजय और मुगल साम्राज्य का पतन
सन् 1783 ई. में, सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में दिल्ली पर विजय प्राप्त की। उन्होंने लाल किले के 44 विशाल खंभों को ध्वस्त कर दिया और मुगल सम्राटों के तख्त को अपने घोड़े से बांधकर श्री अमृतसर दरबार साहिब लेकर आए। यह तख्त आज भी श्री दरबार साहिब में विजय के प्रतीक के रूप में सुरक्षित है।
गुरु वचनों का पालन
तरनतारन साहिब के सरोवर की ईंटें, जिन्हें अमीर उद्दीन जबरन उठा ले गया था, सरदार जस्सा सिंह ने वापस सरोवर में लगाकर श्री गुरु अर्जुन देव जी के वचनों का मान रखा। यह कार्य उनकी अदम्य निष्ठा और गुरु पंथ के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है।
निर्माण कार्य और विरासत
सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने श्री दरबार साहिब की परिक्रमा में 156 फीट ऊंचे बुंगे का निर्माण कराया, जिसमें दिल्ली से लाया गया मुगल सम्राटों का तख्त आज भी रखा हुआ है। उन्होंने अमृतसर शहर के कटड़ा बाजार और गुरुद्वारा बाबा अटल साहिब के निर्माण का कार्य भी प्रारंभ कराया।
अकाल चलाना और उत्तराधिकार
सन् 1808 ई. में, उन्होंने अपने सुपुत्र सरदार जोध सिंह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 80 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी आत्मा को गुरु चरणों में समर्पित कर दिया।
विशेष स्मरण
सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया के दादा, बाबा हरिदास जी, ने उस नागिन बरछे का निर्माण किया था, जिसका उपयोग सरदार बचित्तर सिंह जी ने श्री आनंदपुर साहिब में मस्त हाथी के खिलाफ युद्ध में किया था। यह बरछा न केवल सिख शौर्य का प्रतीक है, बल्कि खालसा पंथ की उत्कृष्ट शस्त्र कला का भी प्रमाण है।
सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया का जीवन खालसा पंथ के उत्थान, साहस, और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक है। उनका योगदान सिख इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों में दर्ज है। उनका बलिदान और विजयों की गाथा आज भी अनगिनत सिखों को प्रेरणा देती है।
ऐसे महान योद्धा और गुरु पंथ के सेवक को शत्-शत् नमन।