सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया: खालसा का अमर योद्धा
सरदार जस्सा सिंह जी आहलूवालिया, सिख इतिहास के अद्वितीय योद्धा और खालसा पंथ के महान नेता, का जन्म 3 मई 1718 ई. को पंजाब के आहूल गांव (जिला लाहौर, वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ। आप जी के पिताजी का नाम बदर सिंह और माता जी का नाम जीवनी जी था। मात्र चार वर्ष की आयु में पिता के देहांत के बाद उनका पालन-पोषण और शिक्षा माता सुंदर कौर जी ने बड़ी लगन और त्याग के साथ की।
जस्सा सिंह जी को शिक्षा के लिए दिल्ली भेजा गया, जहां उन्होंने सात वर्षों तक गहन अध्ययन किया। इसके पश्चात, नवाब कपूर सिंह जी के संरक्षण में शस्त्र विद्या और युद्ध कौशल में निपुण बनकर वे खालसा पंथ के सशक्त योद्धा के रूप में उभरे। उनकी सेवाओं और अद्भुत नेतृत्व क्षमता को पहचानते हुए, 29 मार्च 1748 को उन्हें 11 सिख मिसलों का प्रमुख नियुक्त किया गया।
कुप-रहीड़े का घल्लूघारा और युद्ध कौशल
1762 में हुए कुप-रहीड़े के बड़े घल्लूघारे (नरसंहार) में जस्सा सिंह जी ने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया। इस युद्ध में उनके शरीर पर 22 गंभीर घाव लगे, लेकिन उनका अदम्य साहस और बलिदान सिख समुदाय के लिए प्रेरणा बना।
खालसा राज्य की स्थापना
1777 में, जस्सा सिंह जी ने कपूरथला को विजय कर खालसा की राजधानी घोषित किया। यह उनका दूरदर्शी नेतृत्व ही था जिसने सिखों को संगठित कर एक सशक्त राजनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित किया।
दिल्ली विजय और सुल्तान-उल-कौम की उपाधि
11 मार्च 1783 को, सरदार जस्सा सिंह जी ने दिल्ली पर विजय प्राप्त कर लाल किले पर निशान साहिब को फहराया। इस अद्वितीय उपलब्धि के लिए उन्हें “सुल्तान-उल-कौम” (कौम का सुल्तान) की उपाधि से नवाजा गया। उनकी इस विजय ने न केवल सिखों के आत्मसम्मान को ऊंचा किया बल्कि उनके राजनीतिक और सैन्य कौशल को भी प्रमाणित किया।
फतेहगढ़ साहिब की स्थापना
सरहिंद की विजय के बाद, गुरु मारी नामक स्थान का नाम बदलकर फतेहगढ़ साहिब रखा गया। यह स्थल आज भी उनकी विजय गाथा का प्रतीक है।
अंतिम यात्रा और स्मृति स्थल
जस्सा सिंह जी का देहांत 1783 में श्री अमृतसर साहिब में हुआ। उनके सम्मान में गुरुद्वारा बाबा अटल साहिब के पीछे एक स्मारक स्थल स्थापित किया गया है, जो उनके बलिदान और खालसा पंथ के प्रति उनके योगदान की याद दिलाता है।
सरदार जस्सा सिंह जी आहलूवालिया का योगदान
सरदार जस्सा सिंह जी ने सिखों को संगठन, साहस और आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाया। उनका जीवन, संघर्ष और विजय सिख इतिहास के स्वर्णिम अध्याय हैं। आप जी न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि खालसा पंथ के आदर्श मूल्यों के प्रतीक भी थे।
उनका समर्पण, त्याग, और निस्वार्थ सेवा भाव आज भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं। ऐसे महानायक को हमारा कोटि-कोटि नमन।