मोह अर्थात् क्या?
वो जान लगाने के बाद ही समझा जा सकता है।
प्रेम अर्थात क्या?
वो स्वयं को होने के बाद ही समझा जा सकता है।
बिरहा अर्थात क्या?
प्रेम के रंगों में सराबोर होने के पश्चात ही समझा जा सकता है।
जीत अर्थात क्या?
वह हारने के पश्चात ही समझा जा सकता है।
दुख, अर्थात क्या?
वह दूसरों की हंसी में खोजने पर ही समझा जा सकता है।
समाधान अर्थात क्या?
अपने अंतर्मन में झांकने पर ही समझा जा सकता है।
दोस्ती अर्थात क्या?
वह करने पर ही समझ आ सकती है।
मेरे अपने लोग अर्थात क्या?
वह संकट का समय आने के पहले नहीं समझा जा सकता है ।
सत्य अर्थात क्या?
आंखें खुली रखने पर ही समझा जा सकता है।
उत्तर अर्थात क्या?
प्रश्न सामने होने के पहले नहीं समझा जा सकता है।
जवाबदारी अर्थात क्या?
वह संभालने के पश्चात ही समझी जा सकती है।
समय अर्थात क्या?
वह बीत जाने के पहले नहीं समझा जा सकता है।
भूख अर्थात क्या ?
भूखे पेट रहकर एक लोटा ठंडा पानी पीकर रात गुजारने के बाद ही समझा जा सकता है।
प्यास अर्थात क्या?
मृग–मरीचिका की न समाप्त होने वाली खोज के पश्चात ही समझा जा सकता है।
पत्नी अर्थात क्या?
इस शब्द का अर्थ कभी भी नहीं समझा जा सकता है।
मुझे इंसानों के बीच रहना पसंद है। इंसानों से मधुर संबंधों को बनाना मेरा शौक है। उन मधुर संबंधों को सहेज कर रखना मेरी जवाबदारी है। मेरा अटूट विश्वास है कि हमारे द्वारा कमाई हुई चल–अचल संपत्ति को हम साथ लेकर नहीं जाएंगे। परंतु मेरे द्वारा बनाये हुए मधुर संबंधों से उन इंसानों की आंखों में मेरी यादों के लिये यदि आंसू की एक बूंद भी झलकती है, तो वह हमारे जीवन भर की कमाई हुई अमूल्य संपत्ति होगी।
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