मेरे शब्द – मेरी विरासत

Spread the love

मेरे शब्द – मेरी विरासत

मेरे अस्तित्व की असली पहचान मेरे द्वारा रचित शब्दों से ही है। यही शब्द मेरे स्मृतिशेष व्यक्तित्व को पुनः जीवित करेंगे। समय के बहाव में मेरा नाम विस्मृति की परतों में कहीं खो जाएगा, मेरा रूप-रंग धुंधला पड़ जाएगा, परंतु मेरे शब्द – मेरी चेतना के बिंब – मेरी सर्जनात्मक धरोहर बनकर अमर रहेंगे।

जीवन की धड़कनों की डोर इन शब्दों की छाया में निरंतर गति करती रहती है। इन्हीं शब्दों के माध्यम से ज्ञान का दीपक प्रज्वलित होता है, जो अज्ञानता के तिमिर को दूर करता है। शब्द कभी निर्मल झरने की भांति बहते हैं, तो कभी पक्षियों के कलरव-से गूंजते हैं।

जब आकाश पर गहन काली घटाएं छा जाती हैं और मोर अपने नृत्य के माधुर्य से प्रकृति की उपासना करता है, तब उस सौंदर्य को अभिव्यक्त करने का माध्यम केवल शब्द ही बनते हैं। पहली वर्षा की माटी से उठती मृदगंध की स्निग्ध अनुभूति को भी शब्द ही संप्रेषित करने का सामर्थ्य रखते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य के अद्वितीय बिंब, उर्वशी के नूपुरों की रुनझुन, माँ सरस्वती की वीणा की झंकार और श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान – यदि इन भावों को शब्दों के विशेषण न मिलते, तो वे नीरस हो जाते। शब्द इन अनुभूतियों को भाव-सौंदर्य से भर देते हैं।

एक सिख के जीवन में शब्द स्वयं गुरु के समकक्ष है। गुरुवाणी ही जीवन की दिशा है, जीवन का प्रकाश है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में संकलित वाणी को यदि शब्दों के माध्यम से सच्चा सम्मान अर्पित करना हो, तो उसे कमल-दंडियों के रेशों से बनी कलम द्वारा, ओस की बूंदों की स्याही में डुबोकर, प्रातः की पहली स्वर्णिम किरण की साक्षी में, गुलाब की पंखुड़ियों पर अत्यंत विनम्रता और श्रद्धा से लिखा जाना चाहिए।

वह श्रद्धासिक्त लेखन ही उस गुरुवाणी को पुष्पांजलि समर्पित करने की भांति होगा, जिससे ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के समक्ष पूर्ण विनयपूर्वक शीश नवाया जा सके।

मेरे शब्द ही हैं, जो मेरे अस्तित्व की अंतिम पहचान बनेंगे।
यही मेरे शब्द, मेरी अनंत विरासत हैं।

शेष फिर कभी…

हकु पराइआ नानका. . . .

KHOJ VICHAR YOUTUBE CHANNEL


Spread the love

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *