प्रसंग क्रमांक 90: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबधित थानेसर (कुरूक्षेत्र) का इतिहास।

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ग्राम बारना से चलकर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ थानेसर (कुरुक्षेत्र) नामक स्थान पर पहुंचे थे। हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है थानेसर, इस स्थान पर कौरव और पांडव के मंदिर भी स्थित हैं। इस स्थान पर पहुंचकर गुरु पातशाह जी ने सरस्वती नदी के किनारे पर अपना डेरा लगाया था। जब गुरु जी थानेसर पहुंचे तो इस स्थान पर प्रसिद्ध सूर्य ग्रहण का मेला का लगा हुआ था।

इस स्थान पर ही गुरु पातशाह जी की एक तरखान (सुतार) सिख ने सेवा की थी। इस स्थान पर कुछ समय रहकर गुरु जी ने सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। जब गुरु जी इस स्थान पर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे तो कुछ स्थानीय पंडितों ने गुरु जी से निवेदन किया कि इस स्थान पर प्रसिद्ध सूर्य ग्रहण के मेले का आयोजन किया गया है। इसलिये गुरु पातशाह जी आप जी भी अपनी संगत के साथ स्नान करें, कारण सूर्य ग्रहण के मेले में स्नान करने से इंसान के पाप धुल जाते हैं। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने उस समय ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के मुखारविंद से उच्चारित वाणी को उपस्थित संगत के सम्मुख संबोधित कर उपदेशित किया था। जिसे इस तरह से अंकित किया गया है–

सलोक महल्ला 1

नावण चले तीरथी मनि खोटै तनि चोर॥

इकु भाउ लथी नातिआ दुइ भा चड़ीअसु होर॥

बाहरि धोती तूमड़ी अंदरि विसु निकोर॥

साध भले अणतानिआ चोर सि चोरा चोर॥

(अंग क्रमांक 789)

अर्थात् यदि मन खोटे हो तो तीर्थों पर नहाने का कोई फायदा नहीं है। कोड तुम्बे (एक प्रकार का फल है जिसका आवरण तो कठोर होता है परंतु भीतर से फल का स्वाद अत्यंत कड़वा होता है) को चाहे जितना मर्जी पानी में डूबा कर रख लो परंतु जब पानी से बाहर निकालो तो उसके अंदर की कुड़तन (कड़वाहट) तो उतनी ही रहेगी।

इसी तरह से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने गुरबाणी के फरमान अनुसार उपस्थित संगत को उपदेशित किया था और सच के मार्ग पर चलने के दिशा निर्देश दिए थे।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ का तीर्थों पर स्नान करने का क्या कारण था? कई बार यह प्रश्न भी सामने आता है परंतु इस प्रश्न का उत्तर इस तरह से मिलता है–

तीर्थ मजन किन बहाना चाहे करन सिखन कलयाणा॥

अर्थात् यही कारण है कि जिन स्थानों पर आम लोगों को गुमराह किया जाता था उन स्थानों पर  ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने स्वयं पहुंचकर आम लोगों को उपदेशित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया था ठीक उसी प्रकार से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने भी उन्हीं उपदेशों को दोहरा कर आम लोगों को उपदेशित किया था। साथ ही सबसे बड़ी बात यह थी कि इन स्थानों पर जो धन (माया) संगत से प्राप्त होता था गुरु पातशाह जी वह धन लोक-कल्याण के लिए उपयोग करते थे।

यदि हम थानेसर में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में सुशोभित गुरुद्वारा साहिब जी के दर्शन करते हैं तो गुरुद्वारा साहिब जी के पीछे के हिस्से में एक मुख्य द्वार स्थित है। पुरातन समय में इस मुख्य द्वार से ही गुरुद्वारा साहिब जी में प्रवेश किया जाता था इस स्थान पर एक पुरातन कुआं भी स्थित है अर्थात लोक-कल्याण के लिए गुरु पातशाह जी ने इस स्थान पर एक कुएं का निर्माण भी किया था। वर्तमान समय में यह कुआं गुरुद्वारा साहिब जी के पीछे के हिस्से में मंदिर की और मंदिर परिसर में स्थित है। इस स्थान पर गुरु जी ने तीन दिनों तक निवास किया था और आसपास के ग्रामों में जाकर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार भी किया था।

इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम को ज्ञात हुआ कि पास ही एक ग्राम अगराना कला स्थित है। जब हम इस स्थान पर पहुंचे तो ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में इस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। यह गुरुद्वारे का भवन पुराना है और इस स्थान पर प्रवेश द्वार भी बना हुआ है। वर्तमान समय में इस स्थान पर नवीन गुरुद्वारे का निर्माण प्रगति के पथ पर है।  इस स्थान पर गुरुद्वारे के प्रमुख ग्रंथी सिंह से मुलाकात का अवसर प्राप्त हुआ और साथ ही हम इस ग्राम के कुछ लोग और बुजुर्गों से भी मिले तो इस स्थान के इतिहास के संबंध में इन सभी स्थानीय निवासियों ने इस स्थान का पुरानी रवायतों के अनुसार इस स्थान के इतिहास को दर्शाते हुये इन सभी से ज्ञात हुआ कि जब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर पहले समय पधारे थे तो स्थानीय राजपूत चौधरी रंगड़ गुरु पातशाह जी की सेवा में समर्पित हुआ था। गुरु पातशाह जी ने इस चौधरी रंगड़ को एक मंजी (आसन) बक्शीश की थी और वचन कर कहा था कि आप भी सेवा करें एवं नाम-वाणी से जुड़े, जब गुरु पातशाह जी पुनः इस स्थान पर पधारे और इस चौधरी रंगड़ से मंजी (आसन) के बारे में जानना चाहा तो उसने इस संबंध में अनभिज्ञता को दर्शाते हुये मंजी (आसन) के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। स्थानीय ग्रामवासियों से ज्ञात हुआ कि वह चौधरी गुरु जी से मनमुख हो गया था। स्थानीय निवासियों ने इस रंगड़ चौधरी की हवेली को भी हमारी टीम को दिखाया था। यह चौधरी राजपूत धर्म से संबंधित था परंतु इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया था और रंगड़ बन चुका था अर्थात जो राजपूत इस्लाम धर्म को धारण कर लेते हैं उन्हें रंगड़ कहकर संबोधित किया जाता था परंतु इस हवेली के इतिहास के हमें कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले। स्थानीय ग्रामीणों से प्राप्त इतिहास को हमारी टीम द्वारा संगत (पाठकों) को दर्शाया जा रहा है। इस संबंध में और अधिक खोज की आवश्यकता है।

थानेसर नामक से ग्राम अजराना कला लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। थानेसर नामक स्थान को ही कुरुक्षेत्र के नाम से भी संबोधित किया जाता है। इस कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ तो पधारे ही थे एवं ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने भी इस कुरुक्षेत्र को अपने चरण कमलों से पवित्र किया था। इस कुरुक्षेत्र में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के अतिरिक्त और पांच सिख गुरु साहिबांन ने अपने चरण कमलों से पवित्र किया है। सर्वप्रथम ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ इस स्थान पर सूर्यग्रहण मेले के अवसर पर पधारे थे और उनकी स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी सिद्धवटी पातशाही पहली सुशोभित है। ‘श्री गुरु अमरदास साहिब जी’ और ‘श्री गुरु हरराय साहिब जी’ ने भी इस स्थान को अपने चरण कमलों से पवित्र किया था साथ ही इन दोनों गुरु साहिबान जी की स्मृति में भी इस स्थान पर गुरद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस कुरुक्षेत्र नामक स्थान पर ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ भी दो बार पधारे थे उन्होंने भी अपने चरण कमलों से इस स्थान को पवित्र किया था उनकी स्मृति में भी गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही 6 वीं सुशोभित है। इस कुरुक्षेत्र को दशम पिता ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने भी अपने चरण कमलों से पवित्र किया था। कुरुक्षेत्र वह पवित्र धरती है जहां पर सिख धर्म के 6 गुरुओं ने पधार कर इस धरती को अपने चरण कमलों से पवित्र किया था। संगत जी इस धरती पर पहुंच कर जरूर सभी गुरुद्वारों के दर्शन जीवन में एक बार करना चाहिए। इस स्थान पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी हरियाणा का मुख्य कार्यालय भी स्थित है। वर्तमान समय में इस महान संस्था के अध्यक्ष संत बाबा बलजीतसिंह जी दादूवाल हैं। इन सभी गुरुद्वारों का प्रबंध-संचालन उत्तम रीती से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी हरियाणा की ओर से किया जाता है।

इस श्रृंखला सफर-ए-पातशाही नौवीं से आप जी जुड़कर ऐतिहासिक तथ्यों से, गुरु जी की जीवनी से और गुरु जी द्वारा की गई धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से जुड़े रहे।

सफर-ए-पातशाही नौवीं के इस मार्ग पर गुरु जी ने जिन स्थानों पर यात्रा की थी उन सभी मार्गों पर स्थित गुरु जी की निशानियां, गुरुद्वारों के हम संगत को लगातार दर्शन करवा कर उन स्थानों का सही-सटीक और विशुद्ध इतिहास इस श्रृंखला के माध्यम से अवगत करवाते रहेंगे।

इस श्रृंखला के सभी प्रसंगों की गुरुमुखी भाषा में निर्मित वीडियो क्लिप हमारे चैनल ‘खोज विचार’ पर एवं फेसबुक पर उपलब्ध है। इन वीडियो क्लिप को आप देखकर, श्रवण कर इस इतिहास से भली भांति परिचित हो सकते हैं।

इस श्रृंखला के प्रत्येक प्रसंगों के इतिहास का अनुवाद हिंदी, मराठी, अंग्रेजी और गुरुमुखी भाषा में लगातार किया जा रहा है।  

इस पूरे इतिहास को आप देखकर, श्रवण कर और पढ़ कर भली भांति परिचित हो सकते हैं। इस इतिहास के माध्यम से ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के मार्ग पर चलकर उनके उपदेशों का पालन कर अपना जीवन सफल करें।

प्रसंग क्रमांक 91: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबधित ग्राम मुनियरपुर,ग्राम ड्योढ़ी और ग्राम सलेमपुर का इतिहास

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