प्रभु स्मरण और ध्यान: एक विवेचना

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ੴ सतिगुर प्रसादि॥

चलते-चलते. . . .

(टीम खोज-विचार की पहेल)

प्रासंगिक भक्त तुकाराम महाराज और भक्त ज्ञानेश्वर माऊली महाराज की पुणे में पालखी आगमन पर विशेष

प्रभु स्मरण और ध्यान: एक विवेचना

संत, महापुरुषों और भक्तों की पवित्र धरती महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर, निवृत्तिनाथ, सोपानदेव, मुक्ताबाई, गोरा कुम्हार, सावता माली, परिसा भागवत, जनाबाई, बंका धेड़, सेननाई, नरहरि सुनार इत्यादि सगुण-निर्गुण भक्ति के अनेक संतों का प्रकाश हुआ है।

वारकरी परम्परा के अनुगामी भक्त नामदेव जी एक अग्रणी कवि, महात्मा एवं निर्गुण भक्ति के प्रमुख प्रसारक-प्रचारक रहे। महान कीर्तनकार और महान अभंगकार के रूप में उनका स्थान सर्वोच्च है। इस पवित्र धरती की देन, भक्त नामदेव जी एवं भक्त त्रिलोचन जी समकालीन संत थे। भक्त नामदेव जी ‘छीबा’ जाति के थे (जिसे मराठी में शिंपी’ भी कहा जाता है)। भक्त नामदेव जी हमेशा प्रभु के स्मरण में सराबोर रहते थे एवं एक उस ‘अकाल पुरख’ की वाणी का स्मरण कर किरत भी किया करते थे ताकि अपने परिवार का ठीक से पालन-पोषण कर सकें। प्रभु स्मरण में लीन भक्त नामदेव जी ने उस ‘अकाल पुरख’ की स्तुति में कई ‘सबद’ (पद्यों) की रचना की है। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ में भक्त नामदेव जी के रचित 61 ‘सबद’ (पद्यों) को संकलित किया गया है। भक्त नामदेव जी एक ऐसे भक्त थे जिन्होंने अपने उपदेशों में प्रभु का स्मरण कैसे करना चाहिए? ध्यान की ऐसी कौन सी विधि है? जो प्रभु स्मरण से जोड़ती है का बहुत सुंदर विश्लेषण गुरुवाणी में अंकित किया है। एक दिन अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में भक्त त्रिलोचन जी अपने कुछ साथियों के साथ प्रात: काल में सूर्य उदय होने के पूर्व भक्त नामदेव जी के निवास स्थान पर चले गए कारण वह देखना चाहते थे कि भक्त नामदेव जी दूसरों को हमेशा प्रभु-स्मरण का उपदेश देते हैं तो भक्त नामदेव जी किस तरह से प्रभु का स्मरण करते हैं? इस प्रभु-स्मरण की विधि को देखने के लिए भक्त त्रिलोचन जी अपने साथियों के साथ भक्त नामदेव जी के निवास पर पहुंचते हैं। भक्त नामदेव जी का व्यवसाय है कपड़ों को रंग देना एवं कपड़ों पर छापों की मदद से विभिन्न कलाकृतियों को आकार देना। भक्त त्रिलोचन जी देखते हैं कि भक्त नामदेव अमृत वेले (ब्रह्म मुहूर्त) में कपड़ों पर छापे लगा रहे हैं। भक्त त्रिलोचन जी ने भक्त नामदेव जी से कहा कि आप तो दूसरों को प्रभु स्मरण का उपदेश देते हैं परंतु आप स्वयं क्या कर रहे हैं? इसे गुरुवाणी में इस तरह अंकित किया गया है—

नामा माइआ मोहिआ कहै तिलोचनु मीत॥

काहे छीपहु छाइलै राम न लावहु चीतु॥

      (अंग क्रमांक 1374)

भक्त त्रिलोचन जी की वाणी को सुनकर, भक्त नामदेव जी ने प्रसन्न चित्त होकर भक्त त्रिलोचन जी का स्वागत कर उन्हें प्रेम-पूर्वक अपने पास बिठाकर और जो उत्तर दिया वह गुरुवाणी में इस तरह अंकित है—

नामा कहै तिलोचना मुख ते रामु संमा्लि।।

हाथ पाउ करि कामु सभु चीतु निरंजन नालि॥

(अंग क्रमांक 1374)

अर्थात् त्रिलोचन जी हाथ पैरों से कार्य करें और हृदय से प्रभु का निरंतर स्मरण करते रहना चाहिए। इसे सुनकर जो साथी भक्त त्रिलोचन जी के साथ आए थे उन्होंने भक्त नामदेव जी से कहा कि यह कैसे संभव है? एक साथ दोनों काम कैसे हो सकते हैं?

साथियों के इस प्रश्न का भक्त नामदेव जी ने प्रसन्न मुद्रा में उत्तर दिया और सुंदर उदाहरणों से समझाया कि प्रभु स्मरण में किस तरह से ध्यान को लगाया जा सकता है? जिसे गुरुवाणी में इस तरह अंकित किया गया है—

आनिले कागदु काटीले गूड़ी आकास मधे भरमीअले॥

पंच जना सिउ बात बतऊआ चीतु सु डोरी राखीअले॥

(अंग क्रमांक 972)

अर्थात् जब छोटे बच्चे क़ाग़ज और गुड़ी (लई) से पतंग बनाकर डोर के सहारे आसमान में पतंग को उड़ाते हैं तो आपस में 5-6 बच्चे हंसी-मजाक करते हैं, वार्तालाप करते हैं, खुश होते हैं परंतु उनका ध्यान डोर से बंधी पतंग जो आसमान में उड़ रही है, उस पर ही होता है।

इसी तरह से सुनार अपने ग्राहकों से भी वार्तालाप करता है और साथ ही सोने को ढालने का काम भी करता है। जिससे ग्राहक भी नाराज ना हो और सोने को ढालने का कार्य भी व्यवस्थित चलता रहे। सुनार का ध्यान सोने की ढलाई पर है और व्यवहार ग्राहक से चल रहा है। जिसे गुरुवाणी में अंकित किया गया है—

मनु राम नामा बेधीअले॥

जैसे कनिक कला चितु माँडीअले॥ रहाउ॥

(अंग क्रमांक 972)

इसी तरह से भक्त नामदेव जी का एक और उदाहरण गुरुवाणी में अंकित है

आनीले कुंभु भराईले ऊदक राज कुआरि पुरंदरीए॥

हसत बिनोद बीचार करती है चीतु सु गागरि राखीअले॥

(अंग क्रमांक 972)

अर्थात् गांव की औरतों ने घड़े में पानी भरकर सर पर उठाया हुआ है और जब वह पैदल पानी भर कर वापस जा रही है तो आपस में हंसी-मजाक, ठिठोली और वार्तालाप करते हुए जा रही हैं परंतु ध्यान पानी से भरी हुई गागर पर ही है कारण यदि गागर गिर गई तो पुन: पानी लेने वापस जाना पड़ेगा।

इस तरह से भक्त नामदेव जी का एक और उदाहरण  गुरुवाणी में अंकित है–

मंदरु एकु दुआर दस जा के गऊ चरावन छाडीअले॥

पाँच कोस पर गऊ चरावत चीतु सु बछरा राखीअले॥

(अंग क्रमांक 972)

अर्थात् पशुओं के तबेले के दस रास्ते हैं (यहां पर शरीर के दस द्वारों का भी संबोधन होता है) और गाय को चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। गाय पाँच कोस दूर तक चरने जाती है परंतु उसका ध्यान हमेशा तबेले में बंधे अपने बछड़े की और ही होता है।

इसी तरह से भक्त नामदेव जी ने एक और सुंदर उदाहरण दिया है। किसे गुरुवाणी में अंकित किया गया है—

कहत नामदेउ सुनहु तिलोचन बालकु पालन पउढीअले।।

अंतरि बाहरि काज बिरूधी चीतु सु बारिक राखीअले।।

(अंग 972)

अर्थात् गृहणी अंदर-बाहर घर पर सभी कार्य करती है परंतु उसका ध्यान पालने में झूल रहे अपने बच्चे की और होता है। कहीं बच्चा गिर ना जाए? या बच्चा रोना प्रारंभ ना कर देवें।

अर्थात् गुरुवाणी में अंकित इन उदाहरणों से भक्त नामदेव जी ने प्रभु के स्मरण को कैसे निरंतर अपने ह्रदय में बसा कर रखना है और गृहस्थ जीवन में रहकर हमें कैसे ध्यान लगाना चाहिए? इसे बड़े ही सुंदर उदाहरणों से स्पष्ट किया है। भक्त नामदेव जी द्वारा उच्चारित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की इन वाणीयों ने हमें उपदेशित किया है कि कलयुग के इस घोर समय में भी हमें अपने काम-काज को संभालते हुए प्रभु स्मरण में हमेशा अपने हृदय को लगा कर अपना लोकपरलोक सवारना चाहिए| निश्चित ही भक्त नामदेव जी की वाणी प्रेमाभक्ति का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। उनकी निर्गुण भक्ति का वैशिष्ट्य उनकी उत्कट तन्मयता और निष्ठा में निहित है। उन्होंने अपने पदों में प्रभु स्मरण पर सर्वाधिक बल दिया है। ईश्वर नाम का जाप ही मानव मात्र के लिये श्रेष्ठ कर्म है। नाम साधना ही ईश्वर प्राप्ति का सीधा, सरल और सच्चा मार्ग है। भक्त नामदेव जी प्रभु स्मरण के सामर्थ्य के समक्ष अन्य संसाधनों को व्यर्थ मानते थे। भक्त नामदेव जी की निर्गुण भक्ति के वाणी के प्रवाह ने सामाजिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक आंदोलन के रूप में विकसित होकर अपनी निर्गुण भक्ति के आध्यात्मिक विचारों द्वारा लोक चेतना को जागृत करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। भक्त नामदेव इस सुदृढ़ परम्परा के पुरोधा वाणीकार हैं।

‘धन्य है भक्त नामदेव जी! धन्य है वारकारी परंपरा! धन्य है गुरुवाणी’!

नोट— 1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज-विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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