भाई धन्ना सिंह चहल (पटियालवी): सायकल यात्री और लेखक-

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ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चलते-चलते. . . .
(टीम खोज-विचार की पहेल)

भाई धन्ना सिंह चहल (पटियालवी): सायकल यात्री और लेखक-

चरन चलउ मारगि गोविंद॥

मिटहि पाप जपीऐ हरि बिंद॥

कर हरि करम स्रवनि हरि कथा॥

हरि दरगह नानक ऊजल मथा॥ 

         (अंग क्रमांक 281)

अर्थात् अपने चरणों से गोविंद के मार्ग पर चलो, एक क्षण के लिये भी हरि का जाप करने से पाप मिट जाते है। हे नानक! इस प्रकार प्रभु के दरबार में तेरा मस्तक उज्जवल हो जायेगा।

‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के महान, निष्काम सेवादार भाई धन्ना सिंह चहल (पटियालवी) धन्यता का पात्र है, जिसने कश्मीर से लेकर अबचल नगर श्री हजूर साहिब नांदेड़ (महाराष्ट्र) तक और असम से लेकर पेशावर को पार कर जमरोद (अफगानिस्तान) तक के सभी गुरु धामों के दर्शन अपनी सायकल से यात्रा करते हुए किये थे, उस समय भारत देश एक अखंड भारत हुआ करता था, उस समय में सुबा पंजाब के बाहर जाने पर 3 फीट लंबी श्री साहिब (कृपाण) का लाइसेंस लेना पड़ता था। भाई धन्ना सिंह चहल (पटियालवी) का जन्म सन् 1905 ईस्वी. का माना जाता है। आप जी का जन्म ग्राम चांगली तहसील धुरी के ज़िला संगरूर सुबा पंजाब में हुआ था। आप जी के पिता जी का नाम भाई सुंदर सिंह जी था। आप जी ने 11 मार्च सन् 1930 ई. से लेकर 2 मार्च सन् 1935 ई. तक सायकल से ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के गुर धामों की कई हजार मीलों की यात्राएं लगातार की थी। भाई धन्ना सिंह चहल (पटियालवी) के द्वारा की गई सायकल यात्राओं से आप जी ने सभी ऐतिहासिक गुरु धामों के दर्शन–दीदार करने हेतु लगभग 20 हजार माइल्स तक कि आप जी ने सायकल से यात्रा की थी साथ ही उस समय के गुरुधामों के इतिहास का ब्यौरा लिखकर अंकित किया था। आप जी यात्रा करते समय हमेशा अपनी सायकल पर निशान साहिब (‘गुरु पंथ ख़ालसा’ का केसरिया ध्वज), बैटरी वाली टॉर्च, सायकल पर यात्रा की तख़्ती, श्री साहिब (कृपाण) साइकिल के पीछे कैरियर पर एक लोहे का संदूक (ट्रंक) जिसमें भोजन सामग्री, कुछ शस्त्र और यात्राओं के संस्मरणों को लिखने के लिए एक डायरी एवं कुछ जरुरत का सामान हमेशा अपने साथ रखते थे। आप जी ने इन मार्गों पर पड़ने वाले सभी गुरुधामों के दर्शन तो किये ही अपितु उन गुरु धामों की तस्वीरें भी खींची थी, इन गुरु धामों के मार्गों का संपूर्ण सफर भाई धन्ना सिंह जी चहल ने अपनी सायकल पर किया था, आप जी बड़े प्यार से अपनी सायकल को अरबी पातशाह (अरबी घोड़ा) कहकर संबोधित करते थे|

भाई धन्ना सिंह जी महाराजा पटियाला के कार ड्राइवर व उत्तम मैकेनिक थे, साथ ही आप जी हॉकी भी बहुत अच्छी खेलते थे। नौकरी करते हुए आप जी का परिचय गुरु सिख भाई जीवन सिंह जी से हुआ और आप जी उनकी संगत में रहकर सिखी मान–मर्यादाओं के लिए परिपक्व हो गए थे। भाई धन्ना सिंह जी का असीम स्नेह भाई गुरुबक्श सिंह जी से भी था, भाई गुरुबक्श सिंह जी महाराजा पटियाल की रियासत में हेड मैकेनिक के रूप में नौकरी करते थे और भाई धन्ना सिंह जी उनके पारिवारीक सदस्य की तरह थे, अपनी यात्राओं के दौरान वह चिठ्ठी–पत्रों के द्वारा लगातार भाई गुरुबक्श सिंह जी के परिवार से संपर्क बना कर रखते थे। भाई धन्ना सिंह जी ने उस समय में उपलब्ध सभी सिख धर्म ग्रंथों का गहरा अध्ययन किया था, उपलब्ध सभी ऐतिहासिक स्त्रोतों का उन्होंने अपने लिखे हुए इतिहास में जगह–जगह पर ज़िक्र भी किया है। आप जी सायकल यात्री तो थे साथ ही इस यात्रा को संपूर्ण करते हुए आप जी ने अपने अंदर छुपे हुए एक साहित्यकार को प्रकट करते हुए इन गुरुधामों का इतिहास एक उम्दा एवं परिपक्व लेखक की तरह लिखा था। इन रचनाओं को अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि आप जी उत्तम स्तंभकार और कवि थे, एक पंथ दर्दी के दर्द को आप जी ने अपनी कविताओं में प्रकट किया था। एक पंथ दर्दी सायकल यात्री और साहित्यकार, मन में चल रहे हैं अंतर्द्वंदों के हस्तकरधे पर अपनी साहित्यिक रचनाओं को इन यात्राओं को करते हुये, होले–होले बुनते जाता हैं और इस बुनाई को केवल उस अकाल पुरख की कृपा से ही सीखा जा सकता है। निश्चित ही आप जी के द्वारा की गई गुरुधामों की यात्रा ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के लिये एक संजीवनी की तरह थी, आप जी ने अपनी यात्राओं की पारस मणि से बिखरे हुए गुरुधामों के इतिहास को एकत्रित उसे स्वर्णिम अक्षरों में शब्दांकित किया है। इन यात्राओं के द्वारा गुरुधामों के इतिहास को लिखने की यशोगाथा में आप भी का स्थान सर्वोत्तम है और अति विशिष्ट भी है।

आप जी ने गुरुधामों पर सुशोभित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के स्वरूपों के दर्शन कर उनके संबंध में विस्तार से उत्तम जानकारियां और अपने संस्मरण को डायरियों में अंकित किये है। आप जी ने इन गुरु धामों के प्रबंध और प्रबंधकों पर भी विशेष टिप्पणियों अपने संस्मरणों में अंकित की है।

भाई धन्ना सिंह जी ने 11 मार्च सन् 1930 ईस्वी. से लेकर 26 जून सन् 1935 ईस्वी. तक लगभग सौलाह सौ (1600) गुरु धामों की यात्राएं की थी। उस तत्कालिक समय में चित्र (फोटो) खींचना वर्तमान समय की तुलना में ना के बराबर था परंतु भाई धन्ना सिंह जी ने विशेष प्रयत्न कर इन ऐतिहासिक स्थानों और गुरुओं की निशानियों की तस्वीरें खींचते थे, उन तस्वीरों के पीछे उस गुरुधाम का नाम, उस शहर का नाम साथ ही अंग्रेजी अंकों में एवं गुरुमुखी के अंकों में तारीख भी ज़रूर लिखते थे। इस महान कार्य को अंजाम देने के लिये आप जी को सरदार ग़िरफ्तार सिंह जी सोढ़ी जी ने उस समय में 147 रुपये का कोडक कंपनी का कैमरा ख़रीद कर दिया था पश्चात सरदार हजूरा सिंह जी ढि़ल्लों ने भी एक उत्तम दर्जे का कैमरा लेकर आप जी को दिया था (23 अप्रैल सन् 1932 ई.)। पटियाला निवासी भाई जुगराज सिंह जी दर्जी ने आप जी को यात्राओं के लिये उपयुक्त वस्त्र सिल कर दिये थे। इन यात्राओं में भाई धन्ना सिंह जी को जिन प्रेमी सज्जनों से जिस भी प्रकार से सहायता की थी उन सभी का ज़िक्र भाई धन्ना सिंह जी ने अपनी डायरियों में किया है।

उस समय में जिन गुरुधामों को आप जी ने चिन्हीत् किया था वह किसी और अन्य ऐतिहासिक पुस्तक में अंकित हुआ नहीं मिलता है। जब भाई धन्ना सिंह जी निरंतर यात्रा कर रहे थे तो उस समय में एक पंजाबी पत्रिका में ज्ञानी नाहर सिंह जी ने ‘सायकल यात्री का पहाड़ी दौरा’ नामक शीर्षक के अंतर्गत इस तरह अंकित किया था कि भाई धन्ना सिंह जी के द्वारा किए जा रहे अथक प्रयास सराहनीय है। इस यात्रा को शिरोमणि विद्वान और पंथ हितैषी प्रोत्साहित कर भाई धन्ना सिंह जी को उच्च कोटि का सम्मान प्रदान कर रहे हैं। पिछले 5 वर्षों से इस वीर (भाई) ने गांव–गांव जाकर अनेक ऐतिहासिक स्थानों का भ्रमण कर, प्रत्येक ऐतिहासिक गुरुद्वारे के इतिहास को एक उत्तम साहित्यकार की तरह रचित किया है। साथ ही उन गुरुधामों की तस्वीरें लेकर, इस यात्रा को रोचक बनाया है। उस तत्कालीक समय में ना तो वर्तमान समय की तरह सड़कों की सुविधा थी और ना ही अच्छे रास्ते थे, नदी–नालों और दरियाओं पर वर्तमान समय की तरह पुल नही होते थे, ना ही होटल या धर्मशालायें होती थी। कई बार उन्हें अपनी सायकल को कंधे पर उठाकर भी यात्रा जारी रखनी पड़ती थी, इस तरह की कठिन यात्राएं प्रकृति के मिजाज पर भी निर्भर करती थी, निरवैर भाव से ऐसी धार्मीक यात्राएं करना लोहे के चने–चबाने के समान था।

करुणा, कलम और कृपाण के धनी ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के इस लाडले सिख ने अनेक यातनाएं सहन करके, शारीरिक कष्टों को उठाकर, स्वयं का माली नुकसान उठा कर, उस अकाल पुरख के बहाने में रहकर, गुरुओं के आश्रय पर इस यात्रा के महान यज्ञ को जारी रखा था। निश्चित ही भाई धन्ना सिंह जी के द्वारा सायकल पर की गई गुरुधामों की यह यात्राएं बिखरे हुये रास्तों को जोड़ने की अनौखी दास्तान है। इन यात्राओं के दौरान पुरे भारत वर्ष में प्लेग की घातक बिमारी भी फैली हुई थी पर आप जी ने अपनी यात्राओं को जारी रखा था इन यात्राओं में भाई धन्ना सिंह जी चहल एक बार नहीं अपितु कई बार मौत के मुंह से बचे थे। इन 5 वर्षों में भाई धन्ना सिंह जी ने लगभग 20 हजार माइल्स का सफर किया था और 16 सौ गुरुधामों के दर्शन–दीदार किए थे। उस समय में केवल 500 गुरुधामों की ऐतिहासिक जानकारी लिखित स्वरूप में उपलब्ध थी। पाठक स्वयं संज्ञान ले सकते हैं कि जब भाई धन्ना सिंह जी चहल की यात्राओं पर पुस्तक प्रकाशित हुई और ग्याराह सौ के क़रीब नए गुरुधामों की जानकारी उपलब्ध हुई थी। सिख इतिहास का एक बहुत बड़ा हिस्सा अंधेरे की चादर में डूबा हुआ था, जिसे भाई धन्ना सिंह जी की यात्राओं ने एक नए उजाले की किरण को प्रकाशित कर इन नये गुरुधामों की खोज को चिन्हीत किया था। गुरु सिखों के लिये गुरु साहिब जी के चरण–चिन्हों से चिन्हींत स्थान पुज्यनीय, प्रेरणा योग्य और प्रेरणादायक स्त्रोत होते है, जिसे गुरुवाणी में इस तरह से अंकित किया गया है—

जिथे बाबा पैर धरै पूजा आसणु थापणि सोआ॥

सिध आसणि सभि जगत दे नानक आदि मते जे कोआ॥

          (वारां– भाई गुरुदास जी)

गुरुओं के द्वारा चरण चिन्हित स्थान भविष्य में गुरु धामों में परिवर्तित हो गये, निश्चित ही इन गुरुधामों में आत्मिक खोजियों के लिये रूहानियत की खुराक, विद्यार्थियों के लिये विद्यालय, थके हुए मुसाफिरों के लिए आरामगाह, भूखे–प्यासे लोगों के लिये लंगर–पानी और बीमार एवं ज़रूरतमंदों के लिये उत्तम चिकित्सा सुविधा और अनेक प्रकार की सहायता प्रदान की जाती है।

इस यात्राओं के दौरान भाई धन्ना सिंह जी ने ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के पहाड़ी दौरे की भी खोज की थी। भाई धन्ना सिंह जी ने इस मार्ग पर पैदल यात्रा करते हुए रिवालसर नामक स्थान पर पहुंचे थे एवं पुन: यात्रा करते हुए आप जी श्री आनंदपुर साहिब तक पहुंचे थे, यह वह ही मार्ग था जिस पर गुरु पातशाह जी ने स्वयं प्रस्थान और आगमन कर अपनी यात्राओं को संपूर्ण किया था।

उस समय पर आप जी राजस्थान की यात्रा नहीं कर पाए थे, आप जी को अचानक गोली लग गई थी, इस कारण से आप जी सिंध, कराची, क्वेटा और बलूचिस्तान की यात्रा भी नहीं कर पाए थे, जिसका उन्हें अपने अंतिम समय में बेहद अफसोस था। आप जी अपने जीवन में भारत से बाहर अफगानिस्तान, ईरान, बगदाद, मक्का शरीफ, सऊदी अरब, तिब्बत और चीन में जाकर भी गुरुधामों की खोज करना चाहते थे परंतु उस समय में आपको पासपोर्ट नहीं मिल सका था। आप जी ने पासपोर्ट बनाने हेतु अपनी पुश्तैनी ज़मीन को बेचने की भी पेशकश की थी। भाई धन्ना सिंह जी के साथ एक बड़ा हादसा हो गया था जिसकी जानकारी 5 मार्च सन् 1935 ईस्वी. में अंग्रेजी अखबार ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित समाचार से मिलती है। जब उनके सहयोगी हीरा सिंह जी राइफल को संभाल रहे थे तो अचानक दुर्घटनावश गोली चल गई थी, जो इस महान सायकल यात्री और लेखक के लिए जानलेवा साबित हुई थी।

भाई धन्ना सिंह जी चहल ने कुल 8 डायरीयों को अपनी यात्रा के संबंध में लिखा है, जिसके कुल 3259 पृष्ठ है, अफसोस जो डायरी वह अपनी अंतिम यात्रा के समय लिख रहे थे वह विलुप्त हो गई, जिसके कारण उनके द्वारा 1 नवंबर सन् 1934 ई.। से लेकर 2 मार्च सन् 1935 ईस्वी. तक की ऐतिहासिक सामग्री प्राप्त नहीं हो सकी। इन 8 डायरियों में लिखा हुआ इतिहास वास्तव में कोई जीवन गाथा नहीं है, संस्मरण भी नहीं है, वार्ता नहीं, किस्सागोई भी नहीं, यह स्मृतियों का पुन: स्फुरण भी नहीं, कल्पना भी नहीं, वास्तव में यह एक सिख इतिहास प्रेमी और पंथ दर्दी के मनोवेगों के घनीभूत दबाव से उत्पन्न उद्गार हैं। जगह–जगह फैले हुए कुछ रूहानियत के एहसास है, कुछ आहटें हैं, जो किसी आख्यान–विख्यान से कमतर नहीं है। इन डायरियों में अंकित छोटी–बड़ी टिप्पणियों के जरिये सिख इतिहास की सभ्यताओं के विस्तृत फ़लक सरोकारों के अनंत क्षितीज और सामाजिक चिंतन के विभिन्न आयामों का प्रकटीकरण है।

भाई धन्ना सिंह जी से प्राप्त डायरियों को लगभग 75 सालों तक उनके पारिवारिक मित्र भाई गुरबख्श सिंह जी के परिवार में पूरी ज़िम्मेदारी के साथ संभाल कर रखा था। पंजाबी भाषा विभाग के पूर्व संचालक और ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के निष्काम सेवादार सरदार चेतन सिंह जी ने बड़ी मेहनत से खोजकर पंजाबी ‘सथ लांबड़ा’ संस्था के सहयोग से 75 वर्षों के पश्चात इस यात्रा के वृतांत को ‘गुर तिरथ साईकल यात्रा’ के शीर्षक से एक ग्रंथ रूपी पुस्तक को गुरुमुखी भाषा में प्रकाशित किया गया। इस ग्रंथ रूपी पुस्तक का संपादन स्वयं सरदार चेतन सिंह जी ने किया है। भाई धन्ना सिंह जी ने हिमालय पर्वत के जैसे इस ऊंचाई वाले महान कार्य को अपनी दृढ़ता और निश्चय से केवल 30 वर्ष की आयु में 5 सालों तक अत्यंत कठिनाइयों और जोखिमों को उठाकर इस यात्रा को करते हुए इस इतिहास को रचित कर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ को अपनी बहुमूल्य सेवाएं अर्पित की है, आप जी के द्वारा की गई महान और निष्काम सेवाओं को सादर नमन!

साभार उपरोक्त लेख का मुख्य स्त्रोत गुरुमुखी भाषा में रचित की गई ग्रंथ रूपी पुस्तक ‘गुर तिरथ साईकल यात्रा’ (संपादक— सरदार चेतन सिंह जी) है। इस लेख को लिखने के लिये इतिहासकार सरदार भगवान सिंह जी ‘खोजी’ (टीम खोज–विचार के मार्ग दर्शक) ने विशेष प्रोत्साहित किया है।

नोट—1. ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।

2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।

साभार लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।

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दिपावली शुभचिंतन!

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