ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
(अद्वितीय सिख विरासत/गुरबाणी और सिख इतिहास,टीम खोज–विचार की पहेल)|
श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी और स्त्री सम्मान
यदि किसी देश, धर्म या कौम के इतिहास को परिपेक्ष्य करना हो तो उसका आधार उस स्थान पर विकसित समाज पर निर्भर करता है और उस समाज का आधार होता है उस स्थान पर निवास करने वाले परिवार, एवं परिवार का आधार परिवार के व्यक्तियों पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की धरोहर होती है बचपन में प्राप्त हुई मां की गोद! मां से प्राप्त संस्कारों से ही व्यक्ति एक उत्तम नागरिक में परिवर्तित होता है। बचपन में मां से प्राप्त संस्कार, भविष्य के संपूर्ण जीवन की रूपरेखा होते हैं।
फ्रांस के सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट ने स्वयं कहा था कि यदि देश मुझे आदर्श माताएं प्रदान करें तो हम एक उत्तम और आदर्श देश का निर्माण कर सकते हैं। अर्थात किसी आदर्श देश का आधार मां की गोद में प्राप्त संस्कारों पर निर्भर होता है।
इस दुनिया में अनोखे हैं वह इंसान! जिन्होंने इंसानियत की आन-बान और शान के लिए त्याग और शहादत देकर अपने जीवन को एक प्रकाश-पुंज की भांति बनाया।
उन्होंने आम लोगों की भीड़ से उठकर, राजसी मंडल में अपना एक स्थान स्थापित किया और ऐसे ही लोग प्रमुख समाज सुधारक हुए। जिनके पावन-पुनीत और पवित्र विचार एवं उच्च धार्मिक मर्यादाओं के कारण इन्हें संत, महापुरुष, अवतार और पीर-पैगंबर की महिमा से महिमामंडित कर, लाखों लोगों ने अपना जीवन इनके हुकुम में समर्पित कर दिया।
यदि ऐसे ज्ञानवान, विकासशील, देश भक्त, समाज सुधारक और युगदृष्टा एवं प्रसिद्ध लोगों की जीवनी का अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि ऐसे महान अवतारी महापुरुषों के पीछे आत्मत्याग और सौहार्दपूर्ण व्यवहार वाली कोई ना कोई स्त्री अवश्य होती है। निश्चित रूप से स्त्री, पुरुष की सलाहकार, वजीर और अर्धांगिनी होती है। जीवन की अंतिम साँस तक साथ निभाने वाली संगिनी होती है। स्त्री के बिना पुरुष का जीवन रूखा, सूखा, फीका और स्वादहीन है। एक पुरुष के जीवन में स्त्री का साथ अनंत, आनंद की यात्रा है। वह स्त्री ही है जो जीवन में यह संदेश देती है कि यह पृथ्वी बहुत सुंदर है, प्यार करने के लिये, प्यार बांटने के लिये, कौन नहीं जानता कि? साहित्य, कला, खेल, नृत्य और संगीत स्त्री की आत्मीयता से, ह्रदय से ही छलकती है।
“यदि सारी दुनिया का राजपाट मिल जाए और उस पुरुष के जीवन में स्त्री ना हो तो उस पुरुष का जीवन भिखारियों से भी ज्यादा गया गुजरा है। ऐसे पुरुष से कंगाल, मजदूरी करने वाला पुरुष बेहतर है, जिसके जीवन में स्त्री का संग है”।
यदि इतिहास का अवलोकन किया जाए तो स्पष्ट है कि, समय-समय पर विद्वानों ने और लेखकों ने लिखा है कि स्त्री वह जीवधारी प्राणी है, जिसकी हड्डियों की उदारता से उसका कंकाल बना हुआ है। उसका जीवन दया की मिट्टी से निर्मित है। जिसकी कुर्बानियों ने ना समाप्त होने वाले संकटों को जीवन का नाम दिया है।
स्त्री के सौहार्दपूर्ण व्यवहार का कोई तोड़ नहीं है। लोगों की मुसीबतों को अपने स्वयं के दुखों से अधिक महसूस करने का नाम स्त्री है! लोगों की कमजोरियों को स्वयं के दायित्व में लेकर उस पर पर्दा डालने का नाम स्त्री है! लोगों के लिए अपार कष्ट उठाना, लोगों की चिंताओं के लिए हमेशा चिंतातूर रहना और स्वयं के लहू को लोकहित में सुखाने का नाम स्त्री है! स्वयं की शहादत देकर दुनिया को बचाने का नाम स्त्री है! त्याग, सेवा और समर्पण के लिए तन-मन और धन की आहुति देने वाली का नाम है स्त्री! जीवन रुपी वसंत में बहार लाती है स्त्री!
इतिहास गवाह की अनुकूल समय, योग्य हालात और उचित मौका प्राप्त हो तो इन स्त्रियों ने जीवन की घुड़दौड़ में हर मैदान में अपनी योग्यता को सिद्ध किया है। देश सेवा, समाज सुधार, व्यावसायिक दृष्टिकोण, विद्या, हुनर, साहित्य या युद्ध का मैदान, हर क्षेत्र में इन्होंने अपनी निपुणता को सिद्ध कर, अपनी धाक जमाई है। जिस पर निश्चित ही मनुष्य जाति मान महसूस कर सकती है। घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी को जिस सहजता से स्त्रीयों ने संभाला है, उसका शब्दों में वर्णन करना कठिन है। चुपचाप, शांति से, असहे-अकहे कष्टों को सहन करती हुई, धीर-गंभीर और शूरवीरता का जीता-जागता उदाहरण पेश करती है स्त्री! जिसे देखकर इंसान दांतो तले उंगली दबा कर रह जाता है।
‘गुरु पंथ खालसा’ की अनुयायी इन स्त्रियों ने जहां गुरु साहिब की शिक्षाओं को धारण कर, देश सेवा, कौम की सेवा, में अग्रिम स्थान प्राप्त किया है, वहीं अपने सौहार्दपूर्ण व्यवहार से, अपने फर्जों का पालन करते हुए, राज प्रबंध की जिम्मेदारियों को सहजता से निभाया है। धर्म के लिए अमीट जोश पूर्ण चरित्रवान जीवन को धारण करना, ऐसे अनेक उदाहरण है, जिसके कारण स्त्री जाति का नाम सुनते ही प्रत्येक इंसान अदब और सत्कार से अपना शीश झुका देता है। किसी विद्वान ने क्या खूब लिखा है कि–
‘यदि तारे आकाश की कविताएं तो स्त्रियां इस धरती की और यदि स्त्री एक कविता है तो उसका स्त्रीत्व पूर्ण महाकाव्य है। निश्चित ही इस दुनिया के तारों को निखारना केवल और केवल स्त्री जाति के सामर्थ्य में है।
यदि सिख धर्म के इतिहास का अवलोकन करें तो ज्ञात होता है कि सिख धर्म के प्रथम गुरु ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने स्त्रियों को सम्मानित करते हुए बराबरी का दर्जा प्रदान किया है और तो और उस अकाल पुरख (परमपिता–परमेश्वर) के पश्चात स्त्री को ही सर्वश्रेष्ठ माना है। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने अपनी वाणी में अंकित किया है–
महला 1 ॥
भंडि जंमीऐ भंडि निंमिऐ भंडि मंगणु वीआहु॥
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु॥
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु॥
सो किउ मंदा आखिऐ जितु जंमहि राजान॥
भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ॥
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ॥
जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि॥
नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि॥
(अंग क्रमांक 473)
अर्थात् उपरोक्त रचित ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के सबद (पद्य) का ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने आसा राग में उच्चारण कर वचन किए हैं कि, स्त्री अत्यंत महान है। स्त्री के बिना संसार की कल्पना संभव नहीं है कारण स्त्री जन्म लेती है और जन्म देती है, स्वयं स्त्री से ही परिणय बंधन की रस्मों को संपूर्ण किया जा सकता है। स्त्री से ही दोस्ती और संबंध जीवन में प्रवाह मान होते हैं। सांसारिक जीवन की राह/गति स्त्री होती है। उसके बिना जीवन अत्यंत कठिन और दुश्वार है। यदि किसी पुरुष की स्त्री का देहांत हो जाता है तो उसे जीवन रूपी यात्रा को व्यवस्थित गतिमान करने हेतु पुनर्विवाह करना पड़ता है। सांसारिक रिश्तेदारी में स्त्री से ही प्रवाह मान होती है। इसलिए स्त्री को क़मजोर क्यों माना जाए? जिस स्त्री ने बड़े बड़े राजा और महापुरुषों को जन्म दिया, वह स्त्री मंदा (क़मजोर, छोटी या बुरी) कैसे हो सकती है? स्त्री से ही स्त्री जन्म प्राप्त करती है। स्त्री के बिना जीवन अधूरा है केवल अकाल पुरख परमात्मा ही अजूनी है। अर्थात् जो स्त्री की कोख से जन्म प्राप्त नहीं करता है। गुरु पातशाह जी फरमाते हैं कि वह मुख और पवित्र है जो हमेशा उस अकाल पुरख की उसतत करते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों की लोक–परलोक में जय-जयकार होती है। सिख धर्म के तीसरे गुरु ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ ने तो पर्दा प्रथा का पुरजोर विरोध भी किया था।
भाई गुरदास जी रचित वारां में अंकित है—
देख पराईआ चंगीआ मावाँ भैणाँ धीयाँ जाणै॥
अर्थात् यदि कोई पुरुष किसी पराई स्त्री को देखता है तो उसे अपनी मां–बहन या बेटी के नजरिए से देखना चाहिए।
सिख रहत मर्यादा जो श्री अकाल तख़्त साहिब जी द्वारा अधोरेखित की गई है अनुसार सिख धर्म में प्रत्येक स्त्री को पुरुष के समान बराबरी का हक प्रदान किया गया है। सिख धर्म की शिक्षाओं अनुसार परमात्मा की प्राप्ति हेतु स्त्रियों के कई गुण सहायक होते हैं, इनमें से आत्मीय प्यार, स्नेह, संवेदनशीलता और संतोष प्रमुख गुण है। गुरुवाणी अनुसार स्त्री के तीन प्रमुख स्वरूपों का उल्लेख होता है। कुचजी, सुचजी और गुणवती!
अर्थात कुचजी वह स्त्री है जो केवल पति के धन से ही मोह रखती है। सुचजी जी अर्थात वह स्त्री जो पति को परमेश्वर मानती है परंतु कहीं ना कहीं कठिन समय पर वह दिशा भ्रमित हो जाती है एवं गुणवती अर्थात वह सुचजी स्त्री जो कठिन समय में भी रहा बना लेती है।
सिख मांओं ने ही ऐसे आदर्श प्रदान किए हैं जो अपनी संतानों को देश–धर्म की रक्षा के लिए शहादत के जज्बे से ओतप्रोत करती है। बेबे नानकी ( श्री गुरु नानक देव साहिब जी की बहन) ने ही अपनी दिव्य दृष्टि से गुरु पातशाह जी को पहचाना था। माता खीवीं जी जो तीसरी पातशाही ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ की सुपत्नी थी और उनके सहयोग से ही पंगत और संगत प्रथा को प्रारंभ किया गया था। बीबी अमरो जी का आदर्श जीवन सिख धर्म में एक मिसाल है। यदि माता गुजरी जी का जीवन अवलोकित करें तो उन्होंने तो अपना सरबंस और स्वयं को शहीद करवाकर ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की नींव को मजबूती प्रदान की थी। सिख धर्म की स्त्री–रण रागिनी और सेना प्रमुख माई भागो जी ने अपनी वीरता से ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ के स्वर्णिम इतिहास को रोशन किया था एवं 40 बेदावा सिखों को पुनः ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ की मुख्यधारा में जोड़ने का अभूतपूर्व कार्य किया था। इतिहास गवाह की खालसे की माता साहिब कौर जी ने गुरु जी की शहीदी के पश्चात सर्वहत्तम नेतृत्व ‘गुरु पंथ ख़ालसा’ को प्रदान किया था।
सिख धर्म में स्त्री को क़मजोर करने से रोका और ईश्वर के पश्चात महान दर्जा देकर बराबरी का हक प्रदान किया है। ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने तो स्त्रियों को अमृत पान करवाकर उनके वह हौसले बुलंद किए हैं कि उन्हें शस्त्रों से सजाकर आत्मनिर्भरता प्रदान की एवं इन वीर स्त्रियों ने स्वयं तो शहादतें प्राप्त की परंतु साथ ही अपने छोटे छोटे बच्चों के टोटे–टोटे (टुकड़े टुकड़े) करवा कर, अपनी गोदी में डलवा कर भी उस परमपिता परमेश्वर (अकाल पुरख) का शुकराना अदा किया है।
भारत के नेशनल क्राइम ब्यूरो (राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो) के एक सर्वे के अनुसार देश में प्रत्येक 15 मिनट के अंतराल में एक स्त्री का शारीरिक शोषण होता है साथ ही यह आंकड़े निरंतर तेजी से बड़ रहे हैं। ऐसे विकट समय में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की गुरुवाणी ही की शिक्षाओं को आत्मसात कर स्त्री को संपूर्ण सम्मान एवं आदर प्रदान करना, एक उन्नत और विकासशील समाज की आधारशिला को रखना होगा।
नोट 1. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।
2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।
साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पद्यो की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।
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