लेखन कला और उसकी विधाएं

Spread the love

अनुभव लेखन–

लेखन कला और उसकी विधाएं

जब किसी लेखक के अंतर्मन में सर्जनशीलता की एक कल्पकता जन्म लेती है, तो एक उत्तम लेखक का जन्म होता है। जीवन में जब हम अच्छे–बुरे समय से गुजरते हैं तो उस समय हम निर्णय करके उस घड़ी से रूबरू नहीं होते हैं। कुछ घटनाएं हमारे जीवन में प्रत्यक्ष रूप से आती हैं और कुछ घटनाओं के हम गवाह बन जाते हैं। अब यदि हम पिछले हफ्ते का उदाहरण लें तो पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह ‘चन्नी’ बने हैं। यह घटना के हम साक्षीदार हैं क्योंकि समाज माध्यम में जितने भी मीडिया के साधन हैं, जिनसे हम दिन रात घिरे हुए रहते हैं, उन सभी माध्यमों से हम सभी को इसकी जानकारी प्राप्त हुई है। इससे हमने जाना कि कांग्रेस पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री को बदला है और उस बदलाव से हमें कांग्रेस की संस्कृति की पहचान होती है अर्थात् इस पद के लिए कौन योग्य उम्मीदवार है? क्यों इसमें जात–पात को महत्व दिया गया है? इस घटना से हमारे प्रतिदिन की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आता है परंतु हम सभी इस घटना के साक्षीदार अवश्य होते हैं। जब हम ऐसे साक्षीदार बनते हैं तो हमारे अपने विचार भी इस घटना के संबंध में निश्चित ही होते हैं। हमें ऐसा लगता है कि इस विषय पर हमें भी अपने विचार प्रकट करना चाहिए अर्थात् अपने विचारों को व्यक्त करने की कला को हम सर्जनशीलता के नाम से संबोधित कर सकते हैं। यह सर्जनशीलता व्यक्ति आधारित होती है, किसी को अपनी सर्जनशीलता चित्रों के माध्यम से दर्शा कर इसे व्यक्त करना है, तो किसी को अपने स्वर से, अपने संगीत से, या अपनी कविता से इन सर्जनशीलताओं को दर्शाते है। सर्जनशीलता को व्यक्त करने के माध्यम अलग–अलग हो सकते है परंतु अपने विचारों को प्रकट करना, अर्थात् स्वयं की सर्जनशीलता को एक मंच उपलब्ध करके देने के समान है। जिसे हम सर्जनशीलता का प्रतीक भी मान सकते हैं।

किसी व्यक्ति के भीतर सर्जनशीलता को उत्पन्न करने हेतु संवेदनशील होना अत्यंत आवश्यक है। संवेदनशील होना अर्थात् हमारे जीवन में, दोस्तों में, परिवारों में, रिश्तेदारों में जो कुछ अच्छी–बुरी घटना घटित होती है। जिनसे हम प्रभावित होकर अस्वस्थ होते हैं, या आनंदित होते हैं, या हम दुखी होते हो, या हम विचार करते हैं कि यह मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ? अर्थात् हमारे अंतर्मन में जो भावना जागरूक होती हैं अर्थात् हम सभी काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार से ग्रसित है परंतु जब यह भाव पूर्ण रूप से प्रकट होता है अर्थात् हमें कई बार अत्यंत गुस्सा आता है और कई बार हमें अत्यंत हार्दिक प्रसन्नता प्राप्त होती है। जिसके फलस्वरूप हमारी आंखों में खुशी के आंसू झलक जाते हैं। ऐसा नहीं है कि जब हम दुखी होते हैं तो ही आंसू निकलते हैं, जब हम अत्यंत दुखी हो या अत्यंत खुश हो तो भी हमारी आंखें, आंसुओं से छलक जाती है। इस पूरी प्रक्रिया को हम संवेदनशीलता के नाम से संबोधित कर सकते हैं। यह संवेदनशीलता प्रत्येक मनुष्य में पाई जाती है परंतु हमारे संस्कारों के कारण हम इसे खुले मन से प्रदर्शित नहीं करते हैं। हमें प्राप्त संस्कारों के कारण ही हम अपनी संवेदनशीलता को मर्यादित रखते हैं। निश्चित ही हमारे संस्कार स्वयं की संवेदनशीलता को मर्यादित करने हेतु कांटों की बाड़ लगाने का काम करते हैं।

हमारे अंतर्मन में जो संवेदनशीलता स्वयं से उत्पन्न होती है, उसी के कारण आप एक उत्तम लेखक बन सकते हैं। अंतर्मन में उत्पन्न हुई संवेदनशीलता ही आपको एक अच्छा लेखक बनने के लिए प्रेरित करती है। अंतर्मन में उत्पन्न संवेदनशीलता को विचारों के रूप में प्रकट कर लिखना, एक उत्तम लेखक बनने का प्रथम पायदान होता है। इसलिए अंतर्मन में उत्पन्न संवेदनशीलता एक लेखन कार्य की नींव होती है अर्थात् एक उत्तम लेखक का संवेदनशील होना अत्यंत आवश्यक है।

यदि आप में संवेदनशीलता है और आप उसे विचारों से प्रकट भी कर रहे हैं तो आप उसे अच्छे से लिख भी देंगे परंतु हमें यह सोचना है कि, हमें लिखना क्या है? किसी की नकल करके आप एक उत्तम लेखक कभी भी नहीं बन सकते हैं। अच्छा लेखक बनने के लिए हमें लिखने की विधा को आत्मसात करना होगा। विषयानुसार स्वयं के विचारों का स्वतंत्र शब्दों के रूप में किया हुआ संयोजन एक लेखक की लेखनी पर निर्भर करता है। एक अच्छा लेखक/कथाकार होने के लिए हमें स्वयं सतत् प्रयत्नशील रहना होगा। हो सकता है कि, आपके पास एक उत्तम कथाकार होने के समस्त गुण है परंतु यदि आपके पास कथा को लिखने की विधा नहीं है तो आप गलतियां करेंगे। इसलिए लिखने की विधा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यदि हमें अपने विचारों को शब्दों में प्रकट करना है तो हमें साहित्य के संबंध में उत्तम शिक्षा को ग्रहण करना ही होगा।

हमारे सामाजिक परिवेश में कोई भी घटित-घटना को हमने ‘जस का तस’ अपने शब्दों से प्रकट कर दिया तो इस लेखनी को हम ‘अनुभव लेखन’ के नाम से संबोधित कर सकते हैं। इस लेखन कार्य में स्वयं के द्वारा सृजित लेखनी को लिखने की आवश्यकता नहीं होती है। इसी प्रकार से मर्यादित शब्दों में घटित–घटना को लिखकर प्रकाशित करना इसे हम ‘लघुलेखन’ या घटित घटना क्रम को ‘सारांश’ में लिखने के शब्द से संबोधित कर सकते हैं। इस लेखन कार्य में लेखक द्वारा सृजित, ललित लेखन की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इस ‘लघुलेखन’ में शब्दों की मर्यादा नहीं होती है। यदि हम ‘लघुलेखन’ को विस्तार से लिखें तो वो ‘अनुभव लेखन’ कहलाएगा। ‘लघुलेखन’ की लेखनी इस प्रकार से होना चाहिए कि उसकी पहली पंक्ति को पढ़कर ही पूर्ण लेख को समझा जा सके। इस लेख में हम किसी अलंकारिक भाषा या साहित्यिक शब्दों का समायोजन कदापि नहीं कर सकते हैं।

इस लेख में हम, ललित लेखन की कला को समझने का भी प्रयास करेंगे। ललित लेखन अर्थात् क्या? एक उत्तम लेखक क्या लिखना चाहता है? इसकी उसे संपूर्ण रूप से जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। ललित लेखन में विषय और शब्दों का कोई बंधन नहीं होता है। इस लेखन कार्य में लेखक को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता होती है अर्थात् मन की भावना या कोई यादगार घटना, या विचार, या किसी विषय की जानकारी होना अर्थात् यदि हम वर्षा ऋतु के मौसम में इंद्रधनुष का नजारा देखते हैं तो उस नजारे को देख कर भी हम उत्तम ललित लेखन कर सकते हैं। हम अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से रखकर, उन विचारों को इंद्रधनुषी छटा अनुसार प्रकट कर सकते हैं। इसे हम अलंकारों से सुशोभित कर, एक धाराप्रवाह शब्दावली में अंकित कर सकते हैं। इस घटना के गुण, ज्ञान और इससे प्राप्त बोध को हम अपनी लिखने की शैली अनुसार प्रकट कर सकते हैं। इससे संदर्भित मैं अपने स्वयं का लिखा हुआ एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं।

पुणे में प्रकाशित ‘भारत डायरी’ नामक हिंदी अखबार ने जब अपने ‘रजत जयंती’ अंक को विशेष रूप से प्रकाशित किया और उनका विषय माता–पिता का आशीर्वाद! इस तरह से था तो उसमें मेरे द्वारा रचित लेख में, मैंने ललित लेखन करते हुए स्वयं निम्नलिखित वाक्यों को सृजित किया है की–

माता–पिता के आशीर्वाद से हम जीवन को मयूर की तरह मस्ती में पंखों को फैलाकर, आत्म विश्वास से नृत्य कर, जीवन जीते हैं। जी भर के रोना और खिलखिलाकर नाभि से हंसने की कला को उन्होंने सिखाया, वो माता–पिता ही थे, उथले समुद्र की तरह कल–कल की ध्वनि से जिसने बहना सिखाया हो, वो माता–पिता ही थे। माता–पिता का आशीर्वाद अपने बच्चों पर इस तरह होता है कि जैसे भोर के पारिजात के फूलों की खुशबू और रातरानी के फूलों की खुशबू का अनोखा मिलाप अभीभूत करता हो, अर्थात् माता–पिता के आशीर्वाद से ही जीवन में खुशियों का आगाज होता है। इस ललित लेखन में लेखक की कलम को अनेक मुक्त द्वार उपलब्ध होते हैं। इसमें शब्दों की और आकृति बंधन की कोई मर्यादा नहीं होती है। यह लेखन प्रसंगानुसार व्यक्ति रेखांकित नहीं होता है। ललित लेखन एक मुक्त छंद कवि की रचनाओं के समान शब्दों के  प्रवाह में सरिता की तरह निरंतर बहता है। इस लेखन से हम अपने शब्दों को, अपनी भावनाओं को, स्वतंत्र रूप से प्रकट कर सकते हैं। इस तरह के लेखन को ललित लेखन कहकर संबोधित किया जाता है।

साक्षात्कार, निबंध, काव्य रचना, शब्दांकन, पुस्तक परीक्षण इत्यादि इस संबंध में तो हम सभी अच्छे से विद्यार्थी जीवन से ही जानते हैं।

कथा क्या होती है? कथानक क्या होता है? इसे समझने की आवश्यकता है। कथा लिखते समय हमें यह ज्ञान होना चाहिए कि, हमें क्या लिखना नहीं है? यह ठीक उसी प्रकार से जैसे हम किसी पत्थर से उसका अनावश्यक भाग निकाल देते हैं तो वो एक सुंदर मूर्ति में परिवर्तित हो जाता है। उसी तरह हमें कथा लिखते समय कौन से सही शब्दों का संयोजन करना है? यदि यह हम जान गए तो निश्चित ही एक उत्तम कथा का आविष्कार होगा। यदि हमें कथा शब्द की व्याख्या करना हो तो हम कह सकते हैं कि, व्यक्ति की मन स्थिति का एवं उसके जीवन में घटित घटनाएं या प्रसंगों का जीवंत जीवन अनुभव का सर्जनात्मक शब्दों में किया गया वर्णन अर्थात् कथा! ‘कथा यह दो बिंदुओं के मध्य शब्दों की यात्रा होती है’।

कथा और कहानी में फर्क होता है। हम बचपन से कहानियां सुनते हैं और बड़े होने पर कहानियों को सुनाते हैं। हमारे सामाजिक परिवेश में कोई भी छोटा बच्चा कहानियां सुने बिना बड़ा नहीं होता है, अनेक उदाहरण है पंचतंत्र की कहानियां, अकबर बीरबल की कहानियां, चाचा चौधरी की कहानियां इत्यादि। ऐसे अनेक कहानियों को हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं। इसलिए हमें आभास होता है कि कहानी मतलब कथा! ‘कथा में कहानी होती है परंतु कहानी में कथानक होता है’। कथा, कहानी से अलग होती है। कहानी में क्या अलग है? कथा अर्थात् दो बिंदुओं के मध्य शब्दों की यात्रा और कहानी अर्थात् संपूर्ण कहानी। उदाहरण के रूप में ध्रुव तारा की कहानी को ले सकते हैं। उत्तानपाद नामक एक राजा था, उसकी दो रानियां थी, एक सुरुचि और दूसरी सुनीति, एक रानी अत्यंत प्रिय थी एवं दूसरी रानी से राजा को मोह नहीं था। जिस रानी से मोह नहीं था उसका बालक अर्थात् ध्रुव! एक बार ध्रुव अपने पिता जी की गोद पर बैठा था और राजा की अत्यंत प्रिय रानी सुरुचि को यह अच्छा नहीं लगा और उसने राजा से कहा कि आप इस बालक को अपनी गोद से नीचे उतार दे। इस प्रकार से उसने बालक ध्रुव का घोर अपमान किया था। उस छोटे बालक ध्रुव को पिता की गोद अपने हक की गोद लगती थी परंतु उसकी सौतेली मां ने उससे उसका यह हक छीन लिया था। बालक ध्रुव अपमानित होकर क्रोधित हो गया था और उसने कठोर तपस्या कर, ईश्वर को प्रसन्न किया था और ईश्वर ने प्रसन्न होकर उसे अमर कर दिया अर्थात् ध्रुव तारा! आसमान में उत्तर दिशा में चमकने वाला तारा अर्थात ध्रुव तारा! इसे हम कहानी कह सकते हैं। इस कहानी में एक उत्तानपाद राजा था और उसकी दो रानियां थी, इस कहानी को हम क्रमानुसार सुना रहे हैं और यह कहानी एक या दो पृष्ठों में या 200 से 300 शब्दों में संपूर्ण हो जाती है। कथा भी 200 से 300 शब्दों में संपूर्ण हो सकती है। कथा और कहानी दोनों में शब्दों की मर्यादा नहीं होती है परंतु कथा और कहानी की विधा में अंतर होता है। कहानियों का प्रारंभ मजबूत वाक्य रचना से होता है जैसे कि, उत्तानपाद नामक एक राजा था और उसके बाद का घटनाक्रम क्रमानुसार आगे बढ़ता है। जैसे कि राजा की दो रानियां थी, बड़ी रानी का बेटा बालक ध्रुव था और वो राजा की गोद में बैठा था। उसका इस तरह से गोद में बैठना छोटी रानी को पसंद नहीं आता है और बालक ध्रुव को गोद से उतारा जाता है। ध्रुव अपमानित होकर तपस्या करता है और ईश्वर को प्रसन्न कर ध्रुव तारा के रूप में अमर हो जाता है। घटित–घटनाओं का क्रमानुसार वर्णन कहानी का मूल स्वरूप होता है। इस क्रमानुसार घटित घटनाओं पर हम प्रश्न नहीं उठाते कारण इस कहानी में हमें पूरे सार को ही बताया गया है। प्रत्येक कहानी के अंत में उसका एक उसका तात्पर्य होता है अर्थात् ऐसा हुआ था तो ऐसा हुआ! यानी कि बालक ध्रुव ने तपस्या की तो उसे फल स्वरूप अमर होने का वर प्राप्त हुआ। प्रत्येक कहानी के अंत में बोध के रूप में शिक्षा मिलती है कि, झूठ बोलोगे तो सजा मिलेगी। अर्थात् प्रत्येक कहानी अनुशासन में रहने का बोध सिखाती है।

कथा में भी बोध के रूप में शिक्षा मिलती है परंतु बोध ज्ञान को दबाव देकर समझाया नहीं जाता है। कथा में तुम्हें स्वयं समझकर बोध रूपी ज्ञान ग्रहण करना होता है। इस तरह से कथा और कहानी में यह मूलभूत अंतर है। कहानी प्रारंभ से लेकर अंत तक कालानुसार/क्रमानुसार घटित-घटनाओं पर आधारित होती है। कोई भी कहानी अचानक बीच में से प्रारंभ नहीं होती है। कहानी को उसकी विधा के अनुसार ही प्रारंभ करना पड़ता है।

यदि किसी कहानी को कथा स्वरूप में लिखा गया तो वो कथा निरस होगी। इसलिए कहानी अर्थात् क्या? यह हमें अच्छे से समझ लेना चाहिए। वर्तमान समय में 100 में से 60 कथाएं कहानी के स्वरूप में होती है। इसलिए कहानी की विधा को हमें अच्छे से समझ लेना चाहिए।

कथा दो बिंदुओं के मध्य शब्दों की यात्रा होती है। कथा का प्रारंभ और अंत दोनों ही होता है। इस प्रारंभ और अंत के मध्य शब्दों का प्रवाह कुछ अलग होना चाहिए। कथा का कथानक कहानी के जैसे कालानुसार/क्रमानुसार, घटित–घटनाओं का आलेख नहीं होना चाहिए। यह सुनिश्चित कर लें कि कथा के सभी पात्रों का अलग-अलग विस्तार से विवेचन किया गया हो तो वो उपन्यास होगा। कथा के गुण धर्मों को विस्तार पूर्वक नहीं लिखा जा सकता है। कथा के विशेष भाग को एकाग्रता से लिखना चाहिए। कथा में व्यक्ति रेखा को अंकित किया जाता है, केवल प्रसंगों का कथन होता है। व्यक्ति रेखा का संपूर्ण वर्णन पाठकों के सम्मुख रखना चाहिए। कथा में पात्रों की अच्छाई–बुराई, संवेदनशीलता उनका चरित्र और अन्य गुण–धर्मों का विवेचन किया जाता है। कथा में पात्रों को उत्तम ढंग से शब्दांकित कर, कथा को कौशल्य पूर्वक आगे बढ़ाना एक अच्छे लेखक पर निर्भर करता है। कथा में घटित–घटनाओं का विस्तार से वर्णन होता है। अर्थात्‌ घटित घटना क्यों हुई? उसके क्या परिणाम हुये? परंतु कहानी में क्रमानुसार केवल घटित–घटनाओं को रखा जाता है। कथा में व्यक्ति रेखा को रेखांकित करना लेखक का धर्म है और उस व्यक्ति रेखा पर, लेखक के अनुसार पाठकों का विश्वास होना एक उत्तम लेखक की लेखनी पर निर्भर करता है। कथा में पात्रों को न्याय प्रदान करना लेखक की जवाबदारी है अर्थात् कथा मतलब दो बिंदुओं के मध्य की संपूर्ण यात्रा है। कथा मतलब एकाध व्यक्ति के अनुभवों की संपूर्ण जीवन रेखा का अपने शब्दों में चित्रण करना होता है। यदि उस व्यक्ति की पूर्ण जीवन रेखा का चित्रण विस्तार में करना हो तो उसके लिए तुम्हें उपन्यास लिखना होगा। हमें समझना होगा कि कथा अलग होती है, दीर्घ कथा और अलग होती है एवं उपन्यास एक अलग ही विधा है। हमें समझना होगा कि कथा, दीर्घ कथा और उपन्यास में क्या अंतर है? और यदि एक बहुत अधिक पृष्ठ संख्या वाली पुस्तक जिस भी विषय पर लिखी है, उसमें उस विषय का गहराई से किया हुआ अभ्यास और निरीक्षण हो, जिसमें विषय को प्रबंधात्मक रूप से लिखा गया हो, जिसको पढ़ने पर ज्ञान की चरम सीमा का अनुभव हो, इस अधिक संख्या के पृष्ठों वाली पुस्तक ‘ग्रंथ’ कहलाती है। ग्रंथों का ज्ञान कालाधिन होता है। यह आवश्यक नहीं है कि ग्रंथों में आध्यात्मिक ज्ञान हो, यदि किसी ‘धर्म ग्रंथ’ के ज्ञान को उपरोक्त शब्दावली से विश्लेषण किया जाए तो निश्चित ही वह ‘धर्म ग्रंथ’ होगा।

साभार–उपरोक्त अनुभव लेखन ‘विश्व मराठी परिषद’ के द्वारा दिनांक 21 से 24 नवंबर सन् 2021 ई. को आयोजित ऑनलाइन लेखन कला कार्यशाला में प्रसिद्ध मराठी लेखिका आदरणीय नीलिमा ताई बोरवणकर के 21 सितंबर को ऑनलाइन दिये गये व्याख्यान से प्रेरित है।

लेखकों के लिए महत्वपूर्ण सूचनाएँ— 

  1. साहित्यिक कार्य कोई मनमर्जी नहीं बल्कि समाज को रचनात्मक मार्गदर्शन देने के लिए की जाने वाली तपस्या है।
  1. यदि हम रचनात्मक साहित्य पढ़ेंगे तो हम रचनात्मक साहित्य रचेंगे। जितना अधिक हम पढ़ते हैं, हमारी सोच उतनी ही व्यापक होती जाती है। पढ़ने से लेकर लिखने तक एक मजबूत, सकारात्मक आधार बनता है. रचनाएँ प्रकाशित हों या न हों, रचनात्मक साहित्य के प्रति हमारी प्रतिबद्धता निरंतर बनी रहनी चाहिए। यदि रचनाएँ प्रकाशित न भी हों तो निराश न हों बल्कि मन पूर्ण प्रतिबद्धता से, लगाकर लिखते रहें।
  1. एक लेखक को दूरदर्शी और संवेदनशील होना चाहिए क्योंकि उनकी रचनाएँ समाज की दशा और दिशा को प्रभावित और निर्धारित करती हैं। एक अच्छा लेखक अपनी कलम के माध्यम से समाज का चेहरा-मोहरा बदलने की क्षमता रखता है।
  1. लेखकों ने जो भी लिखा, निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर समग्र हित के लिए लिखा। हमेशा सच लिखा, मानवता की भलाई और आपसी भाईचारा बढ़ाने के लिए लिखा।
  1. कुछ भी लिखने से पहले लेखक को उसे अपने जीवन में ढालने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से वह अधिक जिम्मेदारी से लिख सकेंगे और उनके लेखन कार्य का पाठकों पर अधिक प्रभाव भी पड़ेगा।
  1. एक अच्छे लेखक की पहचान यही है कि उसकी सोच और कलम दोनों स्वतंत्र हों। वह किसी लालच, दबाव या प्रभाव में आकर ऐसा कुछ नहीं लिखते, जिससे देश या समाज को नुकसान हो। एक अच्छे लेखक के विचार और क़लम कभी नहीं बिकते।
  1. दुनिया में रहने वाले आम लोग शब्दों से ज्यादा लेखन से प्रभावित होते हैं| लिखित शब्द को बोले गए शब्द से अधिक प्रमाणिक माना जाता है। इसलिए लेखक को बहुत जिम्मेदारी से लिखना चाहिए। बोला गया शब्द चौथे या पांचवें स्थान पर पहुंचकर अपना मूल स्वरूप खो देता है, लेकिन लिखी गई बात सदियों तक वैसी ही रहती है।
  1. आइए ऐसा साहित्य रचें, जो आज से बीस साल बाद, आज से पचास साल बाद, आज से सौ साल बाद भी प्रासंगिक होगा। ऐसा न हो कि समय बीतने के साथ इसकी प्रासंगिकता ख़त्म हो जाये|
  1. रचना की मौलिकता ही हमारी रचना को शाश्वत बना सकती है। मौलिक रचनाएँ अधिक प्रभावशाली होती हैं। इसलिए मौलिक कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हमारा लेखन कार्य सकारात्मक होने चाहिए, जिससे उभरती कला और साहित्य की झलक मिल सके।
  1. हमारे लेखन का विषय गैर-विवादास्पद होना चाहिए। आइए अनछुए विषयों पर शोध और अध्ययन करके लिखने का प्रयास करें, बहुत आनंद आएगा। हम जिस भी विषय पर लिखे, पूरा अनुसंधान और अध्ययन के बाद लिखें, तभी हमारे लेखन का मूल्य होगा। बिना गहन अध्ययन के लिखा गया कार्य अधूरा कार्य माना जाता है।
  1. भाषा एवं शैली ऐसी होनी चाहिए जो पाठकों के हृदय पर प्रभाव डाल सके। जो बात, घटना या इतिहास दिल को छू जाए, उसे जरूर क़लम बद्ध करना चाहिए।
  1. हम अपने मन में यह भाव स्थापित कर लें कि हमारी कलम हमारी अपनी नहीं बल्कि मां सरस्वती के द्वार प्रदान लिया गया उपहार है, इसलिए जब भी हम इस कलम से कुछ लिखें तो हमें गुरु साहिब जी, संतों की, पीर, पैगंबरों की वाणी, विद्वानों की विचारधारा और हमारे देश के संविधान की मान-मर्यादाओं को ध्यान में रखकर लिखना चाहिए।
  1. जब भी आप चाहें, एक छोटी सी डायरी अपने पास रखें, या वाट्स एप पर ‘स्तंभ लेखन’ नाम से समूह बना कर, मन में आये विचारों को तुरंत उस डायरी में या वाट्स एप पर नोट कर लें कारण मन में आये अनमोल विचारों की पुनर्वृति नहीं होती है|
  1. अपने काम को मुद्रित/सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए भेजने से पहले उसे बार-बार पढ़ें। अतः हम स्वयं अपने कार्य में सुधार कर उसे मुद्रण/पोस्ट करने योग्य बना सकते हैं।
  1. एक अच्छा लेखक बनने के तीन सूत्र हैं – कड़ी मेहनत…, अधिक मेहनत…, और ढेर सारी मेहनत…
  1. एक आखिरी सूचना, जिस देश की कलम मजबूती से, प्रतिबद्ध होकर लिखेगी, उस देश में कला और साहित्य का निरंतर विकास होता रहेगा। यदि हमें सफल और प्रतिष्ठित लेखक होना है तो हमें अपनी क़लम की धार को तेज़ करना होगा।

✍️ डॉ. रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ पुणे।© (03/03/2024)

000

आम आदमी

KHOJ VICHAR YOUTUBE CHANNEL


Spread the love
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments