स्वयं से छल

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यह कड़वी सच्चाई है कि जब जीवन में इंसान की मन मांगी मुरादें पूरी नहीं होती है तो वह दुनिया के सर पर इसका दोष मढ़ने लगता है। इंसान का यह व्यवहार ही उसकी स्वयं की प्रगति के मार्ग में अवरोध पैदा करता है। स्वयं के कर्मों के नतीजे स्वयं पर ही निर्भर करते हैं, यह अटल सच है कि ‘जो बोओगे-वह ही पाओगे’! इंसान को जब स्वयं के ज्ञानी होने का भ्रम हो जाता है तो वह अपने बहुपक्षीय और बहुआयामी जीवन को जानने की उत्सुकता से विरक्त हो जाता है। वह अपने एक तरफा नजरिए के कारण सच से दूर हो जाता है। इस विश्व में हर पल नए विचारों के आयाम उत्पन्न हो रहे हैं, तकनीकी तेजी से करवट बदल रही है। वर्तमान समय में इंसान जो जानता है वह अंतिम सच हरगिज़ नहीं है। इंसान की चाहत होती कि वह जो सोचता है वह ही फले – फुले और समाज उसकी सोच को ही जस के तस स्वीकार करें, ऐसी कामना उस अकाल पूरख प्रभु-परमेश्वर की परम सत्ता को चुनौती देने वाली और अहंकार का प्रतीक होती है। यह पूरा ब्रह्मांड प्रभु-परमेश्वर के अधीन है। यदि हमें प्रभु-परमेश्वर की कृपा को प्राप्त करना है तो हमारा ह्रदय विकारों से रहित और निर्मल होना अत्यंत आवश्यक है। जब हमें अपने मनमाफिक परिणाम प्राप्त नहीं होते हैं तो हमारे अहंकार को चोट पहुंचती है और अंतर्मन में क्रोध उत्पन्न होता है, निश्चित ही क्रोध आत्म विनाश की और ले जाता है। यदि इससे बचना है तो हमें प्रभु-परमेश्वर की शरण में जाना होगा. . . . . सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि इंसान स्वयं को कर्ता समझकर स्वयं के साथ ही छल करता है। ऐसी महत्वाकांक्षाएँ इंसान को आत्मघाती बना देती है। जब इंसान का जन्म और मृत्यु ही उसके हाथ में नहीं है तो वह कर्ता कैसे हो सकता है? इंसान की प्रत्येक श्वास उस प्रभु – परमेश्वर की कृपा और दया का फल है। इंसान की समस्त प्राप्तियां और नाकामियों में प्रभु-परमेश्वर की इच्छा शुमार होती है। स्वयं को कर्ता मानना उस प्रभु-परमेश्वर के साथ एहसान फरामोशी है। ऐसे विश्वासघाती इंसान इस दुखदाई अवस्था की सर्जना स्वयं करते हैं इसलिए ‘स्वयं से छल’ करने के बजाय इंसान को अपना जीवन उस प्रभु-परमेश्वर के अधीन कर देना चाहिये। जब इंसान प्रभु-परमेश्वर की शरण में चला जाता है तो उसका मन काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और क्रोध से मुक्त हो जाता है। स्वयं प्रभु-परमेश्वर उसके लिए वह ही करते हैं, जिसका कि वह पात्र होता है।

स्वयं से छलकर अपनी अंतरात्मा को कलुषित होने से बचाना ही प्रभु-परमेश्वर की शरण में जाना है।

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