प्रसंग क्रमांक 87: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम कांजला, ग्राम भैणीमराज, ग्राम मुलोवाल, ग्राम बुढ़लाडा़ और ग्राम संगरेढ़ी का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी भविष्य की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत ग्राम कांजला, ग्राम भैणीमराज और ग्राम मूलोवाल में पहुंचे थे। इस प्रसंग को गति देते हुए इन ग्रामों के इतिहास की जानकारी प्राप्त करेंगे। ग्राम कांजला में गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस ग्राम कांजला की धरती को सिख धर्म के तीन गुरुओं ने अपने चरण कमलों से पवित्र किया है।  प्रथम ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने इस ग्राम में पधार कर सिखी का बूटा रोपित किया था। इसके पश्चात छठी पातशाही ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ भी इस नगर में पधारे थे। ‘श्री गुरु हरगोविंद साहिब जी’ ने अपने जीवन काल में चार युद्ध लड़े थे और इस ग्राम कांजला के सिख सेवादारों ने गुरु जी को पूर्ण सहयोग कर इन चार युद्धों में भाग लिया था।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ मालवा प्रांत का दौरा करते हुए अपने डेरे समेत इस स्थान पर पहुंचे थे और इस स्थान पर विराजमान होकर गुरु पातशाह जी ने कुछ कौड़ियों का इलाज स्वयं किया था।  इन कोड़ीयों का इलाज कर उन्हें रोगमुक्त भी किया था। वर्तमान समय में इस ग्राम कांजला में उन रोग मुक्त कोड़ीयों के परिवार भी निवास करते हैं। इस ग्राम कांजला में 3 गुरुओं की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है।

इस ग्राम कांजला से चलकर गुरु जी ग्राम भैणीमराज नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब गुरु जी अपने काफिले के साथ इस ग्राम में पहुंचे तो गुरु जी के काफिले में 300 के करीब संगत, गुरु जी का परिवार और समान ढोने वाली गाड़ियां, घोड़े, ऊंट और बैल इत्यादि साथ में थे। जब गुरु जी इस ग्राम भैणीमराज में पहुंचे तो काफिले की एक घोड़ी बीमार हो गई थी, जिसके कारण बहुत समय तक इस स्थान पर काफिले को ठहरना पड़ा था। इस घोड़ी का इलाज किया गया एवं जब यह घोड़ी ठीक हो गई तो गुरु जी ने अपने काफिले के साथ इस स्थान से प्रस्थान किया था परंतु जब तक गुरु पातशाह जी इस स्थान निवास किया था तो उन्होंने दूरदराज के इलाकों की संगत को जोड़कर इस स्थान पर दीवान सजाए थे और संगत को नाम-वाणी से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया था। इस ग्राम भैणीमराज में गुरु जी की स्मृति में भव्य, विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है।

ग्राम भैणीमराज से चलकर गुरु जी ग्राम मूलोवाल नामक स्थान पर पहुंचे थे। प्रिंसीपल सतबीर सिंह जी रचित ‘इती जनकारी’ पुस्तक अनुसार मूलोवाल में गुरु जी दोपहर के समय में पहुंचे थे, पूरे काफिले को पानी की प्यास लगी हुई थी। काफिले के घोड़ों और दूसरे पशुओं के लिए भी पानी की आवश्यकता थी। जब सिख सेवादारों ने पानी प्राप्त करने के प्रयास किए तो ज्ञात हुआ कि पास ही स्थित कुएं का पानी खारा है। उस समय दूसरी दूर की जगह से पानी उपलब्ध किया गया था। तब तक गुरु जी पानी की उपलब्धता का इंतजार करते रहे थे। गुरु पातशाह जी ने इस परेशानी को हमेशा के लिए दूर करने हेतु ‘दसवंद’ (किरत कमाई का दसवां हिस्सा) के धन से उस खारे पानी के कुएं को गहरा खुदवाकर पुनर्जीवित किया था। फलस्वरूप कुएं का खारा पानी, मीठे पानी में बदल गया था। इस ग्राम मूलोवाल में दो गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है, बाहरी इलाके में प्रथम गुरुद्वारा  ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही दसवीं सुशोभित है परंतु इस संबंध में कोई ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध नहीं है, फिर भी ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही दसवीं सुशोभित है।

इस ग्राम मूलोवाल में गुरु जी के प्रयत्नों से खारे कुएं का पानी, मीठे पानी में परिवर्तित हो गया था। इस ग्राम के ही चौधरी गोविंद ने गुरु जी के सानिध्य में सेवा कर अपना जीवन सफल किया था एवं गुरु जी की सिक्खी को भी धारण किया था। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने चौधरी गोविंद के परिवार को सात दस्तारों (सर पर बांधने वाला पवित्र कपड़ा) की बक्शीश की थी। गुरु पातशाह जी ने स्थानीय निवासी भाई नानू जी को इस स्थान का प्रचारक निरूपित किया था। साथ ही गुरु जी इस धर्म प्रचार-प्रसार दौरे के तहत आसपास के समस्त ग्रामों की यात्रा करते हुए आप जी धमतान वाले रास्ते की और मार्गस्थ हो गए थे। इस इलाके में कई ग्राम ऐसे थे, जहां गुरु जी लगातार दौरे करते थे। इस प्रांत मालवा के लगभग सभी ग्रामों का गुरु जी के काफिले ने दौरा किया था।

ग्राम मूलोवाल से चलकर गुरु पातशाह जी 66 किलोमीटर की दूरी पर बुढ़लाड़ा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस कस्बा बुढ़लाडा में भी गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है।  इस स्थान के सिख सेवादार जिन्हें ‘भाईके’ के नाम से संबोधित किया जाता है। इन सेवादारों ने भी गुरु जी की उत्तम सेवा-सुश्रुषा की थी। ऐसी मान्यता है कि गांव बरै से होते हुए गुरु जी इस स्थान बुढ़लाडा पर पहुंचे थे। इस स्थान पर एक सरोवर भी सुशोभित है।

इस स्थान से चलकर गुरु पातशाह जी ग्राम संगरेढ़ी नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम संगरेढ़ी में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर एक छोटा कमरा 8 फीट बाय 8 फीट का बना हुआ है और इस स्थान पर पुरातन मंजी (आसन) भी मौजूद है।। साथ ही एक विशाल, भव्य गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं भी सुशोभित है। इस स्थान पर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से वार्तालाप कर अधिक इतिहास जानने का प्रयत्न किया परंतु वर्तमान समय में इस इतिहास को खोजने की आवश्यकता है।

इस स्थान से 50 किलोमीटर की दूरी पर गुरुद्वारा धमतान साहिब जी सुशोभित है। इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ दूसरी बार धमतान नामक स्थान पर पहुंचे थे।

प्रसंग क्रमांक 88: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय धमतान साहिब जी में गुरु जी के द्वितीय दौरे का इतिहास।

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