श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी और आजादी की अभिव्यक्ति
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चलते–चलते. . . .
(टीम खोज–विचार का उपक्रम)
अप्रैल सन् 1699 ई. को बैसाखी दिवस पर करुणा, कलम और कृपाण के धनी, दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ के द्वारा ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की सर्जना कर प्रथम पांच प्यारों को सिख सजाया गया था और उन्हीं पांच प्यारों से गुरु जी ने स्वयं अमृत पान कर विश्व के भौगोलिक नक्शे पर एक अदद, मानवतावादी धर्म अर्थात् सिख धर्म का उदय गुरु जी के कर–कमलों के द्वारा हुआ था। इस नवीन धर्म में ख़ालसा सजने के तुरंत बाद गुरु जी ने स्वयं अमृत छककर छोटे बड़े, जात–पात और ऊंच–नीच का भेद समाप्त कर दिया था। इस ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ ने अपनी सेवा, सिमरन, त्याग, इंसानियत, देशभक्ति और रणभूमि में ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के लिये दी गई शहादत के जज्बे से अपनी एक अलग विशेष पहचान विश्व के मानस पटल पर निर्माण की है।
विश्व में सिख धर्म को सबसे आधुनिक धर्म माना गया है। सिख धर्म को एक मार्शल धर्म भी माना जाता है। ऐसी क्या विशेषता है इस धर्म की? जो सिख धर्म के अनुयाई हैं, उनकी एक विशेष प्रकार की ‘जीवन शैली’ होती है। इनके जीवन में विनम्रता, व्यक्तिगत स्वाभिमान और ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को कायम रखने के लिये सिखों में शहीदी को समर्पित होने का विशेष महत्व है। प्रत्येक सिख ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के द्वारा ‘किरत करो, नाम जपो और वंड़ छकों’ के सिद्धांत के अनुसार जीवन व्यतीत करता है अर्थात कष्ट करो, प्रभु–परमेश्वर का स्मरण करो और जो भी प्राप्त हो उसे मिल बांट कर खाओ। सिख धर्म के अनुयायी प्राकृतिक रूप से ही स्वयं को बंधनों से मुक्तकर ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के अनुसार जीवन जीने की शैली में अपना पूर्ण विश्वास रखते है। सिख धर्म के संस्थापक प्रथम गुरु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने अपनी बाल्यावस्था में 9 वर्ष की आयु में ही ब्राह्मण द्वारा प्रदित जैनउ को धारण करने से मना कर दिया था और तो और अपनी दसवीं ज्योत के रूप में प्रकाश कर करुण–कलम और कृपाण के धनी, ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ 9 वर्ष 6 माह की आयु में उस समय के सबसे ताकतवर बादशाह औरंगज़ेब, जो कश्मिरी पंडितों की ज़बरजस्तजस्ती जैनउ उतारना चाहता था उसके खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक दिया था एवं ऐलान कर कहा कि ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को बरकरार रखने हेतु चाहे सरबंस शहीद करवाना पडे़ पर जैनउ उतरने नही दूंगा। सिख धर्म के पहले शहीद ‘भाई तारु पोपट’ से लेकर हाल ही में लखमीपुर खिरी में हुये सिख किसानों की शहीदीयों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सिख धर्म ने अपने प्रारंभ काल से लेकर वर्तमान समय तक ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के लिये लाखों शहीदीयां दी है। यदि इतिहास को परिेपेक्ष किया जाये तो स्पष्ट होता है कि बाबा बंदा सिंह बहादुर से लेकर सन् 1984 ई.तक के अभिलेख के अनुसार 849000 (आठ लाख उनपचास हजार) सिखों ने ‘देश–धर्म’ की रक्षा के लिए और जुल्मों के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति प्राप्त कर ‘शहादतें’ प्राप्त की हैं। सन् 1984 ई. से लेकर सन् 2021 ई. तक 9 लाख से भी अधिक सिखों ने शहादत् का जाम पिया है। प्रसिध्द सिख इतिहासकार भाई इकबाल सिंह जी लिखित पुस्तक के अनुसार अभी तक 9 लाख से भी अधिक सिखों ने ‘शहादत्’ का जाम पिया है। हाल ही में सन् 2020 ई.में लद्दाख की सीमा पर चिनियों से हुए युद्ध में सरदार गुरतेज सिंह ने अपनी म्यान से कृपाण निकालकर अकेले ही 12 चीनियों को मौत के घाट उतार वीरगति प्राप्त की एवं किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) में जो सिख किसान शहीद हुए, उन सभी शहीदों ने अपने नामों को 9 लाख से भी ज़्याद सिख ‘शहीदों’ में अंकित किया है।
सिक्खी ‘जीवन शैली’ में जीवन व्यतीत करने वाले सिख के लिए यदि ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को विश्लेषण करना हो तो हम कह सकते हैं कि वह सिख जो कायरता के भाव को ह्रदय मन में उत्पन्न ना होने दें और रणभूमि में शत्रु को पीठ ना दिखाएं एवं काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को त्यागने की क्षमता रखता हो, ऐसे सत्कार योग गुरु घर के सेवादार ही ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को कायम रखने हेतु अपना सर्वस्व गुरु चरणों में अर्पित करते हैं। वह ही सिख ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के रखवाले होते हैं जिनकी रगों में भक्ति, दान देने की प्रवृत्ति और शुरवीरता का ज़ज्बा होता हैं।
इस लेख में हम देखेंगे कि ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के लिये ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी का क्या फरमान है? ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी में अंकित किया गया है कि—
सलोक कबीर॥
गगन दमामा बाजिओ परिओ नीसानै घाउ॥
खेतु जु माँडिओ सूरमा अब जूझन को दाउ॥
सूरा सो पहिचानीऐ जु लरै दीन के हेत॥
पुरजा पुरजा कटि मरै कबहू न छाडै खेतु॥
(अंग क्रमांक 1105)
अर्थात् वह ही शूरवीर योद्धा है जो ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को बरकरार रखने के लिये दीन, दुखियों के हित में लड़ता है। जब मन–मस्तिष्क में युद्ध के नगाड़े बजते हैं तो धर्म योद्धा निर्धारित कर वार करता हैं और मैदान–ए–ग़िरफ्तार में युद्ध के लिए ‘संत-सिपाही’ हमेशा तैयार–बर–तैयार रहता हैं। वह ‘संत–सिपाही’ शूरवीर हैं, जो धर्म युद्ध के लिए जूझने को तैयार रहते हैं। शरीर का पुर्जा–पुर्जा कट जाए परंतु आखरी सांस तक मैदान–ए–ज़ंग में युद्ध करता रहता है।
‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के लिये ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ वाणी में अंकित किया गया है कि—
भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन॥
(अंग क्रमांक 1427)
अर्थात् हम किसी को डराते नहीं और ना ही हम किसी से डरते हैं।
‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ के लिये ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ बाणी में अंकित किया गया है कि—
जे जीवै पति लथी जाइ॥
सभु हरामु जेता किछु खाइ॥
(अंग क्रमांक 142)
अर्थात् यदि तुम्हारे सामने कोई जुल्म कर सामने वाले की इज्जत–आबरू को उतार रहा हो तो ऐसे समय में तुम चैन से कैसे रह सकते हो? तुम चैन से कैसे रोटी खा सकते हो?
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी का फरमान है कि—
जो सूरा तिस ही होइ मरणा॥
जो भागै तिसु जोनी फिरणा ॥
(अंग क्रमांक 1019)
अर्थात् ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को कायम रखने हेतु वह ही योद्धा होते हैं, जो जीते जी अपने आप को शहीद मानते हैं और जो रणभूमि से भाग जाते हैं वह योनियों में भटकते रहते हैं।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी का फरमान है कि—
नानक सो सूरा वरीआमु जिनि विचहु दुसटु अंहकरणु मारिआ ॥
(अंग क्रमांक 86)
अर्थात् वह ही शुरवीर है जिन्होंने अपने अंतःकरण के अहंकार को समाप्त कर लिया है।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी का फरमान है कि—
जउ तउ प्रेम खेलण का चाउ॥
सिरु धरि तली गली मेरी आउ॥
(अंग क्रमांक 1412)
अर्थात् यदि तुम मेरे साथ प्रेम का खेल खेलना चाहते हो तो अपने शीश को अपनी हथेली पर रखकर मेरे समूह में शामिल हो जाओ।
‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ को कायम रखने के लिए करुणा, कलम और कृपाण के धनी दशमेश पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने उस अकाल पुरख के सम्मुख अपनी निम्नलिखित रचना को उच्चारित कर वर मांगा था कि—
देह सिवा बरु मोहि इहै सुभ करमन ते कबहूं न टरो॥
न डरो अरि सो जब जाइ लरो निसचै करि अपुनी जीत करो॥
अरु सिख हौ आपने ही मन को इह लालच हउ गुन तउ उचरो॥
अर्थात् हे परमपिता–परमेश्वर! ऐसी बक्शीश प्रदान कर कि हम शुभ कर्मों को करने हेतु कभी पीछे ना रहे, दुश्मन से कभी ना डरें, जब रणभूमि में जाकर युद्ध करें तो निश्चय कर अपनी जीत को अर्जित करें। मेरे मन को यह शिक्षा प्राप्त हो, मेरी कामना है कि मैं नित्य तेरा ही स्मरण करता रहूं और जब मेरी आयु का अंत हो तो रणभूमि में जूझ कर शहादत को प्राप्त करूं।
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी में ही ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ निहित है और इस ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ का मकसद जुल्म करना, धोखा देना, किसी को लूटना या किसी देश को गुलाम बनाना नहीं है अपितु इस ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ में परोपकार, दीन–दुखियों की रक्षा और इंसानियत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना है। यह ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ ताकत अर्जित करना नहीं सिखाती अपितु बुराई से संघर्ष करने की राह दिखाती है। इस ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ का आत्मिक पहलू काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार पर विजय प्राप्त करना है। ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की उपदेशित ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ से ही दुनिया की भूख, जात पात, ऊंच नीच, बेरोजगारी एवं गुलामी से निजात मिल सकती है। इस तरह से प्राप्त ‘आज़ादी की अभिव्यक्ति’ हमें अहिंसात्मक रूप से प्रगाढ़ रहने की प्रेरणा तो देती है परंतु यह भी दर्शाती है कि किसी अच्छे कार्य के लिए शस्त्र उठाना पुण्य कमाने के समान है।
नोट 1.चलते–चलते श्रृंखला के मार्गदर्शक और प्रेरणा स्त्रोत ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के महान इतिहासकार सरदार भगवान सिंह की खोजी है।
2.श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।
3. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।
साभार लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।
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