हमारा पंजाबी सभ्याचार
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
चलते–चलते. . . .
(टीम खोज–विचार की पहेल)
हमारा पंजाबी सभ्याचार
यदि पंजाबी सभ्याचार को सरल शब्दों में विश्लेषित करना हो तो हम कह सकते हैं कि संपूर्ण विश्व में जो ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के आचार–विचार, संस्कार और उपदेशों के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाली संगत अर्थात ‘नानक नाम लेवा संगत’ जिसमें सिख, मोना पंजाबी, जाट, सिंधी समाज, नेगी सिख, सिकलीगर सिख, लबाना सिख, बंजारा सिख या पंजाबी भाषा बोलने वाले सभी लोग इस पंजाबी सभ्याचार की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
इस लेख में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की गुरुवाणी के माध्यम से पंजाबी सभ्याचार को अधोरेखित करने का प्रयास लेखक के द्वारा किया गया है
‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने तो पंजाबी सभ्याचार के दर्शन शास्त्र की नींव को रखा है उन्होंने उपदेशित किया कि ‘नाम जपो, कीरत करो और वंड छकों’ अर्थात प्रभु–परमेश्वर का स्मरण करो, मेहनत की कमाई करो और जो मिला है उसे बांट कर खाओ, यही तो पंजाबी सभ्याचार है।
पंजाबी सभ्याचार को भक्त कबीर जी ने अत्यंत सुंदर ढंग से इस पद्य (सबद) में अंकित किया है–
अवलि अलह नूरु उपाइआ क़ुदरति के सब बंदे॥
एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे॥
(अंग क्रमांक 1349)
अर्थात वह ऊर्जा जो अति सूक्ष्म तेजोमय, निर्विकार, निर्गुण, सतत है और अनंत ब्रह्मांड को अपने में समेटे हुए हैं। किसी भी तंत्र में उसके लिये एक सिरे से उसमें समाहित होती है और एक या ज़्याद सिरों से निष्कासित होती है। जिस एक नूर से सृष्टि की उत्पत्ति हुई वह हीं प्रभु–परमेश्वर और अल्लाह है। हम सभी उसी के बंदे हैं इसलिए हम अलग–अलग कैसे हो सकते हैं? उपरोक्त सबद (पद्य) के अर्थ में ही पंजाबी सभ्याचार निहित है। इस सभ्याचार में इंसानियत को विशेष महत्व दिया गया है, इस सभ्याचार में ऊंच नीच, जात–पात, स्त्री–पुरुष के भेद का कोई स्थान नहीं है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि–
जाति का गरबु न करीअहु कोई॥
ब्रहमु बिंदे सो ब्राहमणु होई ॥
(अंग क्रमांक 1127)
अर्थात हमें अपनी जाति पर गर्व नहीं करना चाहिए, जो ब्रह्म को समझता है वह ही ब्राह्मण है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि–
तुम कत ब्राह्मण हम कत सूद॥
हम कत लोहू तुम कत दूध॥
(अंग क्रमांक 324)
अर्थात यह कैसे संभव है? कि तुम ब्राह्मण हो और मैं एक शूद्र हूं। यह कैसे संभव है? कि मैं लहू (रक्त) से बना हुआ हूं और तुम दूध से बने हुए हो।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि–
जौ तूं ब्राहमणु ब्रहमणी जाइआ॥
तउ आन बाट काहे नही आइआ॥
(अंग क्रमांक 324)
अर्थात यदि तुम्हारा जन्म ब्राह्मणी माता की कोख के द्वारा हुआ है तो तुम किसी और रास्ते से दुनिया में क्यों नहीं आये? गुरुवाणी में अधोरेखित इन प्रश्नों से ही पंजाबी सभ्याचार अभिभूत होता है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि स्त्री–पुरुष में कोई भेदभाव नहीं है।
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जंमहि राजान॥
(अंग क्रमांक 473)
अर्थात् वह स्त्री बुरी कैसे हो सकती है? जिसने राजा–महाराजाओं को जन्म दिया हो।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि–
बेगम पुरा सहर को नाउ॥
दूखु अंदोहु नही तिहि ठाउ॥
नाँ तसवीस खिराजु न मालु॥
खउफु न खता न तरसु जवालु॥
(अंग क्रमांक 345)
अर्थात इस पंजाबी सभ्याचार के मानने वालों के द्वारा एक ऐसा शहर बेगमपुरा (काल्पनिक नाम)/समाज का विकास होगा, जहां ना डर होगा, ना भय होगा और ना ही कोई किसी पर आश्रित होगा। प्रत्येक व्यक्ति स्वाभिमान से अपना जीवन यापन कर सकेगा।
पंजाबी सभ्याचार यह दर्शाता है कि—
भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन॥
(अंग क्रमांक 1427)
अर्थात हम किसी को डराते नहीं और ना ही हम किसी से डरते हैं।
पंजाबी सभ्याचार में रोटी–बेटी के रिश्ते को प्रमुखता दी गई है। जिसे गुरुवाणी में इस तरह अंकित किया गया है–
सभे साझीवाल सदाइनि तूं किसै न दिसहि बाहरा जीऊ॥(अंग क्रमांक 87)
अर्थात हे ईश्वर तेरी रहमत से हम सभी सांझीवालता में जीवन व्यतीत करते हैं। तेरी रहमत किसी और के लिए अलग नहीं हो सकती है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि—
घालि खाइ किछु हथहु देइ॥
नानक राहु पछाणहि सेइ॥
(अंग क्रमांक 1245)
अर्थात अपने हाथों से मेहनत, मशक्कत कर कमाई करनी है और उस कमाई से ‘दसवंद’ (किरत कमाई का दसवां हिस्सा) समाज हित में दान–पुण्य भी करना है। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ उपदेशित करते हैं कि ऐसे लोग ही सच्चे जीवन के रीति–रिवाज में जीते हैं।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि—
पवणु गुरु पाणी पिता माता धरति महतु॥
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु॥
(अंग क्रमांक 8)
अर्थात हमें प्रकृति के अनुकूल जीना चाहिए। पवन गुरु है, पानी पिता है और धरती को माता की तरह सम्मान करना चाहिए। दिन–रात को उप पिता, उप माता है, जिसकी गोदी में यह संसार खेल रहा है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि—
राजे सीह मुक़दम कुते॥
जाइ जगाइनि् बैठे सुते॥
(अंग क्रमांक 1288)
अर्थात पंजाबी सभ्याचार प्रजा को अंधकार से निकालकर ज्ञान की रोशनी की बात करता है। इस सभ्याचार में ज्ञान की प्राप्ति को विशेष महत्व दिया जाता है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि—
कोई मुगलु न होआ अंधा किनै न परचा लाइआ॥
(अंग क्रमांक 418)
अर्थात मंत्र पढ़ने से कोई भी आक्रमणकारी मुगल अंधा नहीं हुआ और ना ही कोई करामात हुई।
पंजाबी सभ्याचार भ्रमों और वहमों से कोसों दूर है। इसे गुरुवाणी में इस तरह अंकित किया गया है
हरि का संतु मरै हांड़बै त सगली सैन तराई॥
(अंग क्रमांक 484)
अर्थात यदि कोई प्रभु का प्यारा अकाल चलाना (स्वर्गवास) करता है तो वह अपने परिवार को भी तार लेता है।
पंजाबी सभ्याचार दर्शाता है कि—
लउकी अठसठि तीरथ ना्ई॥
कउरापनु तऊ न जाई॥
(अंग क्रमांक 656)
अर्थात यदि तुम 68 तीर्थो पर भी स्नान कर लो तो भी मन की मैल दूर नहीं होगी। तीर्थों पर नहाने से कोई पवित्र नहीं हो जाता है, तीर्थों पर नहाने से पाप नहीं उतरते हैं, तीर्थों पर नहा के पुन: पाप करने की इजाजत पंजाबी सभ्याचार नहीं देता है।
बाबा बुल्ले शाह, संत कबीर जी, भक्त फरीद जी की वाणीयों में से पंजाबी सभ्याचार के दर्शन शास्त्र को विस्तार से समझा जा सकता है।
पंजाबी सभ्याचार वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चलता है। इस सभ्याचार में आधुनिक विकास को सहजता से स्वीकार कर, स्वयं में बदलाव की नई नीति को अपनाने का अपना एक विशेष महत्व है। पंजाबी सभ्याचार ज़िद्दी नहीं है अपितु स्वाभिमानी है। स्वाभिमान के अंतर्गत ही पंजाबी सभ्याचार की विरासत चली आ रही है। पंजाबी सभ्याचार के इतिहास में शहादत के जज्बे को विशेष महत्व प्रदान किया गया है।
जब देश में अन्न–धान्य की कमी को महसूस किया गया तो इस पंजाबी सभ्याचार में जीवन व्यतीत करने वाले लोगों ने ही देश की अन्न–धान्य की उपज कर देश में हरित क्रांति का आगाज़ किया था। पंजाबी सभ्याचार में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई है। इतिहास गवाह है कि देश की आज़ादी में सबसे अधिक शहादतें इस सभ्याचार को मानने वाले लोगों ने दी है। वर्तमान समय में भी सीमा पर देश की रक्षा के लिए इसी सभ्याचार के लोग एक चट्टान की तरह जान हथेली पर लेकर सबसे अधिक संख्या में अपनी सेवाएं अर्पित कर रहें है।
इस पंजाबी सभ्याचार की ही देन है कि गोल्डन हट वाले राम सिंह जी राणा अपनी निष्काम सेवाओं को किसान आंदोलनकारियों को समर्पित कर रहे एवं हमारी एक बहन करनाल निवासी अधिवक्ता अनुराधा भार्गव जो कि सनातन धर्म के अनुयायी है और ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की शहादत को प्रेरणा स्त्रोत मानकर इसी पंजाबी सभ्याचार का प्रचार–प्रसार निरंतर कर रही है।
पूरे विश्व में आज इस सभ्याचार के अनुयायियों ने उत्तम चिकित्सक, अभियंता, अधिवक्ता, वैज्ञानिक और उद्योजकों को जन्म दिया है। जीवन में जीत हार तो चलती रहती है परंतु इसी सभ्याचार में प्रारंभ से ही सिखाया जाता है कि ‘निश्चय कर अपनी जीत करो’। पंजाबी सभ्याचार मानवता के हित की बात करता है, इंसानियत की बात करता है, बराबरी के दर्जे की बात करता है, इन सभी प्रमुख विशेषताओं के कारण पंजाबी सभ्याचार के लोग पूरे विश्व में समाज को उत्तम नेतृत्व प्रदान करते हैं।
नोट1. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पृष्ठों को गुरुमुखी में सम्मान पूर्वक अंग कहकर संबोधित किया जाता है।
2. गुरुवाणी का हिंदी अनुवाद गुरुवाणी सर्चर एप को मानक मानकर किया गया है।
साभार— लेख में प्रकाशित गुरुवाणी के पदों की जानकारी और विश्लेषण सरदार गुरदयाल सिंह जी (खोज–विचार टीम के प्रमुख सेवादार) के द्वारा प्राप्त की गई है।
विशेष— इस लेख को दिल्ली की सीमाओं पर बैठे पंजाबी सभ्याचार को मानने वाले आंदोलनकारी किसानों को समर्पित किया गया है।
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