आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष– ‘जश्न-ए-आजादी’

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आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष– ‘जश्न-ए-आजादी’

15 अगस्त सन् 2022 ई. सोमवार के दिन हमारे संपूर्ण देश में आजादी का अमृत महोत्सव बड़े हर्षोल्लास और उत्साह से मनाया जा रहा है। इसके पूर्व हमारे देश के लोगों ने कोरोना संक्रमण की महामारी को अत्यंत वेदना से झेला है। आज इस उत्सव पूर्ण माहौल में हमारे कई अपने हमारे बीच नहीं हैं। इस वर्तमान समय में 14 अगस्त सन् 2022 ई. रविवार को हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी अपनी आजादी 75 वीं वर्षगांठ के जश्न को मना रहा है, निश्चित ही इस ‘जश्न-ए-आजादी’ को मनाने हेतु हमारे देश की आवाम, प्रशासन और सरकार अत्यंत उत्साहित हैं।

इस मौके पर हमें इस ‘जश्न-ए-आजादी’ को मनाते हुए यह नहीं भूलना चाहिए कि इस आजादी को पाने हेतु हमारे देश को दो टुकड़ों में विभाजित किया गया था। संयुक्त पंजाब का एक बहुत बड़ा भूभाग हमने इस आजादी को पाने के लिए खोया है, आजादी के इस अमृत महोत्सव को मनाने के लिए आज से 75 वर्ष पूर्व उस समय हमने एक बड़े नरसंहार में लगभग हमारे अपने 10 लाख लोगों को खोया था और बहुत बड़े जान–माल के नुकसान को उठाया था। इस अमृत महोत्सव में जो लाखों पंजाबी शहीद हुए थे उनकी स्मृतियों को हम इस ‘जश्ने आजादी’ की चकाचौंध में कहीं भूलते जा रहे हैं क्या? आज से 75 वर्ष पूर्व फिरकापरस्त राजनीति के कारण जहां संयुक्त पंजाब के दो टुकड़े हुए, वहीं लाखों हिंदू पंजाबी, सिख और पंजाबी मुसलमानों को जान–माल और स्वयं की जान से भी हाथ धोना पड़ा था। लाखों मां–बहनों ने अपनी इज्जत–आबरू बचाने हेतु कुएं और दरियाओं में छलांग लगाकर खुदकुशी कर ली थी। हरे–भरे खेत, जमीन–जायदाद, पुश्तैनी बने हुए घरों को छोड़कर सिखों और हिंदुओं को रातों–रात उजड़ना पड़ा था। देश के विभाजन में जहां संयुक्त पंजाब के दो टुकड़े हुए थे, वहीं पर हिंदू पंजाबी, सिख और पंजाबी मुसलमानों को जान–माल से और स्वयं की जान से भी हाथ धोना पड़ा था। देश का विभाजन विश्व के 5 हजार वर्षों के इतिहास में एक ऐसी घटना थी जो इससे पहले कभी भी देखने–सुनने को नही मिली थी। जहां दो देश के राजा अपनी–अपनी गद्दीयों पर आसीन थे और प्रजा की अदला–बदली हुई थी। धर्मांध होकर अंधी भीड़ ने ऐसा कोहराम मचाया था कि चारों ओर लाशों के ढेर लगे हुए थे और खून की नदियां बह रही थी। इस नरसंहार में लगभग दस लाख पंजाबी हिंदू, सिख और पंजाबी मुसलमान मारे गए थे। लाखों औरतें बेवा होकर उजड़ गई थी। इस नरसंहार के कारण सिखों को पाकिस्तान में स्थित अपने गुरुधामों से बिछड़ना भी पडा़ था, जो कि अत्यंत वेदनादायी था। झेलम और चिनाब के रेतीले किनारे और अटक की सीमाएं, जो खालसा राज की चढ़दी कलां का स्वर्णिम इतिहास की आप गवाही थे। श्री ननकाना साहिब जी के मीठे कुएं का अमृत जल, गुरुओं के चरण चिन्हों से चिन्हींत पंजा साहिब गुरुद्वारे का स्थान, खालसा राज के स्वर्णिम इतिहास के साक्ष्य को दर्शाने वाला लाहौर का भव्य–दिव्य शाही किला, बाग, महल, हवेलियां और सुफलाम–सुजलाम घर बार छोड़कर, चलती हुई गोलियों और दंगाइयों द्वारा लगाई हुई आग में से निकल कर, बंदूकों से निकले छर्रों की बारिश से लोग जैसे–तैसे बच भारतीय सैनिकों द्वारा प्रदान सुरक्षा घेरे के अंदर, भारी मन से पुनः मोड़ के ना आने का वचन कर, अटारी की सीमाओं से हमारे अपने भारतवर्ष की भूमि में उन्हें प्रवेश करना पड़ा था।

जहां सिखों को श्री ननकाना साहिब जी, श्री पंजा साहिब जी, श्री करतारपुर साहिब जी एवं अन्य जान से प्यारे गुरु के चरण चिन्हों से अंकित स्थानों से बिछड़ना पड़ा था, वहीं हमारे पंजाबी हिंदू भाईचारे को कटाक्ष राज, शक्तिपीठ और हिंगलाज जैसे अनेकों सनातन धर्म के प्रमुख मंदिरों से दूर होना पड़ा था। कई प्राचीन मंदिरों को भी छोड़ना पड़ा था। समय का चक्र अपनी गति से चल रहा है 75 वर्ष गुजर चुके हैं, इस महाद्वीप के नक्शे पर भारत और पाकिस्तान नामक दो देशों की कंटीली सरहदें, वर्तमान समय में भी पंजाबी हिंदू और सिखों के सीने में दर्द का कोहराम मचाती है।

इस वर्तमान समय में जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो ऐसे समय में हमें हमारे उन शहीद देशवासियों को भी स्मृतित कर, उन्होंने विभाजन के समय भारी कीमत चुकाते हुए, अपनी जाने इस देश पर कुर्बान कर दी थी, उन सभी शहीदों को श्रद्धा के सुमन अर्पित करने चाहिए।

इस इतिहास को स्मृतित कर, लिखने का तात्पर्य है कि हमारे लाखों लोगों की शहादत के पश्चात ही आज हमें आजाद भारत में यह आजादी के अमृत महोत्सव ‘जश्ने आजादी’ को मनाने का अवसर प्राप्त हुआ है।

हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को आजादी पाने की कीमत को समझना होगा। सही मायने में हमारे लाखों लोग जो इस आजादी को पाने की जंग में शहीद हो गए थे उन्हें और हमारे राष्ट्रीय ध्वज को इस मौके पर यदि हमें सम्मानित करना है तो हमें इस देश का एक अच्छा नागरिक बनना होगा। देश के संविधान का पूर्ण रूप से पालन करना ही तिरंगे का सम्मान है। हमें जात–पात, ऊंच–नीच भूलकर, दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ द्वारा उच्चारित वचन ‘मानस की जात सभै एको पहचानबो’ के अनुसार देश हित में आपस में मिल–जुल कर रहना होगा और आज के इस पवित्र दिवस पर प्रण करें कि हम सभी भारतीय नागरिक मां भारती के सच्चे सपूत बनकर इस ‘जश्न-ए-आजादी’ के अमृत महोत्सव को मनाते हुए, संविधान का पालन कर, अपने तिरंगे को सर्वोत्तम सम्मान प्रदान करेंगे।

जय हिंद!

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