प्रसंग क्रमांक 100: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित मिर्जापुर नामक स्थान का इतिहास ।

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‘तहीं प्रकाश हमारा भयो पटना शहर बिखै भव लयो’॥

उपरोक्त पंक्तियों का इतिहास इलाहाबाद से संदर्भित है। जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इलाहाबाद शहर में पधारे थे, उस समय के इस इतिहास को करुणा, कलम और कृपाण के धनी दसवीं पातशाही ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने स्वयं की कलम से रचित किया था कि–

तहीं प्रकाश हमारा भयो अर्थात् ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ का माता गुजर कौर जी की गर्भावस्था में जो प्रकाश हुआ था, वह स्थान प्रयागराज/त्रिवेणी/ इलाहाबाद (एक ही स्थान के तीनों नाम है) पर हुआ था।

कुछ समय इस स्थान पर व्यतीत करने के पश्चात जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु असम की और प्रस्थान किया तो जिन स्थानों पर इन यात्राओं के दौरान गुरु पातशाह जी गए थे तो उनके साथ माता नानकी जी एवं माता गुजर कौर ने भी इन यात्राओं में हिस्सा लिया था। उन सभी स्थानों में अदृश्य रूप में अर्थात् माता जी की गर्भावस्था में अर्थात प्रकाश रूप में ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने भी उन स्थानों को अपने चरण चिन्हों से चिन्हित किया था।

गुरु जी का यह काफिला इलाहाबाद से चलकर पवित्र गंगा नदी के किनारे होते हुए इलाहाबाद से लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मिर्जापुर नामक स्थान पर पहुंचा था। मिर्जापुर शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है, इस स्थान पर प्रथम पातशाही ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ भी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु पधारे थे। पुरातन समय में ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की स्मृति में गऊ घाट पर एक स्थान हुआ करता था परंतु वर्तमान समय में वह स्थान मौजूद नहीं है।

जिस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने निवास किया था वह स्थान मोहल्ला नारायण घाट तीस मोहाणी के नाम से चिर-परिचित है। इस स्थान पर गुरु पातशाह जी की स्मृति में गुरुद्वारा निर्मल संगत साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर गुरु पातशाह जी ने अपने परिवार सहित 4 दिनों तक निवास किया था। साथ ही स्थानीय संगत को नाम-वाणी से जोड़ा था और इस स्थान मिर्जापुर में गुरु पातशाह जी के लिखित हुकुमनामें जो कि मिर्जापुर की संगत के नाम पर थे, यह हुकुमनामें इलाहाबाद में लिखे गए थे। गुरु जी के हस्तलिखित हुकुमनामें वर्तमान समय में इस स्थान मिर्जापुर में मौजूद है। इन हुकुमनामों को जब पढ़ा जाए तो इन हुकुमनामों में मिर्जापुर की संगत के भाई बाल चंद जी, भाई हर किशन जी, भाई चतुर्भुज जी और भाई लालू जी नामक प्रमुख सिखों के नाम उल्लेखित है। इन तथ्यों से जानकारी प्राप्त होती है कि मिर्जापुर के ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के यह सिख आप जी को ‘दसवंद’ (किरत कमाई का दसवां हिस्सा) भी भेजते रहते थे। इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम की ओर से जब इस स्थान के इतिहास की खोज की गई तो इस संबंध में इस गुरु धाम के महंत आदरणीय श्याम सुंदर शास्त्री जी ने कथन करते हुए वचन किए थे कि–

 साध-संगत जी,

वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतेह।

आप जी इस समय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के चरण चिन्हों से चिन्हित स्थान मिर्जापुर के दर्शन कर रहे हो इस स्थान पर सद्गुरु जी ने 4 दिनों तक पढ़ाव किया था। उन्होंने जब पूर्व देश की यात्रा को प्रारंभ किया था। इस ऐतिहासिक स्थान पर सद्गुरु जी के हस्तलिखित हुकुमनामे और ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ के पुरातन स्वरूप भी सुशोभित हैं।

स्थानीय बुजुर्गों और संगत के सहयोग से यह जानने की कोशिश की गई कि उन पुरातन सिखों के नाम जो की गुरु पातशाह जी के हस्तलिखित हुकुमनामों में अंकित है, क्या उनकी और उनके परिवारों की कोई भी जानकारी इस वर्तमान समय में उपलब्ध है? तो ज्ञात हुआ कि ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

इस स्थान गुरुद्वारा ‘निर्मल संगत पातशाही नौवीं’ से यदि हम सौ कदम पीछे की ओर चले तो नीचे की ओर गंगा नदी  प्रवाहमान है। इस स्थान को नारायण घाट के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने परिवार और संगत सहित स्नान करते थे। इस ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब जी का प्रबंधन-संचालन महंत श्याम सुंदर दास जी शास्त्री जी के अधीन है। आदरणीय महंत जी पूर्ण गुरमत मर्यादाओं का पालन कर इस स्थान की सेवा-संभाल को निभा रहे हैं। साथ ही इस स्थान पर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की पुरातन बीड़ (श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी) भी सुशोभित है।

साथ ही यह भी जानकारी प्राप्त हुई कि इस स्थान के निवासी महंत श्याम सुंदर दास जी के धार्मिक गुरु महंत करम सिंह जी कर्णवीर जी ने जब सन् 1984 ई. में सिखों का नरसंहार हुआ था तो इलाहाबाद में ‘श्री गुरु गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की सेवा को मुख रखते हुए डटकर गुरु स्थान पर पहरा देते हुए गुरु घर की मान-मर्यादाओं की रक्षा के लिए डटे रहे और सन् 1984 ई. के सिखों के नरसंहार में आप जी ने शहादत प्राप्त की थी।

इस स्थान पर गुरु पातशाह जी ने 4 दिनों तक निवास किया था और अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु कौन से स्थान पर प्रस्थान किया था? इस समस्त इतिहास को श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 101 में संगत (पाठकों) को रूबरू कराया जायेगा।

प्रसंग क्रमांक १०१

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