इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 97 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु ग्राम कड़ा मानकपुर नामक स्थान पहुंचे थे। इस ग्राम कड़ा मानकपुर के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु कानपुर शहर से चलकर लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा करते हुए फतेहपुर नामक स्थान से चलकर गुरु पातशाह जी अपने परिवार और सेवादारों सहित कड़ा मानकपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। कड़ा मानकपुर गंगा नदी के तट पर बसा हुआ सनातन हिंदू धर्म का पवित्र स्थान है। इस स्थान पर प्रसिद्ध कालेश्वर नामक मंदिर स्थित है। हिंदू धर्म के अनुयायियों की इस स्थान पर गहन आस्था है।
इस पवित्र स्थान पर संत मुलूक दास जी निवास करते था। यह संत मुलूक दास जी सिख धर्म के सातवें गुरु ‘श्री गुरु हर राय साहिब जी’ के सानिध्य में किरतपुर नामक स्थान पर रहे थे। इस स्थान किरतपुर में निवास करते हुए संत मुलूक दास जी की गुरु-वाणी पर अत्यंत आस्था हो गई थी। जब संत मुलूक दास जी को ज्ञात हुआ कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के निमित्त इस इलाके में पधारे हैं तो संत मुलूक दास जी ने ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के चरणों में विनम्र निवेदन कर उन्हें अपने निजी स्थान कड़ा मानकपुर में सम्मान सहित लेकर पधारे थे। इसी स्थान पर गुरु पातशाह जी के निवास की उत्तम व्यवस्था की गई थी। साथ ही संगत और सेवादारों के निवास का भी समुचित इंतजाम किया गया था।
इस स्थान पर दरबार सजना प्रारंभ हो गए थे। संत मुलूक दास जी आसपास की संगत को प्रेरित कर इस दरबार में लाकर नाम-वाणी से जोड़ने की महत्वपूर्ण सेवा उत्तम पद्धति से निभा रहे थे। इस दरबार में ‘श्री गुरु नानक देव जी’ की वाणी, ‘श्री गुरु अंगद देव साहिब जी’ की वाणी एवं ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ की वाणी का प्रचार-प्रसार किया जाने लगा था। अमृतवेले (ब्रह्म मुहूर्त) से ही कथा, कीर्तन एवं आसा जी की वार का कीर्तन इस स्थान पर संगत द्वारा किया जाने लगा था। इस स्थान पर ही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के द्वारा शाकाहार एवं मांसाहार के संबंध में जो वहम संत मुलूक दास जी को थे, उन समस्त वहमों को दूर किया गया था। इसी स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने संत मुलूक दास जी को उपदेशित कर नाम-वाणी से जोड़ कर, जीवन जीने की जुगती से अवगत कराया था। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रिंसिपल सतबीर सिंह जी द्वारा रचित इतिहास अनुसार ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस स्थान पर संत मुलूक दास जी को भेंट स्वरूप एक गुरबाणी का गुटका (छोटे आकार की गुरबाणी की पुस्तक) प्रदान की थी।
इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में संगत साहिब गुरुद्वारा मौजूद था अर्थात् ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का स्थान भी मौजूद था परंतु इस स्थान पर सिख संगत ना होने के कारण यह स्थान धीरे-धीरे वीरान होकर अलिप्त चुका है। संत मुलूक दास जी का डेरा/स्थान इस कड़ा मानकपुर नामक स्थान पर स्थित है। सिख धर्म की धर्म प्रचार कमेटीयों को इस ओर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है। हमें विशेष प्रयत्न करने चाहिए कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पर संत मुलूक दास जी की गहरी आस्था थी और संत मुलूक दास जी को गुरु पातशाह जी ने नाम-वाणी से जोड़कर, जीवन जुगती की विशेष पद्धति से अवगत कराया था।
कड़ा मानकपुर से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा में, सिख इतिहास का कौन सा सुनहरी पृष्ठ दर्ज हुआ था? इस संपूर्ण स्वर्णिम इतिहास से संगत (पाठकों) को इस श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 98 में रूबरू कराया जाएगा।