बाबा बंदा सिंह बहादुर: सिख धर्म के शूरवीर योद्धा
सिख इतिहास के पन्नों में बाबा बंदा सिंह बहादुर का नाम शौर्य, बलिदान और धर्मनिष्ठा के प्रतीक के रूप में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। आप का जीवन त्याग, साहस और न्याय के सिद्धांतों से ओतप्रोत था। आपका जन्म सन् 1670 ई. में जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में एक साधारण राजपूत परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री रामदेव एक किसान थे, और आपके बचपन का नाम लक्ष्मण दास था।
आध्यात्मिक यात्रा का आरंभ
युवावस्था में एक घटना ने आपके जीवन की दिशा बदल दी। एक बार आपने शिकार खेलते हुए एक गर्भवती हिरणी का वध कर दिया। यह दृश्य आपके हृदय को झकझोर गया और आपने सांसारिक जीवन त्याग कर बैरागी साधु का मार्ग अपनाया। इसके बाद आप पंचवटी आश्रम में बैरागी गुरु जानकी दास के शिष्य बन गए। यहां आपको “माधोदास” नाम मिला।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ भेंट
सन् 1708 में, दक्षिण के नांदेड़ में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से आपकी ऐतिहासिक भेंट हुई। गुरु साहिब ने आपको सिख धर्म के आदर्शों से परिचित कराया और खंडे-बाटे का अमृत पान करवाकर “गुरबख्श सिंह” नाम दिया। इसी के साथ आपको बाबा बंदा सिंह बहादुर के नाम से पहचाना जाने लगा। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने आपको सिख पंथ का नेतृत्व सौंपते हुए पांच तीर, निशान साहिब, नगाड़ा और पांच साथियों—भाई विनोद सिंह, भाई काहन सिंह, भाई बाज सिंह, भाई रण सिंह और भाई दया सिंह—के साथ पंजाब भेजा।
खालसा पंथ के धर्म युद्ध का नेतृत्व
पंजाब पहुंचने के बाद बाबा बंदा सिंह बहादुर ने सिख पंथ के विरुद्ध हो रहे अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाया। आप ने समाने के जल्लाद जलालुद्दीन जिसने श्री गुरु तेग बहादुर जी को शहीद किया था और जल्लाद शासल बेग एवं बाशल बेग जिन्होनें छोटे साहिबजादों को शहीद किया था, इन तीनों जल्लादों को गिरफ्तार कर, जमीन में गाड़ कर मौत के घाट उतार दिया और समाने नामक स्थान पर आग लगा कर इस स्थान को मटिया मेट कर दिया था। वजीर खान जिसने छोटे साहिबजादों को शहीद करने का फ़रमान जारी किया था, इस वजीर खान को चप्पड़चिड़ी के युद्ध में 14 मई सन 1710 ई. को परास्त कर, सरहिंद को फतह किया एवं इस युद्ध में भाई फतेह सिंह के हाथों वजीर खान मारा गया था। पश्चात गंगू रसोइया और सुच्चा नंद को भी सख्त सजा दी गई थी। भाई बाज सिंह को सरहिंद का सुबेदार मनोनित किया गया था, सुखलसगड़ का नाम बदली कर लोहगड रखा गया और इस सिख राज की प्रथम राजधानी बनाया गया, इसी के साथ खालसा राज की स्थापना की गई। चप्पड़चिड़ी के ऐतिहासिक युद्ध में आपने वजीर खान को परास्त किया और सरहिंद की विजय प्राप्त की। इस युद्ध में भाई बाज सिंह ने वजीर खान का अंत किया। सरहिंद की जीत के बाद आपने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर किसानों को उनकी भूमि का स्वामी बनाया। यह कदम समाज में समानता और न्याय की स्थापना का प्रतीक बना।
खालसा राज की स्थापना और सिक्के का प्रचलन
बाबा बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब में खालसा राज की स्थापना की। आपने श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर सिक्के जारी किए, जिन पर लिखा था:
“दग्गो गोबिंद सिंह के, मिहर हो बंदा बहादुर।”
आपने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया और इसे मजबूत किले के रूप में विकसित किया।
आखिरी युद्ध और गिरफ्तारी
सन् 1715 में बादशाह फर्रुखसियर ने बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके अनुयायियों पर आक्रमण किया। गुरदास नंगल में 8 महीने तक चलने वाले इस संघर्ष में बाबा जी को धोखे से बंदी बना लिया गया। उन्हें 740 सिखों सहित दिल्ली लाया गया।
अत्याचार और शहादत
दिल्ली में प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया गया, लेकिन न तो बाबा बंदा सिंह बहादुर ने और न उनके अनुयायियों ने अपने धर्म से समझौता किया। अंततः, 9 जून 1716 ई. को बाबा जी और उनके चार वर्षीय पुत्र अजय सिंह को अमानवीय यातनाएं दी गईं। अजय सिंह का दिल निकालकर बाबा जी के मुख में डाल दिया गया। बाबा जी के शरीर के अंग-प्रत्यंग को तोड़ा गया और जमुरे नामक हथियार से उनकी त्वचा नोची गई। उनकी शहादत सिख धर्म के इतिहास में अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष और अडिग आस्था का अमर प्रतीक बन गई।
उपसंहार
बाबा बंदा सिंह बहादुर का जीवन सिख धर्म के मूल्यों और मानवता के उच्च आदर्शों का प्रतीक है। उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि धर्म और न्याय की रक्षा के लिए हर प्रकार के कष्ट सहन करना भी गौरवशाली है। उनका शौर्य, तप और त्याग हमें न केवल प्रेरित करता है, बल्कि धर्म के मार्ग पर अडिग रहने की शक्ति भी प्रदान करता है। बाबा बंदा सिंह बहादुर के साहस और बलिदान को समर्पित यह रचना उनके जीवन को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत करती है।
“धन्य है वह शूरवीर, जिसने अन्याय के अंधकार में न्याय का दीप जलाया।”