नवाब कपूर सिंह जी: सिख परंपरा के विनम्र योद्धा

Spread the love

नवाब कपूर सिंह जी: सिख परंपरा के विनम्र योद्धा

सिख इतिहास में नवाब कपूर सिंह जी का नाम समर्पण, विनम्रता और सेवा के प्रतीक के रूप में अमिट है। आपका जन्म सन् 1697 ईस्वी में हुआ। आपके पिताजी का नाम सरदार दिलीप सिंह जी था। बाल्यकाल से ही आपकी परवरिश सिख धर्म के आदर्शों और मूल्यों के अनुरूप हुई। सिख मर्यादा और सेवा भावना में गहरी आस्था रखने वाले नवाब कपूर सिंह जी ने भाई मणि सिंह जी की प्रेरणा से खंडे-बाटे का अमृत ग्रहण किया और अपना जीवन धर्म और सेवा को समर्पित कर दिया।

सिख जत्थों के प्रति निष्ठा

अमृत छकने के बाद नवाब कपूर सिंह जी ने जत्थेदार दरबारा सिंह जी के नेतृत्व वाले सिख जत्थे में अपनी सेवाएं अर्पित कीं। आपके निष्ठावान और अनुशासित स्वभाव ने आपको सिख संगत का प्रिय बना दिया। कठिन परिस्थितियों में भी आप सिख धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहे।

नवाबी का प्रस्ताव और आपकी विनम्रता

सन् 1733 ईस्वी में, जब तत्कालीन शासक जकरिया खान ने सिखों से समझौते का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने एक लाख रुपये की जागीर और अमृतसर क्षेत्र की नवाबी का पद सिखों को भेंट करना चाहा। यह प्रस्ताव श्री दरबार साहिब में जत्थेदार दरबारा सिंह जी के समक्ष प्रस्तुत किया गया। हालांकि, जत्थेदार दरबारा सिंह जी ने इसे व्यक्तिगत रूप से स्वीकार करने के बजाय सिख संगत से सलाह-मशवरा करना उचित समझा।

सिखों की आम राय से तय हुआ कि यह पद किसी ऐसे सेवादार को दिया जाए जो विनम्र और सेवा भाव से प्रेरित हो। इस विचार से नवाबी का सम्मान सरदार कपूर सिंह जी को प्रदान करने का निर्णय लिया गया।

नवाबी स्वीकारने की अनूठी शर्तें

सरदार कपूर सिंह जी ने पहले तो इस सम्मान को विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया। लेकिन जब सिख संगत ने जोर दिया, तो आपने इसे कुछ शर्तों के साथ स्वीकार किया। आपकी शर्तें सिख परंपरा और सेवा भावना का बेजोड़ उदाहरण थीं:

  1. घोड़ों के तबेले की सेवा, जो आप पहले से कर रहे थे, उन्हें न छीनने दी जाए।
  2. नवाबी के ताज को पांच दिनों तक संगत के जूते साफ करने के स्थान पर रखा जाए।
  3. ताज को पांच गुरु सिखों के चरणों से स्पर्श कराकर फिर उन्हें पहनाया जाए।

यह विनम्रता और सेवा का अद्वितीय उदाहरण था। आपकी शर्तों ने यह संदेश दिया कि सिख धर्म में पद और प्रतिष्ठा से अधिक महत्व सेवा और विनम्रता का है।

सिख संगत के प्रति समर्पण

नवाब कपूर सिंह जी ने अपने पूरे जीवन में कभी भी नवाबी के पद का अहंकार नहीं किया। आप हमेशा सिख संगत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते रहे। चाहे वह युद्ध का मैदान हो या धर्म की रक्षा का कार्य, आपकी नेतृत्व क्षमता और विनम्रता ने सिख संगत को एकजुट रखा।

उपसंहार

नवाब कपूर सिंह जी का जीवन न केवल सिख इतिहास, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी प्रकाश स्तंभ है। आपका योगदान सेवा, समर्पण और विनम्रता की उत्कृष्ट मिसाल है। आपका जीवन यह सिखाता है कि किसी भी पद या प्रतिष्ठा का वास्तविक उद्देश्य दूसरों की सेवा और धर्म की रक्षा करना है।


Spread the love
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments