बाप्पा मोरया रे. . . . .
चौसष्ट कला और चौदाह विद्या के अधिपती यानिकी गणपती, बप्पा के अनेक पर्यायवाची नाम व रूप है, बप्पा को ओमकार, प्रथमेश, भालचन्द्र, विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है, भक्तों की प्रार्थना पर सदा उन में समाने वाला यह सुखकर्ता बुद्धी का देव है।
श्री स्वामी समर्थ रामदास जी की वाणी के अनुसार इन्द्रियों के आधिपत्य में हो वो गणपती, दास वाणी कहती है, गणेश की उपासना करना यानी इन्द्रियों को संयमित करना है।
गणेश उत्सव का प्रारम्भ परिस्थितवश हुआ। उस समय देश की आजादी के लिये समाज को जाग्रत करना, समाज में चेतना निर्माण करना था, आवागमन के साधन सीमित थे, निर्भीक और सटीक खबरों को सही तरह तब व्यक्ति विशेष तक पहुँचना बड़ी चुनौती थी।
उस समय आजादी की लड़ाई के लिए इस उत्सव की जरुरत थी और आज अभिव्यक्ति की आजादी के लिए इस उत्सव की जरूरत है, हम सोशल मीडिया सेवाओं के इतने आदि हो गये है, कि हमारी अपनी दुनिया सिकुड़ के छोटी हो गई है। इसलिए इस उत्सव की आज भी उतनी ही अहमियत है, जो आजादी के पहले थी। बल्कि हमें इस उत्सव को राष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाना चाहिये, शायद तभी हम लोकमान्य तिलक जी को सच्ची श्रद्धांजलि के सुमन अर्पित कर पायेगें।
इस राष्ट्रीय उत्सव का स्वरूप कार्यक्रम प्रबंधक (इवेंट मैनेजमेंट) के रूप में होता जा रहा है, इसका हमें विरोध करना होगा, ताकि यह उत्सव (निगमित) कॉर्पोरेट का न होकर सार्वजनिक गणेशोत्सव बना रहें। युवा पीढ़ी में यह उत्सव देशभक्ति का जज्बा और सामाजिक कार्यों के प्रति चेतना निर्माण का कार्य करता है।
संगीत के बिना किसी उत्सव की कल्पना नहीं की जा सकती है, पर इस राष्ट्रीय उत्सव में ऐसा संगीत वादन होना चाहिये जो परम्परागत भारतीय संगीत के साथ-साथ आधुनिक संगीत का अनोखा मिलन हो, लय और ताल का संगीत हो ताकि लोग ऐसे संगीत को प्यार करे, कर्कश आवाज तो नफरत फैलाती है, दिलों को जोड़ने वाली संगीतमय रचनाएं हो और हमें ध्वनि प्रदूषण का डटकर विरोध करना होगा।
भक्त हमेशा ही बप्पा के आगमन की प्रतिक्षा करते है,आज वो क्षण आ गया है,इस शुभ अवसर पर आपकी सभी मनोकामना पूर्ण हो, हमारे भारतीय समाज को सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य, शांती, आरोग्य मिले, यही बप्पा के चरणों में प्रार्थना है।
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