बाबा बुड्ढा जी: गुरु पंथ खालसा के प्रथम निष्काम सेवादार

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बाबा बुड्ढा जी का जन्म 1506 ईस्वी में एक साधारण परिवार में हुआ, लेकिन उनके जीवन की महिमा ने उन्हें सिख धर्म के इतिहास का अटल स्तंभ बना दिया। पिताजी भाई सुघ्घा जी और माता गोरां जी के स्नेहभरे आशीर्वाद में पले-बढ़े बाबा बुड्ढा जी का जन्म अमृतसर जिले के ग्राम कत्थू नंगल में हुआ था। माता गोरां जी अजनाला तहसील के ग्राम मंदरा के संधू परिवार से थीं, जिनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि का प्रभाव बाबा जी के जीवन में गहरे तक व्याप्त था।

बचपन में ही बाबा बुड्ढा जी की बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक झुकाव ने उन्हें असाधारण बना दिया। जब वह मात्र 13 वर्ष के थे, तब उनकी पहली मुलाकात श्री गुरु नानक देव जी से हुई। कहते हैं कि इस मुलाकात में, बाबा बुड्ढा जी ने अपनी गंभीर बातों और गहन विचारों से गुरु जी का ध्यान आकर्षित किया। उनके पिता भाई सुघ्घा जी ने कहा, “गुरु पातशाह, देखो यह मेरा बेटा बुड्ढे लोगों की तरह बातें करता है!” तभी से उनका नाम ‘बुड्ढा’ पड़ा, जो बाद में बाबा बुड्ढा जी के रूप में प्रख्यात हुआ। 

गुरु नानक देव जी के साथ उनका अटूट संबंध जीवन भर बना रहा। उनका सारा जीवन गुरु सेवा और सिख धर्म के प्रचार में समर्पित रहा। बाबा बुड्ढा जी को एक अत्यंत आध्यात्मिक और विनम्र व्यक्ति के रूप में पहचाना जाता है, जिनका हृदय सिख धर्म के प्रति समर्पित था। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी तक, पांच गुरुओं की सेवा की, और इन्हीं के कर-कमलों से गुरुओं को गुरु गद्दी पर आसीन करने का पवित्र कार्य संपन्न हुआ। यह उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि वह पांच गुरुओं के आध्यात्मिक साक्षात्कार के साक्षी बने। 

बाबा बुड्ढा जी का विवाह भी एक आध्यात्मिक घटना के रूप में देखा गया, जिसमें स्वयं श्री गुरु नानक देव जी और उनकी पत्नी माता सुलखनी जी सम्मिलित हुए थे। इस विवाह के समय गुरु जी ने बाबा बुड्ढा जी के परिवार को अनमोल आशीर्वाद दिए। जब बाबा बुड्ढा जी के माता-पिता, माता गोरां जी और भाई सुघ्घा जी का देहांत हुआ, तब भी गुरु नानक देव जी उनके अंतिम संस्कार में उपस्थित रहे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके परिवार का गुरु घर से कितना गहरा नाता था।

बाबा बुड्ढा जी की आध्यात्मिकता और ब्रह्मज्ञान की गहराई ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी सेवा की पराकाष्ठा इस तथ्य में निहित है कि उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक, लगभग 113 वर्ष की आयु तक, सिख धर्म और गुरु घर की सेवा की। बाबा बुड्ढा जी को दरबार साहिब के प्रथम मुख्य ग्रंथी के रूप में नियुक्त किया गया था, जिससे सिख इतिहास में उनका योगदान और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। 

बाबा बुड्ढा जी का जीवन एक आदर्श रहा है, जो सेवा, विनम्रता और गुरु भक्ति की मिसाल पेश करता है। उनका जीवन सिख धर्म के अनुयायियों के लिए प्रेरणास्त्रोत है और हमेशा रहेगा। उनका नाम सिख धर्म के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है, और उनकी आत्मिक यात्रा हमें दिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से ही जीवन का सही मार्ग पाया जा सकता है।

नोट: लेख में प्रकाशित चित्र काल्पनिक है|


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