सरसेनापति हिंदू हृदय सम्राट स्वर्गीय बालासाहेब जी ठाकरे के जन्मोत्सव पर विशेष (दिनांक 23 जनवरी)।

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सरसेनापति हिंदू हृदय सम्राट स्वर्गीय बालासाहेब जी ठाकरे के जन्मोत्सव पर विशेष (दिनांक 23 जनवरी)।

‘जमलेल्या माझ्या तमाम हिंदू बांधवांनो, भगिनींनो आणि मातानों’! अर्थात एकत्रित मेरे तमाम हिंदू भाई बहनों और माताओं यह शब्द कानों को सुनाई पड़ते ही सामने एकत्रित लाखों का जनसमुदाय स्तब्ध हो जाता था, एक निश्चल सा शांत माहौल! और आने वाले 50 से 55 मिनट तक एकत्रित जनसमुदाय पूरे ध्यान से रोमांचित हो कर इस भाषण को सुनता था। भाषण समाप्त होने के पश्चात ठाकरे शैली में किए गए भाषण के मुद्दे, टीका–टिप्पणी, इसी पर संपूर्ण भाषण का विश्लेषण पूरे देश में प्रत्येक जाग्रत नागरिक की जुबान पर और देश के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर लगातार चलता था। भाषण के पहले वाक्य से लेकर अंतिम वाक्य जय हिंद, जय महाराष्ट्र तक की पकड़, एकत्रित जन समुदाय और देश के नागरिकों पर बालासाहेब के भाषण की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। अपनी ठाकरे शैली में दिए गए भाषण के सामर्थ्य पर एकत्रित जनसमुदाय कभी जोर से खिलखिला कर हंस पड़े तो कभी संपूर्ण जन समुदाय की आंखें नम हो जाती थी। अपने लोगों के हक में और देशभक्ति से ओतप्रोत भाषण निश्चिती प्रत्येक श्रोता के ह्रदय में एक विशेष ऊर्जा का संचार करता था। ऐसे महान तपस्वी नेता, हम महाराष्ट्र वासियों के थे सरसेनापति बालासाहेब ठाकरे! जिन्होंने अपने भाषण से हिंदुत्व की सुनामी का निर्माण किया था।

प्रारंभिक जीवन– बालासाहेब जी का जन्म 23 जनवरी सन् 1926 ई. को माता रमाबाई जी की कोख से हुआ था आपके पिता केशव सीताराम जी ठाकरे अर्थात् प्रबोधनकार ठाकरे जी थे, इस दंपति की 9 संतानों में बालासाहेब सबसे बड़े थे। पिता प्रबोधनकार ठाकरे अपने समय में माने हुए सामाजिक कार्यकर्ता थे, आपने सन् 1950 ई. में हुए संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में सक्रिय भाग लिया था। प्रबोधनकार ठाकरे जी ने अपने समय में लगातार यह प्रयत्न किया था कि भारत की राजधानी का सम्मान मुंबई को प्राप्त होना चाहिए।

बालासाहेब उत्तम व्यंग चित्रकार थे, आपने अपने व्यावसायिक जीवन का प्रारंभ मुंबई से प्रकाशित अंग्रेजी अखबार फ्री प्रेस जर्नल के माध्यम से एक व्यंग्य चित्रकार के रूप में किया था। आप जी विश्व के जाने-माने प्रख्यात व्यंगचित्रकार आर. के. लक्ष्मण के सानिध्य में कुछ समय तक कार्यरत रहे थे। उस समय विशेष रूप से इनके व्यंगचित्र ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के रविवारी अंक में प्रकाशित किए जाते थे। सन् 1960 ई. में बालासाहेब जी ने इस कार्य को तिलांजलि दे दी थी एवं स्वयं का मार्मिक नाम से मराठी भाषा में साप्ताहिक अखबार प्रारंभ किया था। मराठी भाषा के प्रथम व्यंगचित्र साप्ताहिक के इस अखबार का प्रकाशन उस समय के महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री यशवंतराव जी चव्हाण जी के कर–कमलों से हुआ था। इस माध्यम से बालासाहेब जी ने अपने लोगों के हक के लिए लड़ते हुए गैर मराठियों की जो जनसंख्या मुंबई और महाराष्ट्र में बढ़ रही थी उसके विरोध में आप जी ने अपने विचार प्रकट किए थे।

शिवसेना की स्थापना–

बालासाहेब ठाकरे जी के द्वारा शिवसेना की स्थापना 19 जून सन् 1966 को की गई थी। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य, मुंबई और महाराष्ट्र में मराठी लोगों के हक में आवाज उठाया था। इस संगठन ने मराठी लोगों को संगठित कर राजनीति में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया और चुने हुए अपने प्रतिनिधियों के द्वारा मराठी और मराठी मानुस के हक में आवाज उठाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

विकासशील और पुरोगामी महाराष्ट्र में समाज सुधारकों की समृद्ध परंपरा प्रारंभ से ही है परंतु स्थानीय मराठी लोगों का विकास नहीं हुआ है। बालासाहेब जी हमेशा कहते थे कि महाराष्ट्र में सुविधा है परंतु मराठी मानुस दुविधा में है। शोकांतिका है कि, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा उद्योग हैं परंतु मराठी तरुण बेरोजगार हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा पैसों का चलन है परंतु मराठी मानुस गरीब है। संपूर्ण भारत में महाराष्ट्र का सम्मान है परंतु मराठी माणूस को महाराष्ट्र ही नहीं अपितु मुंबई में भी अपमानित किया जाता है। ऐसी कठिन परिस्थितियों को बदलने के लिए और मराठी मानुस के हकों के लिए ही प्रमुख रूप से शिवसेना की स्थापना की गई थी। जब शिवसेना की स्थापना हुई तो मुंबई की कपड़ा मिलों के मजदूरों पर कम्युनिस्टों की मजदूर यूनियन का वर्चस्व था। शिवसेना ने इन कम्युनिष्ट यूनियनों का प्रारंभ से ही विरोध किया था। शिवसेना की कामगार यूनियन ने एक–एक कर सभी कम्युनिष्ट यूनियनों को मुंबई से हद पार किया और बालासाहेब जी की शिवसेना ने अपना वर्चस्व निर्माण कर बालासाहेब जी को मुंबई के ‘अनाभिषिक्त’ सम्राट के रूप में निरूपित कर दिया था।

‘हटाओ लूंगी–बजाओ पुंगी’ जैसी घोषणा देकर मुंबई में सन् 1960 ई. से लेकर सन् 1970 ई. तक मराठी लोगों को रोजगार देने के लिए बालासाहेब की शिवसेना ने विशेष प्रयत्न किए थे। कालांतर में उत्तर भारत और बिहार से बेरोजगारों के झुंड के झुंड काम धंधे की तलाश में मुंबई और महाराष्ट्र में आना प्रारंभ हो गए थे। स्थानीय मराठी लोगों के हक में मिलने वाले रोजगार की समस्या दिन-ब-दिन कठिन होती जा रही थी, इस कठिन काल को पहचान कर ही बालासाहेब जी ने एक घोषणा पुन, की थी ‘एक बिहारी सौ बीमारी’ उस समय इस घोषणा को उत्तम प्रतिसाद मिला था।

शिवसेना का प्रथम दशहरा (दसरा) मेला 30 अक्टूबर सन् 1966 ई. को शिवतीर्थ मैदान पर संपन्न हुआ था। इस मेले में लगभग पांच लाख से भी ज्यादा शिवसैनिकों ने शिरकत की थी, उस दिन से ही बालासाहेब जी का ओजस्वी भाषण और शिवतीर्थ मैदान पर लाखों शिवसैनिकों की भीड़ मानो एक प्रस्थापित समीकरण ही बन गया था। उस समय से ही दशहरा (दसरा) मेले में उपस्थित होकर शुभ विचारों के सोने को लूटने की परंपरा वर्तमान समय में भी अखंडित चली आ रही है। अपनी ठाकरे शैली में दिए गए रोमांचकारी और पुलकित करने वाले भाषण और तीव्र व्यंग्यात्मक लेख के लिए बालासाहेब जी अत्यंत प्रसिद्ध थे। विशेष रूप से आप जी की लेखन शैली पर प्रबोधनकार ठाकरे, प्रल्हाद केशव अत्रे जैसे विद्वानों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता था।

अपने प्रारंभ के काल से ही शिवसेना कम्युनिस्टों की प्रबल विरोधी थी, उस समय में कम्युनिस्टों का वर्चस्व समाप्त करने हेतु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बालासाहेब जी कि शिवसेना को छुपा हुआ समर्थन हुआ करता था। इसलिए श्रीमती इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लागू किया था तो उस आपातकाल को शिवसेना का पूर्ण रूप से समर्थन था और उस समय बालासाहेब जी ने आपातकाल को ‘अनुशासन का पर्व’ संबोधित कर एक लेख अपने साप्ताहिक अख़बार मार्मिक में भी लिखा था। पश्चात् बालासाहेब जी ठाकरे ने अपनी ठाकरे शैली में श्रीमती इंदिरा गांधी पर करारी–कठोर टिप्पणियां भी की थी और अपने व्यंग्य चित्रों के माध्यम से इंदिरा गांधी को उन्होंने हमेशा फटकार लगाई थी। सन् 1984 ई. में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी तो इंदिरा गांधी की नीतियों पर टिप्पणी करने वाले इन्हीं बालासाहेब जी ने अपने व्यंग्य चित्रों के माध्यम से उन्हें अनोखी श्रद्धांजलि भी अर्पित की थी। इस व्यंगचित्रकारी के माध्यम से बालासाहेब जी ने दर्शा दिया था कि एक उत्तम व्यंग चित्रकार के निरीक्षण की दृष्टि कितनी व्यापक और वेधक हो सकती है? मराठी में प्रकाशित ‘दैनिक सामना’ शिवसेना का मुखपत्र है। स्वर्गीय बालासाहेब जी अपने अंतिम समय तक इस दैनिक सामना मुखपत्र के संस्थापक–संपादक रहे थे। बालासाहेब जी हमेशा कहते थे कि शिवसेना प्रमुख का पद मेरे लिए प्रधानमंत्री के पद से भी श्रेष्ठ है, मुंबई में मराठी मानुस के हकों में लड़ने वाली और मराठी अस्मिता के लिए लड़ने वाली शिवसेना को बालासाहेब जी ने अपने कुशल नेतृत्व गुण और असामान्य संगठन कौशल के दम पर महाराष्ट्र के कोने–कोने में पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य किया था। जब बालासाहेब जी मंच पर भाषण देने के लिए पहुंचे थे तो मंच पर हलचल प्रारंभ हो जाती थी और पूरी सभा में उद्घोषणा प्रारंभ हो जाती थी, ‘हिंदू हृदय सम्राट माननीय श्री बालासाहेब ठाकरे यांचा विजय असो’, जय भवानी – जय शिवाजी, इन गगनभेदी नारों से संपूर्ण वातावरण रोमांचित हो उठता था, जब बालासाहेब जी मंच पर आते थे तो प्रथम महाराष्ट्र के आराध्य देव छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा को नमन करते थे और साथ ही ढोल ताशे की गगनभेदी आवाजों से ‘जय भवानी – जय शिवाजी’ की घोषणा से वातावरण गूंज उठता था। बालासाहेब जी के भाषणों में श्री शरद पवार जी, श्रीमती सोनिया गांधी जी, श्री मुलायम सिंह जी, लालू प्रसाद यादव एवं पाकिस्तान पर विशेष रूप से टीका – टिप्पणी की जाती थी। आदरणीय श्री शरद पवार साहेब पर आपका अत्यंत स्नेह था, आप जी के भाषणों के समय ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे श्री शरद पवार जी उनके सम्मुख ही खड़े हैं। अपनी शानदार वक्तव्य शैली का परिचय देते हुए बालासाहेब जी, श्री शरद पवार जी की नीति और व्यक्तिमत्व पर विशेष प्रहार करते थे। अपने राजकीय विरोधियों का हमेशा विरोध कर उनकी नकल उतारने में आपको विशेष महारत हासिल थी। उपहास, परिहास और उत्तम व्यंगों के सहारे, ठाकरे शैली का भाषण अपने आप में उत्तम वक्तव्य कला का परिचायक था।

छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास से संबंधित उनके जीवन के प्रसंगों को चित्रित कर और वर्तमान समय की राजनीतिक परिस्थितियों में समानताओं को खोज कर स्वयं के शिवसैनीक, मावले (मराठी योद्धा) और विरोधक अर्थात औरंगजेब के सरदार, इस भावना को सामने रखकर जोरदार टीका–टिप्पणी करते थे बालासाहेब! आरोपों को तोप के गोले के समान उपयोग कर लगातार प्रहार करना और अत्यंत जोश से अपने विरोधकों पर किए गए शाब्दिक हमले, ठाकरे शैली के भाषणों की विशेषता हुआ करती थी। हिंदुत्व के समान विचारों के कारण ही शिवसेना ने सन् 1995 में भारतीय जनता पार्टी से मिलकर गठबंधन की सरकार का निर्माण किया था और महाराष्ट्र में पहली बार शिवसेना का मुख्यमंत्री मनोनीत हुआ था। निश्चिती इस गठबंधन सरकार का रिमोट बालासाहेब जी के हाथों में था। बालासाहेब जी अक्सर अपने भाषणों में अधोरेखित करते थे कि रिमोट मेरे हाथों में है। अपने स्पष्ट विचारों से बालासाहेब स्वयं उद्बोधन करते थे कि शिवसेना में लोकतंत्र नहीं है, आप जी बेधड़क होकर हिटलर की नीतियों का गुणगान करते थे परंतु हिटलर ने जूं (इसरायली) लोगों की जो हत्या की थी उसका आप पुरजोर विरोध भी करते थे। आप का स्पष्ट मत था कि जैसे हिटलर ने जर्मनी की हुकूमत को चलाया था, ठीक उसी प्रकार से भारत की राजसत्ता को चलाना चाहिए। वो कहते थे कि हिटलर जैसे एक कलाकार था वैसे ही मैं भी एक कलाकार हूं। धर्म के नाम पर वोट मांगने पर भारत के निर्वाचन आयोग ने आप जी के मतदान के अधिकार पर 28 जुलाई सन् 1999 ई. को 6 वर्षों के लिए पाबंदी लगा दी थी, आप जी पर 11 दिसंबर सन् 1999 ई. से 30 दिसंबर सन् 2005 ई. तक इन 6 वर्षों के लिए आपके मतदान का अधिकार और किसी भी चुनाव में भाग न लेने पर पाबंदी लगा दी गई थी। इस पाबंदी के हटने के पश्चात आप जी ने पहली बार मुंबई महानगर पालिका के चुनाव में मतदान किया था।

शिवसेना हमेशा मुंबई में मराठी माणुस के हक और अधिकारों के लिए संघर्ष करती रही है। यही बालासाहेब जी के जीवन का मंत्र था, गठबंधन की सरकार के समय बालासाहेब जी की संकल्पना से झुणका भाकर केंद्र, (स्वस्त भोजन थाली), वृद्धाश्रम योजना, झोपड़पट्टी वालों के लिए घर, पुणे–मुंबई एक्सप्रेस हाईवे और मुंबई के उड्डाण पुल, कृषि क्षेत्र और औद्योगिक क्षेत्रों में विकास इत्यादि महत्वपूर्ण कार्य संपन्न हुए थे। बालासाहेब जी के आदेश का पालन करने हेतु मुंबई/महाराष्ट्र में कहीं भी, कभी भी और कुछ भी करने की मानसिकता शिवसैनिकों की रहती थी, शिवसैनिकों की कतार बद्ध और अनुशासित फौज ही शिवसेना की असली ताकत है। इस ताकत के दम पर ही आज महाराष्ट्र राज्य के कोने–कोने में तालुका स्तर पर शिवसेना की शाखाओं का जाल बिछा हुआ है। ऐसे अनुशासित और कट्टर शिवसैनिकों के कारण ही बालासाहेब जी के निधन के पश्चात भी और जब मोदी नाम की सुनामी इस देश में चल रही थी तो भी भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन को तोड़कर, स्वतंत्र रूप से लड़कर महाराष्ट्र राज्य में शिवसेना के 63 विधायक चुनकर आए थे। यह महाराष्ट्र के जनमानस पर बालासाहेब जी के विचारों का करिश्मा है, जो उनके निधन के पश्चात वर्तमान समय और भविष्य में भी बना रहेगा।

बालासाहेब जी की ठाकरे भाषण शैली के कारण ही हिंदुत्व की सुनामी तैयार हुई थी और गठबंधन के सांसद चुनाव जीत कर आए थे। इतिहास गवाह की बालासाहेब जी के भाषणों से उनकी सभा में जो हिंदुत्व की सुनामी तैयार होती थी वो वोटों में परिवर्तित होकर मतदान केंद्रों तक पहुंची थी और इसे मतदान केंद्रों तक सुरक्षित पहुंचा कर मतों में परिवर्तित करने हेतु शिवसैनिकों का संगठन कौशल्य बालासाहेब जी ने अत्यंत मजबूती से तैयार किया था। ‘बालासाहेब जी हिंदुत्व के ध्वज स्तंभ थे’ बम विस्फोट, देश विघातक कृत्य करने वाले धर्मांध आतंकवादियों को इस देश में रहने का कोई अधिकार नहीं है। केवल वोटों के लिए अल्पसंख्यकों को सर पर चढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं है, देश और देश भक्ति को मानने वाला अल्पसंख्यक ही सच्चा भारतीय अल्पसंख्यक है और ऐसे लोगों से मेरा कोई वैर नहीं है, कोई विरोध नहीं है, ऐसे स्पष्ट विचार बालासाहेब जी ने अपने हिंदुत्व के विचारों को रखते हुए दिए थे, उन्हें ‘हिंदू ह्रदय सम्राट’ की उपाधि से शिवसैनिकों ने विभूषित किया था। आप जी पाकिस्तान को सामने रखकर तीक्ष्ण और आक्रमक हिंदुत्व की भूमिका इस तरह से प्रस्तुत करते थे कि आर. एस. एस. और भाजपा का हिंदुत्व उनके विचारों के सामने फीका प्रतीत होता था। बालासाहेब जी की शब्दावली बेधड़क, बेहिचक और बिंदास थी। जिन शब्दों का उपयोग करने से आम आदमी घबराता था उन्हीं शब्दों को लेकर बालासाहेब जी बेधड़क आक्रमक भूमिका निभाते थे। जब सन् 1990 ई. में आतंकवादियों ने प्रसिद्ध अमरनाथ यात्रा को रोकने की धमकी दी थी और खुला चैलेंज करा था कि कोई भी यात्री जिंदा इस यात्रा से वापस नहीं आएगा तो ऐसे कठिन समय में आपने निसंकोच होकर वक्तव्य दिया था कि 99% हज यात्रा की और जाने वाले विमान मुंबई हवाई अड्डे से ही जाते हैं, मैं भी देखूंगा की मक्का–मदीने की यात्रा मुंबई से कैसे होती है? परिणाम स्वरूप दूसरे दिन से ही अमरनाथ यात्रा निर्विघ्नं प्रारंभ हो गई थी। सन् 1992 ई. में टीवी शो ‘आप की अदालत’ कार्यक्रम में जब एंकर ने बालासाहेब जी से पूछा कि बाबरी मस्जिद गिराने में शिवसेना का हाथ है क्या? तो उस समय आप ने बड़ी बेबाकी से उत्तर दिया था कि यदि शिवसैनिकों ने यह कार्य किया है तो यह मेरे लिए अभिमान की बात है।

बालासाहेब जी की जीवनी पर बनी हुई फिल्म में एक प्रसंग ऐसा दिखाया गया है कि जब बालासाहेब जी अपने नागपुर दौरे पर थे तो कुछ गुंडों ने उन पर हमला कर दिया था और बालासाहेब जी ने अकेले ही उन गुंडों की अच्छे से धुलाई कर दी थी। वास्तविकता में यह प्रसंग बालासाहेब जी के जीवन चरित्र से हूबहू मेल खाता है और इसमें कहीं भी काल्पनिकता नजर नहीं आती है।

सन् 1982 ई. में मिल मजदूरों की हड़ताल के कारण मुंबई का माहौल अत्यंत गर्म हो गया था। ऐसे विकट समय में मिल मजदूरों के समर्थन में श्री शरद पवार जी, श्री जॉर्ज फर्नांडिस जी एवं बालासाहेब जी महाराष्ट्र के यह तीनों दिग्गज नेता शिवसेना के दशहरा (दसरा) मेले में एकजुट हो गए थे, श्री शरद पवार साहिब और बालासाहेब जी ठाकरे दोनों ही महान नेताओं को कला, क्रिकेट, साहित्य और संगीत में विशेष रूचि है, इस कारण से जब भी महाराष्ट्र के इन दो महान नेताओं की मुलाकात होती थी तो इन विषयों की चर्चा में नेता द्वय रम जाते थे। महाराष्ट्र की अनेक समस्याओं का इन नेता द्वय ने एकमत होकर निराकरण किया है। जब मराठवाडा विद्यापीठ के नामांकरण का विवाद विकृत रूप ले चुका था तो इन नेता द्वय ने अपनी समग्र दृष्टि से एकमत होकर मराठवाडा विद्यापीठ का नाम डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर कर, इस कठिन प्रश्न का सर्वमान्य हल निकाला था। श्री शरद पवार जी की कन्या सांसद सुप्रिया सुळे जी ने जब सन् 2006 ई. में राज्यसभा के लिए नामांकन भरा तो बालासाहेब जी ने अपने मित्र श्री शरद पवार जी को खड़े बोल, बोल कर सुनाएं थे और कहा था कि मैं अपनी पुत्री के समान सुप्रिया सुळे के विरोध में अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करूंगा और तो और उन्होंने दबाव डालकर भारतीय जनता पार्टी को भी अपना उम्मीदवार खड़ा करने से रोका था। इस कारण सुप्रिया ताई सुळे निर्विरोध चुनकर सांसद बन गई थी। अपने भाषणों में बालासाहेब जी श्री शरद पवार जी को मैदे का पोता कह कर उत्पीड़ित करते थे परंतु राजनीति से हटकर सच्ची मित्रता को कैसे निभाया जाता है इसके लिए सच में बालासाहेब जी की दोस्ती एक आदर्श उदाहरण है। राजनीति के अखाड़े में अपने विरोधियों को चारों खाने चित्त करने वाले बालासाहेब व्यक्तिगत जीवन में मित्रता के नाते को अपने संवेदनशील और ममतामई दृष्टिकोण से सिंचत करते थे। बालासाहेब जी में एक अत्यंत विशेष गुण मौजूद था, जो ज्यादा कर के लोगों को पता नहीं है उन्हें वनस्पति और आयुर्वेदिक औषधियों का अत्यंत उत्तम ज्ञान था। अपने निवास मातोश्री के पीछे की और आप जी ने असंख्य आयुर्वेदिक औषधियों और वनस्पतियों का संवर्धन किया था एवं वे स्वयं इनकी देखभाल भी करते थे। अपने आपसी वार्तालाप में यदि किसी को कोई दुख या जख्म हो तो बड़ी सहजता से कहते थे कि उस कोने में दाएं बाजू की दूसरी कतार में तीसरे क्रमांक की वनस्पति को तोड़कर उसका सेवन करो, तुरंत आराम प्राप्त होगा। ऐसा गहन अभ्यास आप जी का वनस्पतियों के संबंध में था। सन् 2005 ई. में श्री शरद पवार साहेब जी जब कर्क रोग से ग्रस्त हो गए थे तो बालासाहेब जी ने संवेदनशील होकर, इंसानियत के जज्बे को दर्शाने वाला एक पत्र अपनी खास ठाकरे शैली में कृति हुकुम शब्द को लिखकर लिखा था। इसमें उन्होंने विशेष आत्मियता दर्शाते हुए लिखा था कि ‘तुम्हीं तुमच्या आरोग्य ची कालजी घेतली पाहिजेत, असा आदेश मी तुम्हाला देतो’ अर्थात तुमने तुम्हारी तबीयत की चिंता स्वंय करनी चाहिए, ऐसा मैं तुम्हें आदेश दे रहा हूं। इन शब्दों से इन दोनों महान दोस्तों की दोस्ती के रिश्ते कितने आत्मिय थे? स्पष्ट रूप से प्रकट होते हैं। इसके अतिरिक्त बालासाहेब जी के श्री प्रमोद महाजन जी से भी अत्यंत निकट के संबंध थे। वह हमेशा प्रमोद जी को गठबंधन के शिल्पकार कहकर संबोधित करते थे। भारतीय जनता पार्टी की और से गठबंधन के कठिन प्रश्नों का निराकरण करने हेतु श्री प्रमोद महाजन जी ही मातोश्री पर अक्सर जाते थे। इस कारण से भी कई कठिन प्रसंगों में गठबंधन टिका रहा था। गुजरात में हुए दंगल के पश्चात श्री नरेंद्र मोदी जी को मुख्यमंत्री के पद से भार मुक्त करना चाहिए यह निर्णय लेकर जब श्री लाल कृष्ण आडवाणी जी आप जी से मिलने गए तो आप जी ने स्पष्ट रूप से श्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में अपना निर्णय सुनाते हुए कहा था कि यदि मोदी गए तो गुजरात की सत्ता भी भारतीय जनता पार्टी के पास से चली जाएगी। भारतीय जनता पार्टी के द्वारा उस समय जो निर्णय लिया जा रहा था उसकी खिलाफत बालासाहेब जी ने की थी। बालासाहेब जी और अटल बिहारी जी नेता द्वय आपस में एक दूसरे का अत्यंत आदर करते थे, अटल जी जब प्रधानमंत्री थे तो उस समय भी इन नेता द्वय में अक्सर चर्चा होती थी। आपस में इनके अत्यंत मैत्रीपूर्ण संबंध थे। वास्तविकता में यदि दोनों के स्वभाव अलग थे तो क्या हुआ? दोनों ही कला प्रेमी थे जब वाजपेयी जी ने अपनी सरकार बनाई तो बालासाहेब जी ने अटल जी से स्पष्ट कहा था कि शिवसेना को कितने मंत्रालय देना है? और कौन से? इन सभी का निर्णय लेने का पूरा हक आपको है और यदि हमें मंत्री पद नहीं दिया तो भी हम भारतीय जनता पार्टी के साथ रहेंगे, ऐसा मैं आपको वचन देता हूँ। एन.डी.ए. की सरकार पर शिवसेना के मुखपत्र सामना से अक्सर टीका–टिप्पणी होती थी परंतु वैयक्तिक स्तर पर दैनिक सामना ने वाजपेयी जी को कभी भी लक्ष्य नहीं बनाया था। बालासाहेब जी ने कई बार अपने वक्तव्य से स्पष्ट किया था कि भारतीय जनता पार्टी के साथ हमेशा हमारा गठबंधन रहेगा ऐसा जरूरी नहीं है। वह स्पष्ट रूप से कहते थे कि यदि महाराष्ट्र का कोई व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद पर अर्थात प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति पद के लिए मनोनीत किया जाएगा तो निश्चित ही शिवसेना राजनीति को ना देखते हुए ऐसे व्यक्ति को महाराष्ट्र के हित में अपना पूर्ण समर्थन व सहयोग देगी। इस नीति को सामने रखते हुए आप जी ने जब प्रतिभाताई पाटील को सन् 2007 ई. में यू.पी.ए. ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार मनोनीत किया तो उन्हें बिना शर्त अपना समर्थन प्रदान किया था। विविध राजकीय पार्टियों में बालासाहेब जी के अत्यंत स्नेही मित्र भी थे। यदि उनके मित्र परिवार में कोई किसी दूसरी राजनीतिक पार्टी में हो तो भी वह अपने ऐसे मित्रों के लिए राजनीति को त्याग कर उनकी हमेशा मदद करते थे।

सन् 2012 ई. में उनके अभिन्न मित्र यू.पी.ए. के उम्मीदवार श्री प्रणव मुखर्जी को भी उन्होंने अपनी राजनीति को नजरअंदाज कर अपना पूर्ण समर्थन प्रदान किया था, देश में निश्चित ही रॉयल बंगाल टाइगर को मराठा टाइगर का समर्थन मिलना स्वाभाविक था, उस समय ऐसी टिप्पणी अत्यंत प्रचलित हुई थी। स्वर्गीय बालासाहेब जी की विशेषता थी कि वह अपने निवास मातोश्री से कभी–कभार ही बाहर जाते थे, जिनको उनसे मिलने होता था उन्हें बालासाहेब जी को मिलने मातोश्री पर ही जाना पड़ता था। अपनी स्पष्ट और बेधड़क राजनीति की भूमिका के कारण बालासाहेब जी जितने जनता में प्रसिद्ध थे उसने ही वह विभिन्न क्षेत्रों के मानने वालों में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते थे। जब पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी जावेद मियांदाद सन् 2004 ई. में भारत के दौरे पर आए और आप जी से मुलाकात का समय मांगा तो आप ही ने जावेद मियांदाद से मुलाकात कर उसकी तारीफ भी की थी और याद दिलाया कि चेतन शर्मा की आखिरी गेंद पर छक्का मारकर उन्होंने कैसे पाकिस्तान को मैच जिताया था? परंतु उसी समय अपना विरोध भी प्रदर्शित किया था कि कश्मीर में कैसे पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद कर रहा है? देश हित में आप जी ने कभी भी अपनी राजनीतिक भूमिका में बदलाव नहीं किया था, आप जी ने स्पष्ट किया था कि आप जी कभी भी चुनाव नहीं लड़ेंगे और कभी भी स्वयं का आत्म चरित्र नहीं लिखूंगा। बालासाहेब जी की यह विशेषता थी कि वह अपनी निर्णायक भूमिका में कभी भी बदलाव नहीं लाते थे, मीडिया से वार्तालाप करते समय आप जी ने कभी नहीं कहा कि मीडिया ने उनके कहे गए शब्दों का विप्रयास किया है। स्वर्गीय बालासाहेब जी के भाषणों के कुछ प्रमुख अंश निम्नलिखित हैं–

जमलेल्या माझा तमाम हिंदू बाधंवानों, भगिनींनो आणि मातांनो अर्थात एकत्रित मेरे तमाम हिंदू भाई, बहनों और माताओं।

शिवसेना नसती तर मराठी माणसाच्या मागमूसही मुंबईत राहिला नसता. अर्थात यदि शिवसेना नहीं होती तो मराठी मानुस का मुंबई में अस्तित्व ही नहीं रहता था।

मुस्लिम समाज रस्त्यावर नमाज पडणार असेल तर आम्ही महाआरती करू. अर्थात यदि मुस्लिम समाज रास्ते पर नमाज पड़ेगा तो हम भी महाआरती करेंगे।

मुंबई आपली आहे आणि इथे आवाज ही आपलाच हवा, मराठी हा सन्मान आहे, WHY मराठी विचारण्याची Y/Z करा. असल्या लोकांची महाराष्ट्रात राहण्याची लायकी नाही. अर्थात मुंबई हमारी है और यहां आवाजें भी हमारी ही होंगी, मराठी होना सम्मान है, WHY मराठी पूछने वालों का Y/Z कर दो ऐसे लोगों की महाराष्ट्र में रहने के लायक ही नहीं है।

एकजुटीने रहा जातिवाद गाढून मराठी माणसाची भक्कम एकजूट उभारा, तरच तुम्ही टिकाल आणि महाराष्ट्र ही टिकेल. अर्थात एकजुट होकर रहो जातिवाद को जमीन में गाड़ दो मराठी लोगों की एकता को मजबूत रूप से खड़ा करो तो ही तुम टिकोगे और तुम टिकोगे तो महाराष्ट्र टिकेगा।

17 नवंबर सन् 2012 ई.के दिवस पर बालासाहेब जी के निजी निवास स्थान मातोश्री पर आप का स्वर्गवास हो गया था। जब बालासाहेब जी का देहांत हुआ तो संपूर्ण मुंबई ने स्वयं स्फूर्ति से अपनी–अपनी दुकानें बंद कर संपूर्ण महाराष्ट्र में हाई अलर्ट जारी किया गया था। तीव्र गति से चलने वाला मुंबई का जीवन अचानक स्तब्ध हो गया था। लाखों शिवसैनिकों की उपस्थिति में आप जी का अंतिम संस्कार शिवाजी पार्क में किया गया था। उस दिन ऐसा प्रतीत होता था कि संपूर्ण महाराष्ट्र शिवाजी पार्क पर एकत्रित हो गया है, अपने संपूर्ण जीवन में बालासाहेब जी न तो सांसद थे और न ही विधायक थे, लोकसभा या विधानसभा का कोई भी सदस्य पद आप जी ने तह उम्र स्वीकार नहीं किया था। फिर भी आप को अति विशिष्ट सम्मान प्रदान कर इक्कीस तोपों की सलामी के साथ अंतिम विदाई प्रदान की थी। भारत के सभी राज्यों की विधानसभा और लोकसभा के दोनों ही सभा गृहों में स्वर्गीय बालासाहेब जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए थे।

अपने ओजस्वी वक्तव्य के तीखे बाणों से अपने राजनीतिक विरोधियों को हमेशा चित्त करने वाले बेधड़क, बिंदास आक्रमक ठाकरे शैली के धनी, ऐसे अनोखे व्यक्तित्व के बालासाहेब जी ने हिंदुस्तान के करोड़ों दिलों पर राज किया था। आज बालासाहेब जी हमारे बीच नहीं है परंतु उनके करोड़ों चाहतों के हृदय में बालासाहेब जी अपना विशेष स्थान बनाकर रखा है। आज भी महाराष्ट्र में जब भी कोई नई राजनीतिक पैंतरेबाजी होती है तो स्थानीय महाराष्ट्र वासी आज भी बालासाहेब जी की मीठी स्मृतियों को याद कर कहते हैं कि, यदि बालासाहेब होते तो आज वह ऐसा करते थे। प्रत्येक राजनीतिक चर्चा में विशेष रूप से बालासाहेब का जिक्र आता ही है। बालासाहेब जी के आक्रामक हिंदुत्व के तेवरों को, जो उनके विरोधी पसंद नहीं करते थे, वह भी सहजता से उनके विषय में अपने सकारात्मक विचार रखते हैं। बालासाहेब जी का अपने लोगों के प्रति लगाव और आत्मीयता का अनोखा रिश्ता था, इस रिश्ते की गूंज हमेशा ही आम जन सामान्य में गूंजती रहेगी।

अपने लोगों के लिए, अपनी मुंबई के लिए, अपने महाराष्ट्र की अस्मिता के लिए, संघर्ष रूपी यज्ञ में जो बालासाहेब जी ने अपने जीवन के प्रत्येक सांसों की आहुति दी है, उसे आम मराठी मानुस हमेशा अपनी चिर स्मृतियों में सजाकर रखेगा। मराठी माटी के इस महान सपूत, महान तपस्वी, महान विचारक, महान व्यंग्य चित्रकार, महान समाज सेवक, व्यवहार कुशल, कुशल राजनीतिक और संगठन कौशल के भीष्म पितामह स्वर्गीय बालासाहेब जी की मीठी स्मृतियों को लेखक द्वय सादर नमन करते है।

मूल मराठी लेख– श्री सुजीत जगताप पुणे।

विस्तारित हिन्दी अनुवाद–

✍️ डाॅ.रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ पुणे।

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अल्प परिचय: हास्याचार्य पंडित ओम् व्यास ओम्

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