आम आदमी

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आम आदमी

क्या आपने कभी विचार किया है? कि आर. के. लक्ष्मण के कार्टून में चित्रित ‘आम आदमी’ किस प्रकार का होगा?

मेरी नजर में आम आदमी वह है जिसे फेसबुक/इंस्टाग्राम/ट्विटर में किसने, किसके लिए क्या कमेंट किया है? उससे इस ‘आम आदमी’ को कुछ लेना–देना नहीं होता है। यह वह व्यक्ति है, जिसके लिए व्हाट्सएप की डीपी, स्टेटस और पोस्ट कोई मायने नहीं रखती है, इस व्यक्ती को सेल्फी में भी कोई रुचि नहीं होती हैं। ये वह व्यक्ति है, जो हार, फुल, नारियल और शाल के द्वारा किये गये झूठे सत्कार अथवा चमचागिरी से दूर रहना चाहता है।

ये वो व्यक्ति है, जिसे नई फिल्मों के प्रीमियर, नाट्य सम्मेलन, साहित्य सम्मेलन या फैशन शो से कुछ लेना–देना नहीं होता है। यह व्यक्ती फैशन शो में जाना स्वयं का अपमान समझता है, इस व्यक्ती को शेयर बाजार, डॉलर, और सोने के भाव के चढ़–उतार विचलित नहीं करते है। इस व्यक्ती को रियल इस्सटेट में घरों के बड़ी कीमतों की कोई चिंता नहीं होती है। यह वह व्यक्ति है, जो टी. वी. पर टी.आर.पी. का गणित रखने वाले कार्यक्रमों से संवेदनशील नही होता है। इस व्यक्ति के घर में किसी बड़ी बीमारी से कोई ग्रस्त नहीं होता है और ना ही कोई बड़ी बीमारी की दवा होती है। ऐसे व्यक्ति मंत्र–तंत्र या और कोई कर्मकांड में विश्वास नहीं करते है।

ऐसे व्यक्ति को यदि एक बेटी हो तो भी खुश! दो बेटी हो तो भी खुश! या एक बेटी या एक बेटा हो तो भी खुशी–खुशी अपना जीवन यापन करते है।

ऐसे ग्रहस्थ व्यक्ती पुरी ईमानदारी, निष्ठा से अपना काम धन्धा, नौकरी करते है और अपने बीबी बच्चों की पुरी देख–भाल करते है, पत्नी को जब उनकी जरूरत होती है, तो उसे पुरा समय देते हैं। इस ‘आम आदमी’ को बच्चों के स्कूल, कालेज में जाना अच्छा लगता है, इन्हे बच्चों के स्कूल के दाखले की विशेष चिन्ता रहती है, बच्चों के परिक्षा परिणाम, स्कुल की समय सारणी, शिक्षकों के नाम व उनकी विशेषताएं मुँह–जबानी याद रहती है। ये वह व्यक्ती है, जो लोगों के सुख–दुख में दौड़ कर के जाते है और ऐसे कार्यों में अपना योगदान देना स्वयं का भाग्य समझते है। बहुत सोच–समझ कर एक–एक पैसा इकठ्ठा कर इन्होंने अपना एक छोटा सा आशियाना बनाया होता है और उस आशियाने में अत्यंत आनंद से निवास करते है, या इतने ही आनन्द से किराये के घर में भी निवास कर लेते हैं। यह वह लोग है, जो दूसरों के सुख से अपनी तुलना नहीं करते एवं दुसरों के यश से कभी नहीं चिढ़ते हैं। नशा करने की इन्हें जरूरत कभी होती ही नहीं है, क्योंकि ये दिन–रात की आपा–धापी, दौड़ धूप में ही आनन्दीत होकर, हमेशा अपनी ही खुमारी में रहते हैं।

ऐसे व्यक्ती पारस मणी की खोज में प्रत्येक पत्थर पर अपने हाथ के लोहे के टुकड़े को स्पर्श नही करवाते है क्योंकि इन्हें पता है कि इनके जीवन का प्रत्येक क्षण सोने के समान है।

ऐसे व्यक्ति झूठी शान, आडम्बर और दिखावेपन से परहेज रखते हैं। ऐसा व्यक्ति जब रात को बिस्तर पर लेटता है, तो उसे गहरी नींद तुरंत आ जाती है, “क्योंकि यह दुनिया के सबसे सुखी इन्सान है”। गहरी नींद में सोते समय इस ‘आम आदमी’ के मन में भूतकाल का अपयश नहीं होता है और ना ही भविष्य की अपेक्षा! बस्स, वह तो वर्तमान में अपनी गहरी नींद का पुरा–पुरा आनंद ले रहा होता है। शायद वर्तमान काल में आर. के. लक्ष्मण के ‘आम आदमी’ की तलाश अधूरी रहेगी। क्या ‘आम आदमी’ की कल्पना को सार्थक किया जा सकता है? काश इस जीवन में कभी, कहीं, कोई ‘आम आदमी’ मिल पाता. . . . .

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सफलता की कुंजी, संघर्ष

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