सफर-ए-पातशाही नौवीं
प्रस्तावना—
संपूर्ण विश्व में सिख धर्म को सबसे आधुनिक धर्म माना जाता है। सिक्खों ने विश्व में अपनी सेवा, सिमरन, त्याग, इंसानियत और देश भक्ति के जज्बे से अपनी एक अलग विशेष पहचान ‘विश्व पटल’ पर निर्माण की है।
इस मार्शल सिख कौम के स्वर्णिम-अनमोल इतिहास को आम जन समुदाय में पहुंचाने की कोशिश लेखक के द्वारा की जा रही है।
मई सन 2021 ई. में धन्य-धन्य पातशाही नौवीं ‘धर्म की चादर, श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का 400 वां पावन,पुनीत, प्रकाश पर्व पूरी दुनिया में हर्षोल्लास और गुरु मर्यादा से मनाया जा रहा है|
इस विशेष शुभ अवसर पर ‘गुरु पंथ-खालसा’ के महान विद्वान, इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ (आप जी की ‘खोज-विचार नामक श्रृंखला यू ट्यूब और फेसबुक पर प्रसिद्ध है) जी के द्वारा ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के संपूर्ण जीवन पर गुरुमुखी भाषा मेंं वीडियो क्लिप की श्रृंखला बनाकर आम जन समुदाय तक पहुंचाने के लिए विशेष प्रयत्न किया जा रहा है।
सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ ने सन् 1989 ई. में गुरवाणी की उक्ति–
बाबाणीआ कहाणीआ पुत सपुत करेनि॥
(अंग क्रमांक 951)
के वाक्यानुसार ‘खंडे-बाटे’ का अमृत छक कर के 16 वर्ष की आयु में आप जी तैयार-बर-तैयार हो गए थे और सन् 1989 ई. में ही आप जी ने सांसारिक शिक्षाओं के अतिरिक्त जीवन में तीन वर्षों तक गुरवाणी, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की वाणी और सिख इतिहास कंठस्थ कर लिया था। इसके पश्चात आप जी ने चंडीगढ़ स्थित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब विद्या केंद्र’ में सिख इतिहास गुरवाणी और गुरमत संगीत की विद्याओं का लगातार तीन वर्षों तक गहन अध्ययन किया था। इसी के साथ पूरे विश्व में लगातार यात्राएं कर गुरवाणी का प्रचार-प्रसार किया ‘गुरवाणी ज्ञान प्रकाश केंद्र पटियाला’ (पंजाब) में आप जी ने दो सौ विद्यार्थियों को सिख धर्म की शिक्षाओं का गहन अभ्यास करवाया था। आप जी ने अकाल ‘अकादमी वडु साहिब’ (पंजाब) में भी दो वर्षों तक विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षाओं से अवगत करवाया था। आप जी ने महाविद्यालय में कला शाखा के विद्यार्थियों को भी शिक्षित किया था।
सिख इतिहास के विभिन्न, नवीनतम ऐतिहासिक पहलुओं को सफलतापूर्वक खोजने के कारण आप का उपनाम ‘खोजी’ पड़ गया है। खोजी जी ने अपने अर्जित ज्ञान से जीवन में कुछ विशेष करने की ठानी थी और अपनी शिक्षक की नौकरी से इस्तीफा देकर सोशल मीडिया के माध्यम से आप जी ने गुरवाणी और सही-सटीक, विशुद्ध सिख इतिहास को आम जन समुदाय तक पहुंचाने का बीढ़ा उठाया। अपने प्रथम प्रयत्न में ही आप जी ने सिख इतिहास को प्रोजेक्टर की मदद से 300 घंटे का स्लाइड शो बनाकर आम जन समुदाय तक पूरे भारतवर्ष में पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। आप जी ने टी.वी.शो के माध्यम से 70,000 बच्चों को गुरवाणी और सिख इतिहास से जोड़ने का बेमिसाल कार्य भी किया है।
आप जी ने सन् 2019 ई. में ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के 550 वर्ष प्रकाश पर्व पर विश्व स्तर पर हिंदी और पंजाबी भाषाओं के अंतर्गत ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की जीवनी पर आधारित 550 प्रश्नों से 10,000 युवा प्रतिस्पर्धियों को टी.वी. के माध्यम से जोड़कर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की जीवनी से सभी को रूबरू करवाया था।
सन् 2021 ई. में पूरे विश्व में ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ का प्रकाश पर्व पूरे उत्साह और हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है। इस महान ऐतिहासिक पर्व को पूरे विश्व में हर्षोल्लास से क्यों मनाया जा रहा है? कारण यदि हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखेंगे तो आज से 100 वर्ष पूर्व अर्थात सन् 1921 ई. में भी यह गुरु पर्व 300 साल के रूप में आया था परंतु उस समय आज के आधुनिक युग की तरह से पूरी दुनिया की संगत को जोड़कर शताब्दी नहीं मनाई जाती थी। इतिहास गवाह है कि 20 फरवरी सन् 1921 ई. को ‘साका ननकाना साहिब’ हुआ था। उन दिनों में पूरी सिख कौम महंतों से गुरुद्वारों को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत से संघर्ष कर रही थी। यदि हम 200 वर्ष और पीछे जाते हैं तो सन् 1821 ई. में महाराजा रणजीत सिंह जी का राज था। उस समय ‘सिख राज’ अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर रहा था। उस समय प्रकाश पर्व तो मनाया गया था परंतु 200 वर्ष को शताब्दी पर्व के रूप में नहीं मनाया गया था। यदि हम 300 वर्ष और पीछे जाते हैं तो उस समय ‘बाबा बंदा सिंह्म बहादुर जी’ की शहीदी को मात्र पांच वर्ष ही हुए थे। उस समय ‘सिख पंथ’ अनेक कठिनाइयों का लगातार सामना कर रहा था। सिक्ख योद्धाओं को घोड़ों की पीठ पर बैठकर जंगलों में रहकर रात गुजारना पड़ रही थी। उस समय भी नौवीं पात शाही ‘धर्म की चादर गुरु श्री तेग बहादुर जी’ का प्रकाश पर्व नहीं बनाया जा सका था।
इस गुरु पर्व का विशेष महत्व इसलिए भी है कि प्रथम पात शाही ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने अपनी चार उदासी यात्राओं में 3600 मील की यात्रा की और इन यात्राओं के माध्यम से जगत का कल्याण किया था। उसके पश्चात पात शाही नौवीं ‘श्री तेग बहादुर साहिब जी’ ने जगत कल्याण के लिए सबसे अधिक भ्रमण किया था।
गुरवाणी में अंकित है–
जिथै जाइ बहै मेरा सतिगुरु सो थानु सुहावा राम राजे॥
(अंग 450)
अर्थात् जिस-जिस स्थान पर सद्गुरु जी के चरण पड़े वो स्थान अकाल पुरख की कृपा से ‘सुहावा’ अर्थात स्वर्ग है। इस उच्चारित गुरवाणी के अनुसार जहां-जहां भी गुरु जी ने धर्म प्रचार-प्रसार के लिए भ्रमण किया उन स्थानों पर जाकर उन स्थानों पर बने ऐतिहासिक गुरुद्वारे और गुरु जी की निशानियां और उनके द्वारा बनाए गए कुँओं के दर्शन इन वीडियो क्लिप और चित्रों के माध्यम से संगत को होंगे। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ द्वारा निर्मित इस ऐतिहासिक ‘गुरु पंथ-खालसा’ की फुलवारी के दर्शन इन साहित्यिक रचनाओं के माध्यम से पाठकों को होंगे।
इस प्रकाश पर्व के शुभ अवसर पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के संपूर्ण इतिहास को विश्व के पटल पर रखने का अनोखा प्रयास सिख पंथ के महान विद्वान, इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ जी का है। इस इतिहास का सभी संदर्भित ग्रंथों से अध्ययन कर श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विशेष रूप से इस श्रृंखला के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के प्रकाश पर्व से लेकर ज्योति-ज्योत समाने के संपूर्ण इतिहास को विस्तार से संगत (पाठकों) के सम्मुख रखा जाएगा।
गुरु जी के इतिहास से संबंधित वो सभी ‘चरण चिंह अंकित’ स्थान जिनका वर्णन संदर्भित ग्रंथों में है। व्यक्तिगत रूप से उन स्थानों पर जाकर स्थानीय इतिहासकारों एवं बुजुर्गों से सभी अनमोल ऐतिहासिक जानकारियों को एकत्र कर पुनः पात शाही नौवीं ‘श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ के स्वर्णिम-अनमोल इतिहास को सोशल मीडिया के माध्यम से और पुस्तकों के संस्करण प्रकाशित कर पूरे विश्व के समक्ष रखने का बेहतरीन प्रयास सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ और उनके सभी सेवादारों के माध्यम से किया जा रहा है|
इस श्रृंखला के अंतर्गत कई नवीन, रोचक ऐतिहासिक तथ्यों को संगत (पाठकों) के समक्ष रखने का अभिनव प्रयास किया जा रहा है। पूरे विश्व में सबसे ज्यादा बोली, पढ़ी-लिखी और समझी जाने वाली भाषा हिंदी में इस पूरे स्वर्णिम-अनमोल इतिहास का साथ ही साथ अनुवाद पुस्तक के लेखक पुणे निवासी डाॅ. रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ के द्वारा निरंतर किया जा रहा है। पुस्तक के लेखक के द्वारा इसे ‘गुरु पंथ-खालसा’ की महान सेवा के रूप में स्वीकार कर स्वयं का सौभाग्य समझते हुए राष्ट्रभाषा हिंदी में स्वयं के ज्ञान और अनुभव से लिखने का विशेष प्रयास किया जा रहा है।
वाहिगुरु जी के आशीर्वाद से लेखक का हिंदी साहित्य, गुरुमुखी और मराठी भाषा पर प्रभुत्व है। इस कारण वीडियो क्लिप में वर्णित गुरमुखी के क्लिष्ट शब्दावली को सरल-सटीक आम बोलचाल की भाषा में अनुवाद कर हिंदी के पाठकों को सिख इतिहास की अभिनव जानकारी देने का विशेष प्रयास लेखक के द्वारा किया जा रहा है।
लेखक स्वयं विज्ञान के स्नातक और लघु उद्योजक है। इसलिए गुरुवाणी और सिक्ख इतिहास को आधुनिक विज्ञान से जोड़कर एक समन्वय बनाने की कोशिश इस स्वर्णिम इतिहास की लेखनी में करने का लेखक का विशेष प्रयत्न होगा।
इस श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत इतिहास में लेखक का विशेष प्रयत्न यह भी होगा कि सही-सटीक और विशुद्ध इतिहास के साथ परंपरागत चली आ रही जड़ी-बूटियां और पर्यावरण संबंधी जानकारी साथ ही सिख धर्म की रीति-रिवाज, रवायतों को भी श्रृंखला के प्रसंगों में उल्लेखित कर इन पुरातन जानकारियों और सिख इतिहास को नई पीढ़ी को विरासत के रूप में सौंपने का अभिनव प्रयत्न किया जाएगा। साथ ही भविष्य में विभिन्न भाषाओं में भी इस स्वर्णिम-अनमोल इतिहास को अनुवादित कर ज्यादा से ज्यादा प्रसारित कर प्रचार किया जाएगा।
इस पुस्तक के विभिन्न संस्करणों में श्रृंखला के प्रसंगों को क्रमानुसार नामांकित कर उपलब्ध चित्रों के माध्यम से प्रकाशित कर पाठकों के समक्ष रखा जाएगा। भविष्य में श्रृंखला के आने वाले क्रमानुसार विभिन्न प्रसंगों को अलग-अलग संस्करणों के माध्यम से पाठकों के सम्मुख रखकर प्रकाशित किया जाएगा।
अकाल पुरख वाहिगुरु जी के चरणों में ‘अरदास’ है कि टीम ‘खोज-विचार’ को वाहिगुरु जी आशीर्वाद प्रदान करें। संगत (पाठकों) से भी विनम्र निवेदन है कि वो भी इस महान कार्य के लिए ‘अरदास’ करें ताकि हम, हमारे द्वारा सुनिश्चित किए हुए मकसद में कामयाब हो सकें।
नोट(अ):- इस श्रृंखला के प्रसंगों को लिखने के लिए निम्नलिखित संदर्भित ग्रंथों (स्त्रोतों) से जानकारी संग्रहित की गई है।
१. महान कोश गुरु की साखियां: लेखक:- प्यारा सिंह जी ‘पदम’
२.सुर्य प्रताप ग्रंथ: लेखक:- प्यारा सिंह जी ‘पदम’
३.इति जनकरी: लेखक:-प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी.
४.श्री गुरु तेग बहादुर साहिब मार्ग (पंजाबी युनिवर्सिटी): लेखक:- डा° सुख दयाल सिंह जी.
साथ ही ‘गुरु पंथ खालसा’ के महान विद्वान और इतिहासकार प्रिंसिपल सेवा सिंह जी कोड़ा, डॉक्टर गंडा सिंह जी, प्रोफ़ेसर साहिब सिंह जी, सरदार पिंदरपाल सिंह (कथा वाचक) जी के द्वारा रचित ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पर प्रकाशित ग्रंथ और सभी स्रोतों से साहित्य सर्जन कर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के प्रकाश पर्व से लेकर ज्योति-ज्योत समाने के संपूर्ण इतिहास को सफर-ए- पातशाही नौवीं में सम्मलित किया गया है।
(अ):- ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक ‘अंग’ कहकर संबोधित किया जाता है।
(ब). गुरुवाणी के पदों का हिंदी अनुवाद ‘गुरुवणी सर्चर ऐप’ को मानक मानकर उसके अनुसार किया गया है।
(स):- पुस्तक में प्रकाशित सिख गुरुओं के चित्र काल्पनिक है|
प्रसंग क्रमांक 1 : श्री गुरु रामदास साहिब जी से श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी तक की जीवन यात्रा
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