प्रसंग क्रमांक 82: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम पंधेर (बरनाला) एवं ग्राम शाहपुर का इतिहास।

Spread the love

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपने पूरे परिवार और संगत के साथ ग्राम खीवां कला से चलकर कुछ दूर पर जब गए तो स्थानीय संगत आपके दर्शन-दीदार करने के लिए उपस्थित हुई थी। गुरु जी ने संगत को नाम-वाणी से जोडा़ था। इस यात्रा के दरमियान कुछ दूरी चलकर शाम हुई तो काफिले को विश्राम करने की आवश्यकता थी। कारण इस यात्रा के काफिले में गुरु जी के साथ उनका परिवार और 300 के करीब संगत भी यात्रा कर रही थी। इस काफिले ने जहां विश्राम करना होता था वहां पर स्वच्छ पानी के इंतजाम की आवश्यकता होती थी। विश्राम करने के लिए ऐसे स्थान की खोज जारी रहती थी जहां पानी का स्त्रोत (झरना, कुआं इत्यादि) अवश्य हो। साथ ही कुछ घने वृक्ष हो तो, ऐसे स्थान पर पड़ाव डाला जा सकता था।

जब कुछ दूर आगे चलकर सिख सेवादारों ने स्थानीय ग्रामीणों से काफिले के पढ़ाव के लिए कोई रुकने की जगह इस स्थान पर उपलब्ध है क्या? ऐसा पूछा तो इन मनमुख ग्रामीणों ने आपस में एक दूसरे को इशारा कर, इन सेवादारों का मजाक उड़ाते हुए कहा कि इस स्थान पर कोई स्थान उपलब्ध नहीं है। हां यहां से थोड़ी दूर कुम्हारों की बस्ती है, (जिन्हें प्रेम पूर्वक प्रजापति के उपनाम से भी संबोधित किया जाता है) और इन सेवादारों को प्रजापति की बस्ती की और मोड़ दिया था।

सच जानना. . . . ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ किसे सम्मान दे दें? कोई नहीं जानता है? जब गुरु जी के सिख सेवादारों ने गुरु जी को बताया कि हमने स्थानीय ग्रामीणों से रास्ता जानना चाहा और निवास के उचित स्थान के बारे में जानना चाहा परंतु उन्होंने हमारा मजाक उड़ा कर कहा कि आप प्रजापतियों की बस्ती में चले जाओ। गुरु जी ने वचन किए कि शायद प्रभु-परमेश्वर की यही इच्छा है, वह अपनी रजा से कुछ और करना चाहते हैं। ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने और सेवादारों ने अपने घोड़ों की लगाम को प्रजापतियों की बस्ती की ओर मोड़ दिया था। पूरा काफिला प्रजापतियों के मोहल्ले में निवास करने हेतु कुच कर गया था।

स्थानीय प्रजापतियों को गुरु जी ने सेवा और सम्मान का मान बक्शा था। सभी प्रजापति भाइयों ने भी गुरु जी की अत्यंत भक्ति भाव से सेवा की थी और आदर सम्मान भी दिया था। यह प्रजापति सेवादार गुरु जी के संबंध में जानते थे और उन्होंने ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की और साथ ही संगत की तहे दिल से सेवा की थी।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और उनका परिवार एवं साथ में जुड़ी संगत ने इस ग्राम पंधेर में रात्रि का विश्राम किया था। रात को दीवान सजे सभी स्थानीय संगत को गुरबाणी और नाम-वाणी से जोड़ा गया था। गुरु के लंगर (भोजन प्रसाद) भी तैयार किए गए थे। वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य, विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है।

इस स्थान से गुरु जी चलकर ग्राम शाहपुर नामक स्थान पर पहुंचे थे। जब इस श्रृंखला को रचित करने वाली टीम इस स्थान शाहपुर में पहुंची तो गुरुद्वारा साहिब की नई इमारत की उसारी (निर्माण कार्य) हो रहा था। इस स्थान पर एक पुरानी इमारत की ड्योढ़ी भी है, जिस से गुजरकर मुख्य दरबार साहिब में जी में जाया जाता है, वह पुरानी ड्योढ़ी भी मौजूद है। शायद भविष्य में इस पुरानी ड्योढ़ी को भी तोड़ दिया जाए परंतु वर्तमान समय में पुरानी ड्योढ़ी भी मौजूद है। जब इस गुरुद्वारे के परिसर में प्रवेश किया तो गुरुद्वारे साहिब का कोई इतिहास तो ज्ञात नहीं हुआ परंतु बड़ी इमारत के समीप ही एक छोटा गुरुद्वारा साहिब भी स्थित है। इस स्थान पर पुरातन पीपल का वृक्ष भी मौजूद है और इस वृक्ष के चार तने बाहर की और  निकले हुए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थान पर 4 पीपल के वृक्ष मौजूद है। इस ढ़लान वाले रास्ते पर पुरातन समय में घना जंगल हुआ करता था। बहुतायत में वृक्ष भी मौजूद थे। वर्तमान समय में ग्राम शाहपुर एक रमणीक स्थान है और इस ग्राम को भी गुरु जी ने अपने चरण कमलों से स्पर्श  कर पवित्र किया था। स्थानीय ग्रामवासियों के द्वारा भव्य गुरुद्वारा साहिब जी की इमारत का निर्माण किया जा रहा है। इस स्थान पर पुरातन ड्योढी़, छोटा गुरुद्वारा साहिब, साथ ही पीपल का घना वृक्ष और गुरुद्वारा साहिब की भव्य, बड़ी इमारत का निर्माण कार्य चल रहा है।

प्रसंग क्रमांक 83: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम कट्टू, ग्राम सोहिआना एवं ग्राम हंडियाना का इतिहास।

KHOJ VICHAR YOUTUBE CHANNEL


Spread the love
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments