प्रसंग क्रमांक 99: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबधित इलाहाबाद नामक स्थान का इतिहास|

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इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 99 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु इलाहाबाद नामक स्थान पहुंचे थे। इस इलाहाबाद के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।

सन् 1666 ई. में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु सुबा पंजाब से चलकर कड़ा मानपुर नामक स्थान से होते हुए इलाहाबाद नामक स्थान पर पहुंचे थे। उस समय गुरु पातशाह जी की आयु लगभग 45 वर्ष की थी। आप जी के आनंद कारज (परिणय बंधन) को हुए 34 वर्ष बीत चुके थे। जब गुरु पातशाह जी इलाहाबाद पहुंचे तो भाई रामलोक के द्वारा गुरु पातशाह जी एवं उनके समस्त डेरे की निवास की समुचित व्यवस्था उनकी स्वयं की हवेली में की गई थी। वर्तमान समय में इलाहाबाद में इस स्थान को गुरुद्वारा पक्की संगत पातशाही नौवीं के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर पहले एक विशाल हवेली हुआ करती थी एवं इस स्थान पर एक पुरातन कुआं भी मौजूद है।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जब इलाहाबाद में पधारे थे तो उस समय माता नानकी जी जो कि गुरु पातशाह जी की माता जी थी, उस समय माता नानकी जी ने अपने पुत्र ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को संबोधित कर जो वचन किए थे उसे ‘पंथ प्रकाश’ नामक ग्रंथ में इस तरह से अंकित किया गया है–

तुमरे सुत निज नैनन देखो कर दया दीजै फल जनम वसैखों॥

अर्थात तुम्हारे पिता ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ के किये हुए वचन कब पूरे होंगे? उनके वचन थे कि मेरा पौत्र महाबली प्रतापी पूरख कुल उजयारी करने वाला होगा। प्रसिद्ध कवि संतोख सिंह ने रचित किया है कि माता नानकी जी ने ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ को जो वचन किये वह इस प्रकार है कि पुत्तर जी–

सुत के सुत को लेकर गोद करो दुलारान पायै प्रमोद॥

अर्थात जब माता जानकी जी एवं अन्य सिख सेवादारों ने उपरोक्त वचनों को उद्धृत किया तो गुरु पातशाह जी की ओर से इस स्थान पर ही कुछ समय व्यतीत करने का मन बनाया गया था। इस स्थान इलाहाबाद में गुरबाणी पठन का प्रवाह दिन-रात प्रारंभ हो चुका था। दिन-रात गुरबाणी का सुमिरन किया जा रहा था।  ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ आप स्वयं भी संगत को नाम-वाणी से जोड़ते थे। इस स्थान पर लगभग 6 महीनों तक गुरु जी ने अपने डेरे सहित निवास किया था। इस स्वर्णिम घड़ी को ‘श्री गुरु गोविंद सिंह जी’ ने अपनी रचना में उद्धृत किया है कि–

तहीं प्रकाश हमारा भयो पटना शहर बिखै भव लेओ॥

अर्थात कि मेरा प्रकाश माता के उदर (गर्भ)  में इलाहाबाद की धरती पर हुआ और जन्म स्थान पटना साहिब जी में हुआ था। ‘श्री गुरु गोविंद सिंह जी’ का माता गुजर कौर जी के गर्भ में जो प्रकाश हुआ वह इलाहाबाद की धरती पर हुआ था। इसी स्थान पर वर्तमान समय में गुरुद्वारा साहिब पक्की संगत सुशोभित है। इस स्थान को लग कर ही एक कमरा है जो पहले नीचे की ओर होता था।

इस तरह से इलाहाबाद की स्वर्णिम धरती पर ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ का प्रकाश माता गुजर कौर जी के गर्भ में हुआ था। वर्तमान समय में इस स्थान अहियापुर मोहल्ले में गुरुद्वारा पक्की संगत साहिब जी सुशोभित है। इस गुरुद्वारा परिसर (हदूद) में एक पुरातन कुआं भी स्थित है। इस स्थान पर वह कमरा भी मौजूद है जहां पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ प्रभु स्मरण कर नाम-वाणी से जुड़ते थे। इस स्थान पर एक पुरातन श्री साहिब जी (कृपाण) और वह लकड़ी की चौकी जिस पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ आसीन होकर संगत को नाम-वाणी से उपदेशित करते थे। उस लकड़ी की चौकी के वर्तमान समय में केवल चार पाये शेष है। साथ ही उस पुरातन समय का एक शंख भी इस स्थान पर मौजूद है। यह सभी गुरु पातशाह जी की निशानियां इलाहाबाद के गुरुद्वारा पक्की संगत पातशाही नौवीं में मौजूद हैं।

इस स्थान से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु कौन से स्थान पर गए थे? इस समस्त इतिहास को संगत (पाठकों) को प्रसंग क्रमांक 100 में रूबरू कराया जाएगा।

प्रसंग क्रमांक 100: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार–प्रसार यात्रा से संबंधित मिर्जापुर नामक स्थान का इतिहास।

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