इस प्रस्तुत श्रृंखला के प्रसंग क्रमांक 96 के अंतर्गत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु इटावा और कानपुर नामक स्थानों पहुंचे थे। इन स्थानों के संपूर्ण इतिहास से संगत (पाठकों) को अवगत कराया जाएगा।
सफर-ए-पातशाही के प्रसंग क्रमांक 95 के इतिहास अनुसार हमने जाना था कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ आगरा नामक स्थान पर गए थे। इस आगरा नामक स्थान पर गुरु जी ने माई जस्सी के निवास पर विश्राम कर धर्म का प्रचार-प्रसार किया था और संगत को नाम-वाणी से जुड़ा था। इस स्थान से गुरु पातशाह जी पटना शहर की ओर यात्रा करते हुए लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इटावा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इटावा शहर उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत आता है और ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ शहर इटावा में पहुंचे थे।
इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम जब इटावा शहर में पहुंची थी तो शाम हो चुकी थी। फर्रुखाबाद रोड पर ही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर विश्राम कर गुरु पातशाह जी से संबंधित अधिक इतिहास को जानने का प्रयत्न किया तो ज्ञात हुआ कि इस शहर में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ से संबंधित एक और भी स्थान मौजूद है। इस स्थान को पूर्वी टोला के नाम से संबोधित किया जाता है। इस स्थान को बड़ी संगत पूर्वी टोला के नाम से भी संबोधित किया जाता है। मुख्य बाजार से होते हुए गुरुद्वारा बड़ी संगत पूर्वी टोला नामक स्थान पर पहुंचा जा सकता है। जब हमारी टीम इस स्थान पर मुख्य द्वार से प्रवेश कर पहुंची थी तो इस स्थान पर पुरातन लंगर घर भी बना हुआ है और पुरातन गुरद्वारा साहिब भी मौजूद है परंतु इस स्थान पर ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का प्रकाश नहीं होता है।
वर्तमान समय में इस स्थान पर उदासीन संप्रदाय के साधु निवास करते हैं और उन्होंने ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की मूर्ति को स्थापित कर रखा है। इस संप्रदाय के लोग गुरु जी की मूर्ति की सुबह और शाम को पूजा करते हैं एवं इस स्थान पर एक स्थानीय महंत की भी मूर्ति स्थापित की हुई है। इतिहास की जानकारी प्राप्त करने से ज्ञात हुआ कि जिस महंत की मूर्ति स्थापित की गई है यही महंत अपने समय में ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ की वाणी का प्रचार-प्रसार करता था एवं ‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी’ का पठन कर संगत को नाम-वाणी से जोड़कर गुरबाणी का प्रचार करता था। वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरबाणी के प्रचार से हटकर मूर्ति पूजा की जा रही है। पुरातन समय में बड़ी संगत पूर्वी टोला गुरुद्वारा साहिब के रूप में सुशोभित था परंतु वर्तमान समय में यह स्थान उदासीन संप्रदाय के साधुओं के अधीन है। इस प्रकार से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में दो स्थान इटावा शहर में स्थित है।
इटावा शहर से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर स्थित है। इस कानपुर शहर में भी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में दो स्थान निर्मित हैं। प्रथम स्थान शहर के मध्य चौक गुरुद्वारा जिसे गुरुद्वारा ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के नाम से संबोधित किया जाता है। इस स्थान पर संपूर्ण कानपुर शहर की संगत दिनरात नतमस्तक होकर नाम-वाणी से जुड़ती हैं। साथ ही ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ पर बहुत ही श्रद्धा, भावना एवं आस्था प्रकट कर अरदास (प्रार्थना) करती हैं। दूसरा स्थान गंगा नदी के समीप स्थित है। गुरु पातशाह जी के समय पानी के स्रोत के रूप में छपड़ (झरने), कुएं या नदी किनारे हुआ करते थे। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ गंगा नदी में स्नान कर स्थानीय संगत को नाम-वाणी से जोड़कर वहमों और भ्रमों से दूर करते थे। इस कानपुर शहर में गंगा नदी के किनारे भी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। अर्थात कानपुर शहर में गुरु पातशाह जी के नाम से दो स्थान सुशोभित है। प्रथम स्थान चौक बाजार में जो कानपुर शहर के मध्य में स्थित है एवं दूसरा स्थान गंगा नदी के किनारे पर स्थित है।
कानपुर शहर से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु कौन से स्थान पर गए थे? इस संपूर्ण इतिहास को संगत (पाठकों) को प्रसंग क्रमांक 96 में रूबरू कराया जाएगा।