ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चलते–चलते. . . .
(टीम खोज–विचार की पहेल)
प्रासंगिक–
(लोहड़ी पर्व पर विशेष)
लोहड़ी का इतिहास और महत्व
भारत और पाकिस्तान की सरहद के दोनों और ही लोहड़ी का त्यौहार बड़े ही हर्षोल्लास और आनंदमय वातावरण में मनाया जाता है। इस दिन से ही किसानों के द्वारा एक नई उमंग, नई चेतना और उत्साह के साथ फसलों की कटाई प्रारंभ होती है। विशेष रूप से किसानों का आर्थिक वर्ष इस विशेष दिन से प्रारंभ होता है। पंजाबी परिवारों में जन्मे नवजात बच्चों की लोहड़ी को उत्साह पूर्वक ढोल की पंजाबी धुनों के साथ भांगड़ा/गिद्दा पाकर मनाया जाता है। वैसे भी गुरुओं के चरण–चिन्हों से पवित्र पंजाब की धरती को त्योहारों की धरती कहकर संबोधित किया जाता है। लोहड़ी एक पुरातन त्यौहार है जिसे पंजाबी सभ्यता को मानने वाले लोग मनाते हैं। इस त्यौहार पर पवित्र अग्नि को प्रज्वलित कर और उस पवित्र अग्नि के चारो और घेरा बनाकर भांगड़ा/गिद्दा पाने की विशेष परंपरा है और विशेष रूप से रेवड़ी, मूंगफली, तिल की चिक्की को बांटा जाता है। पंजाब में छोटे बच्चे लोगों के घरों में जाकर, लोगों से पंजाबी गीत को गाकर उनसे लोहड़ी मांगने की भी पुरातन परंपरा है। संपूर्ण भारत वर्ष में इस त्यौहार को विशेष रूप से मकर संक्रांति के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है।
इस त्योहार का एक अत्यंत पुरातन इतिहास है, दुल्ला भट्टी नामक एक महान योद्धा हुआ था। इस योद्धा ने इंसानियत के जज्बे को महत्व देकर लाचार और क़मजोर लोगों को सहारा दिया था। उस समय सुंदर और मुंदर नामक दो खूबसूरत पंजाबी बच्चियों की पिता के रूप में उनकी रक्षा करने हेतु योद्धा दुल्ला भट्टी खड़ा हुआ था। पंजाबी लोकगीतों में इस त्योहार पर विशेष रूप से एक गीत गाया जाता है जिसे इस तरह से अंकित किया गया है–
सुंदर मुंदरिये – – – हो!
सुंदर मुंदरिये – – – हो!
तेरा कोण विचारा – – – हो!
दुला भटी वाला – – – हो!
दुले धी विआही – – – हो!
सेर सकर आई – – – हो!
कुड़ी दे बोझे पाई – – – हो!
कुड़ी दा लाल पटाका – – – हो!
कुड़ी दा सालू पाटा – – – हो!
सालू कौन समेटे – – हो ?
चाचा गाली देसे – – – हो!
चाचे चुरी कुटी – – – हो!
जिंमीदारां लुटी – – – हो!
जिंमीदार सदाउ – – – हो!
गिण गिण पैले लाउ – – – हो!
इक पैला घट गिआ – – – !
जिंमीदार नस गिआ – – – हो!
दुल्ला भट्टी ने उस समय दिल्ली पर राज करने वाले अकबर जैसे शक्तिशाली मुगल बादशाह को चुनौती दी थी। इस दुल्ला भट्टी के सिख इतिहास से गहरे संबंध थे, ननकाना साहिब निवासी नवाब राय बुलार भट्टी के ख़ानदान से ही दूल्हा भट्टी संबंधित था। दुल्ला भट्टी ग्राम पिंड़ी भट्टी का मूल निवासी था। इस ग्राम से विभाजित होकर ही नवाब राय बुलार के बुजुर्ग राय भोई की तलवंडी के निवासी हुए थे। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के पिता कालू मेहता जी इस नवाब राय बुलार के यहां पर ही पटवारी की नौकरी करते थे। नवाब राय बुलार के द्वारा प्रदान की हुई ज़मीन पर ही वर्तमान समय में पाकिस्तान की धरती पर गुरुद्वारा ननकाना साहिब की अत्यंत विलोभनीय और सुंदर इमारत सुशोभित है।
पंजाबी सभ्याचार के इस इतिहास को इस तरह से भी अंकित किया गया है—
सदा ही जिउंदीआं जग ते ओह कौमा,
जिहदे पुत किते घलणा घालदे ने,
छंने खोपड़ी दे फड़के पुत,
जिहदे कौम नुं अमृत पियावंदे ने. . .॥
योद्धा दुल्ला भट्टी बादशाह अकबर की दृष्टि में बहुत बड़ा बागी था परंतु पंजाबी और पंजाबियत के लिए वह बहुत बड़ा इंकलाबी था। इतिहास गवाह के दूल्हा भट्टी को लाहौर में फांसी पर चढ़ाया गया था, निश्चित ही दूल्हा भट्टी पंजाबियों की शान था उसने पंजाबियों की इज्जत बचाने के लिये, लाचार और क़मजोर लोगों के हक की लड़ाई के लिए, सुंदरी और मुंदरी नामक पंजाबी बेटियों के लिए अपने आप को न्योछावर कर वह शहीद हो गया था और उसने अपने पंजाबी होने का हक अदा कर दिया था। पंजाबियत वह है जो किसी पर क़र्ज चढ़ाती नहीं और चढ़ा हुआ क़र्ज शीश देकर भी उतार देती है।
दुल्ला भट्टी और लोहड़ी के त्यौहार की महानता वाघा सरहद के जितने इस तरफ (अर्थात चढ़दा पंजाब हिंदुस्तान) में है उतनी ही उस तरफ (अर्थात लहंदा पंजाब पाकिस्तान) में भी है। बेशक देश की सीमाओं ने हमें बांट दिया है, बेशक इन सीमाओं की दीवारों से पंजाब को बांट दिया गया है परंतु पंजाबियत नहीं बटी है। हमारी संस्कृति, हमारा सभ्याचार और हमारी विरासत एवं हमारे वारिस बांटे नहीं जा सकते हैं, वह एकजुट हैं और हमेशा रहेंगे। विरासत से बांटे गए हैं वारिस परंतु वारिसों से विरासत बांटी नहीं जा सकती है। पंजाब के बेशक बन गए पंजाब कई परंतु पंजाबी से पंजाबियत को तोड़ा नहीं जा सकता है। आओ हम सभी इस सांझी वालता के त्योहार लोहड़ी को मिलकर हर्षोल्लास से मनाए।
साभार 1. टीम खोज–विचार के द्वारा रचित पंजाबी सभ्याचार पर अधोरेखित यह लेख सरदार रणजीत सिंह जी राणा (यू.के. निवासी) द्वारा रचित पंजाबी भाषा के साहिब चैनल पर पोस्ट की हुई वीडियो क्लिप से प्रेरित है।
2 लेख में प्रकाशित पंजाबी के पद्यों की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।
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