सिखों का चरित्र
गुरबाणी की संपूर्ण विचारधारा एक उत्तम चरित्रवान व्यक्ति का निर्माण करती है। चरित्रवान व्यक्ति, वह व्यक्ति होता है जो शाश्वत सत्य को पकड़कर, झूठ और झूठी बातों से बचते हुए, गुरुवाणी के मार्ग पर चलकर अपना जीवन व्यतीत करता है। चरित्रवान व्यक्ति न केवल अपने चरित्र का निर्माण करता है अपितु अपनी कौम के कौमी चरित्र को भी उत्तम आयाम प्रदान करता है। चरित्र दो प्रकार के माने जा सकते है— एक व्यक्तिगत चरित्र और दूसरा कौमी चरित्र! व्यक्तिगत चरित्र का मानक किसी एक व्यक्ति के चरित्र, उसके जीवन के आचरण, उसकी सोच और उसके व्यवहार पर निर्भर करता है, लेकिन कौमी चरित्र का मानक उस राष्ट्र/संप्रदाय/वर्ग/धर्म/समाज के अनुयायियों के समूह की सोच, उनके जीवन जीने के तरीके पर और उनके आचरण पर निर्भर करता है| वर्तमान समय में ऐसा प्रतीत होता है कि अच्छे व्यक्तिगत चरित्र वाले गुरु सिख प्रेमियों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है| पवित्र वाणी का फर्मान है—
रहिणी रहै सोई सिख मेरा॥
ओुह ठाकुरु मै उस का चेरा॥
रहित बिनाँ नहि सिख कहावै॥
रहित बिनाँ दर चोटाँ खावै॥
रहित बिनाँ सुख कबहुं न लहे॥
ताँ ते रहित सु द्रिड़ कर रहै॥
ख़ालसा ख़ास कहावै सोई जाँ के हिरदे भरम न होई ॥
भरम भेख ते रहै निआरा सो ख़ालस सतिगुरु हमारा ॥
क्या वर्तमान समय में सिखों का जीवन उपरोक्त गुरबाणी का अनुसरण करता है?
एक समय था (बहुत समय पहले नहीं) जब सिखों के बारे में कहा जाता था कि सिख झूठ नहीं बोलते। अदालत में सिखों की गवाही लेते समय उन्हें दूसरों गवाहों की तरह किसी धर्म ग्रंथ की शपथ नहीं दिलाई जाती थी अपितु उनके चरित्र पर विश्वास करते हुए और यह सोचकर कि सिख कभी झूठ नहीं बोलते, उन्हें बिना शपथ लिए गवाही देने की इजाजत दी जाती थी| इसका मतलब यह नहीं कि उस समय एक भी सिख झूठ नहीं बोला करता था, संभव है कि कुछ सिख झूठ बोलते हों परन्तु अधिकांश सिखों ने अपने कौमी चरित्र और सच्चाई पर पहरा दिया था। इसलिए सिखों के बारे में यह प्रचलित हो गया कि सिख कभी झूठ नहीं बोलते। क्या वर्तमान समय में हम कह सकते है कि सिख झूठ नहीं बोलते है?
एक समय था जब सिखों के बारे में कहा जाता था कि सिख नशा नहीं करते अपितु वह नशा करने वालों से मेल-जोल भी नहीं रखते परंतु वर्तमान समय में हम पतन की गहरी खाई में खोते जा रहे है|
सिखों के बारे में यह कहावत प्रचलित थी कि बस या ट्रेन में यात्रा करते समय यदि कोई सिख किसी सीट पर बैठा हो और पास में कोई महिला, बुजुर्ग, विकलांग व्यक्ति या बच्चा खड़ा हो तो वह सिख अपनी सीट को उस जरूरतमंद को दे देता है। क्या वर्तमान समय में ऐसा होता है? शायद नहीं…
एक और कहावत है, जो सिखों के बारे में प्रचलित है कि कोई सिख लंगर छकते समय (भोजन प्रशादि) जोर से ‘बोले सो निहाल सत श्री अकाल’ का जयकारा छोड़ते है ताकि आसपास के लोगों को पता चल जाए कि किसी सिख ने लंगर छकना प्रारंभ किया है और यदि कोई व्यक्ति भूखा है तो वह आ सकता है और उस सिख के साथ लंगर छक सकता है, वर्तमान समय शायद ऐसा नहीं होता है, यदि हम जयकारा छोड़ते भी है तो केवल रस्मी तौर पर खाना पूर्ती करते है।
सिखों के बारे में एक और बात प्रचलित थी कि अगर आसपास कोई सिख रहता है तो समझ लें कि हमारे घर की बहू-बेटियां और हमारी इज्जत सुरक्षित है परंतु क्या वर्तमान समय में भी हमारे संबंध में यह धारणा सही है?
एक समय था जब कहा जाता था कि सिख ईमानदारी से किरत कर, मेहनत करते हैं, क्या आज हम यह दावा कर सकते हैं कि हम मलक भागो के नहीं अपितु भाई लालो के वारिस हैं?
एक समय था जब किसी सिख के सामने बीड़ी या सिगरेट पीना बहुत दूर की बात थी। परंतु यदि कोई पीता भी होता तो सिखों को देखते ही वे सम्मान स्वरूप अपनी बीड़ी-सिगरेट बुझा देते थे। यह हमारे चरित्र और हमारी स्थिति का मानक था और आज, जब हम ‘सिक्खी’ वेश में कुछ लोगों को अपने मुंह में बीड़ी/सिगरेट डालते हुए देखते है तो हम हैरान रह जाते है। ऐसे लोग यह भी नहीं सोचते कि उनके कृत्यों से किसी धर्म की प्रतिष्ठा पर कितना बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
हमारे कौमी चरित्र में नित-प्रतिदिन गिरावट आ रही है|
इस आलेख में केवल कुछ उदाहरण दिये गये हैं जिनके कारण सिख स्वयं को न्यारा कहते है। सिखों के कौमी चरित्र का अपना एक मानक है। क्या…. वर्तमान समय में हम गर्व से कह सकते हैं कि हम समग्र रूप से सिक्खी सिद्धांतों और सिक्खी परंपराओं पर पहरा दे रहे हैं?
यदि हम ईमानदारी से आकलन करें तो ऐसा नहीं प्रतित होता है। इस सबका ज़िम्मेदार कौन है? शिरोमणि कमेटी, गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियाँ, सेवा सोसायटी, मिशनरी कॉलेज, रागी, ढाडी, कवि, प्रचारक…? नहीं भाई नहीं… इसके लिए हम सभी जिम्मेदार हैं, जो अपने आप को गुरु के सिख कहलाते हैं।
प्रत्येक सिख का जीवन चरित्र, सिखों के कौमी चरित्र में सकारात्मक या नकारात्मक योगदान देता है। एक सिख का चरित्र पूरी कौम का आईना होता है।
वर्तमान समय की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि कोई करिश्मा रातों-रात हो जाएगा (हो सकता है, अगर गुरु साहिब अपनी मेहर करें तो…… ) और हम हमारे कौमी चरित्र के मानक अनुसार हम अपने चरित्र के स्तर को नये आयाम देने का प्रयत्न करें। सच जानना …… हमें यह उम्मीद जरूर है कि अगर हम, जो अपने आप को सिख कहते हैं, अपने चरित्र को पहले से थोड़ा सा बेहतर बना लें, तो हमारे कौमी चरित्र के आयामों को निश्चित ही एक आदर्श स्थान प्राप्त करके देंगे|
एक आदर्श गुर सिख के चरित्र को स्पष्ट करने के लिए गुरबाणी का पावन, पुनीत फरमान है—
महला 4॥
गुर सतिगुर का जो सिखु अखाए सु भलके उठि हरि नामु धिआवै॥
उदमु करे भलके परभाती इसनानु करे अंम्रित सरि नावै॥
उपदेसि गुरु हरि हरि जपु जापै सभि किलविख पाप दोख लहि जावै॥
फिरि चड़ै दिवसु गुरबाणी गावै बहदिआ उठदिआ हरि नामु धिआवै॥
जो सासि गिरासि धिआए मेरा हरि हरि सो गुरसिखु गुरु मनि भावै॥
जिस नो दइआलु होवै मेरा सुआमी तिसु गुरसिख गुरु उपदेसु सुणावै॥
जनु नानकु धूड़ि मंगै तिसु गुरसिख की जो आपि जपै अवरह नामु जपावै॥ (अंग क्रमांक 305)
अर्थात जो मनुष्य सद्गुरु का सच्चा सिख कहलाता है, वह अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में उठकर ईश्वर के नाम का सिमरन करता है, वह प्रतिदिन सुबह उद्यम करता है| स्नान करता है और फिर नाम रुपी अमृत के सरोवर में सराबोर होकर डुबकी लगाता है| गुरु के उपदेश द्वारा वह प्रभु -रमेश्वर के नाम का जाप जपता है और इस प्रकार उसके तमाम पाप, दोष निवृत हो जाते हैं| फिर दिन निकलने पर गुरु की वाणी का कीर्तन करता है और उठते-बैठते प्रभु का नाम सिमरन करता है| जो गुरु का सिख अपनी सांस एवं ग्रास से मेरे हरि, परमेश्वर की आराधना करता है, वह गुरु के मन को अच्छा लगने लग जाता है| जिस पर मेरा स्वामी दयालु होता है उसे गुर सिख को गुरु उपदेश देता है| नानक भी उस गुर सिख की चरण धूलि मांगता है, जो स्वयं नाम जपता है और दूसरों को भी नाम जपाता है|
सतगुरु के चरणों में अरदास/प्रार्थना है, कृपया हमारा और हमारी कौम का चरित्र उत्तम बने और हम देश के उत्तम नागरिक बनकर अपनी कौम का नाम रोशन करें|