इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 98 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु प्रयागराज/इलाहाबाद नामक स्थान पहुंचे थे। इस प्रयागराज के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के दौरान कड़ा मानपुर नामक स्थान से चलकर लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर प्रयागराज नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम जब इस इलाके में गुरु पातशाह जी से संबंधित इतिहास की खोज कर रही थी तो हमारी इस खोज-विचार टीम के निवास की समुचित व्यवस्था ‘गुरु पंथ-खालसा’ के महान सेवादार सरदार परविंदर सिंह जी (पप्पू) भाटिया जी (रायपुर निवासी) की ओर से सुचारू रूप से की जा रही थी। साथ ही डाॅ. रणजीत सिंह अरोरा ‘अर्श’ पुणे से इस पूरे साहित्य को हिंदी भाषा में अनुवाद कर बखूबी से निरंतर लिख रहे हैं। इनका भी पूर्ण रूप से सहयोग हमारी टीम को प्राप्त हो रहा है। जब सफर-ए-पातशाही नौवीं श्रृंखला को रचित करने वाली टीम इस यात्रा के दौरान इलाहाबाद पहुंची तो इस स्थान इलाहाबाद के सरदार जोगिंदर सिंह जी जो कि बहुत ही प्यार और सत्कार वाले गुरु सिख वीर हैं। साथ ही गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष भी हैं उनके द्वारा इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम के निवास की समुचित व्यवस्था उनके स्वयं के ‘होटल मिलन’ में की गई थी।
जब 13 नवंबर सन् 2020 ई. को इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम इलाहाबाद पहुंची तो उस समय 14 नवंबर के दिवस दीपावली का त्यौहार था। इस कारण स्थानीय संगत के सेवादार इस त्यौहार के लिए व्यस्त थे और 2 से 3 दिनों तक इलाहाबाद में विश्राम करते हुए सरदार जोगिंदर सिंह जी से लगातार वार्तालाप होता रहा था। परिणाम स्वरूप सरदार जोगिंदर सिंह और स्थानीय संगत के सेवादारों के माध्यम से इस स्थान का ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से संबंधित इतिहास को जानने का अवसर प्राप्त हुआ था।
इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम पर दो बार हमारी टीम ने पहुंचकर इस स्थान के इतिहास को जानने का प्रयत्न किया था। हमारी टीम को एक ऐसी विशेष जानकारी यहां के इतिहास के संबंध में प्राप्त हुई कि इस स्थान पर जब ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ का आगमन हुआ था। तो उस समय कुछ पंडितों के द्वारा बहुत बड़े भ्रम जाल में फंसा कर लोगों को मारा जाता था। ऐसा बताया जाता है कि इलाहाबाद में एक शिवजी का आरा मौजूद है और जो कोई भी इस आरे पर छलांग लगाकर आत्महत्या करेगा उसे मुक्ति प्राप्त होगी। इस बहाने से जो व्यक्ति मुक्ति की आस रख कर इस स्थान पर आता था तो इन पंडितों के द्वारा उस व्यक्ति को भ्रम जाल में फंसा कर उसे कुएं में चलते हुए आरे पर छलांग लगाकर आत्महत्या के लिए प्रेरित किया जाता था एवं उस व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उस व्यक्ति की समस्त संपत्ति को ज़ब्त कर लिया जाता था। जब ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ का इस स्थान पर आगमन हुआ तो उन्होंने इस तथाकथित मुक्ति के मार्ग को वर्जित कर लोगों को सच का मार्ग दिखाया एवं उपदेशित कर कहा कि इस तरह की मौत कोई मुक्ति का मार्ग नहीं है। जीवन की जांच के द्वारा मुक्ति प्राप्त करना कुछ और विषय है। इस स्थान के स्थानिक सेवादार और गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष सरदार जोगिंद्रर सिंह जी की दिल से आत्मीय इच्छा थी कि इस इलाहाबाद शहर में ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी की स्मृति में कोई स्थान नहीं है। पुरातन समय में उनकी स्मृति में यहां एक स्थान बना हुआ था परंतु वर्तमान समय में कोई स्थान नहीं है और उपरोक्त उल्लेखित इतिहास को खोज कर इस इतिहास को सामने रखकर ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की स्मृति में एक स्थान का निर्माण इस स्थान पर संगत के सहयोग से अवश्य होना चाहिए।
दो-तीन दिन तक इस स्थान पर निवास कर स्थानीय इतिहास की जानकारी प्राप्त कर इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम को 15 नवंबर सन् 2020 ई. को उस स्थान पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ जहां ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ का प्रकाश माता गुजर कौर जी के गर्भ में हुआ था। वह कौन सा इतिहास है? कैसे ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर पहुंचे थे? इस समस्त इतिहास से संगत (पाठकों) को प्रसंग क्रमांक 99 में रूबरू कराया जाएगा।