प्रसंग क्रमांक 77: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम रल्ला, ग्राम जोगा और ग्राम भोपाल का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा हेतु ग्राम शेर अली से चलकर ग्राम रल्ला और ग्राम जोगा में पहुंचे थे। ग्राम रल्ला और ग्राम जोगा दोनों ही ग्राम एक दूसरे के पास में स्थित है। जब गुरु जी ग्राम रल्ला में पहुंचे तो ग्राम की संगत गुरु जी के दर्शन-दीदार करने हेतु एकत्रित हुई थी। गुरु जी ने ग्राम रल्ला के चौधरी के भतीजे भाई योगराज को वचन कर कहा कि कई नगर बसते हैं और उजड़ जाते हैं। इनके उजड़ने का कोई ना कोई कारण होता है परंतु इस ग्राम को बसाने के लिए गुरु जी ने जो वचन किए उसे इस तरह से अंकित किया गया है–

 ऐत थैह वसाऐ लै अजीत कलरी है|

भावार्थ इस स्थान को उंची तह पर इस ग्राम को बसाने की आवश्यकता है। यदि तुम उंची तह पर इस ग्राम को बसाओगे तो अजीत कलरी है। अर्थात वह स्थान अजीत होकर सुरक्षित हो जाता है। उस समय ग्राम रल्ले के समीप ऊंची तह पर भाई योगराज जी ने इस नगर बसाया था। वर्तमान समय में इस ग्राम को जोगा के नाम से संबोधित किया जाता है। वर्तमान समय में ग्राम रल्ला में गुरु जी की स्मृति में विलोभनीय गुरुद्वारा सुशोभित है। इस गुरुद्वारे की प्रबंधक कमेटी से भी हमारी टीम की मुलाकात हुई थी। इस ग्राम में गुरु जी की कृपा से बहुत ही खुशहाली है।

समीप ही ग्राम जोगा में भी गुरु जी की स्मृति में विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस गुरुद्वारे की प्रबंधक कमेटी से भी हमारी टीम की मुलाकात हुई थी प्रमुख रूप से सरदार रण सिंह जी से वार्तालाप करते हुए ज्ञात हुआ कि इस इलाके में आस-पास धर्म प्रचार-प्रसार के लिए कवीसरी (लोकगीतों के द्वारा धर्म प्रचार-प्रसार) भी करते हैं। सरदार रण सिंह जी स्वयं भी गुरु जी के इतिहास को निरंतर खोज रहे हैं। उनसे वार्तालाप के पश्चात एहसास हुआ कि इस इतिहास को और भी खोजने की आवश्यकता है। विशेष रूप से इस ग्राम के निकट पांडव के कुछ पुरातन मंदिर भी मौजूद हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार बताया जाता है कि इस स्थान पर पांडव भी पधारे थे परंतु सिख इतिहास के अनुसार इस ग्राम जोगा में गुरु जी की स्मृति में केवल भव्य गुरुद्वारा साहिब जी ही सुशोभित है।

इस स्थान से कुछ दूरी पर ही ग्राम भोपाल स्थित है वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में ग्राम भोपाल में भी दो गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस ग्राम भोपाल में जब गुरु जी पधारे थे तो स्थानीय संगत भी उनके दर्शन-दीदार करने हेतु पहुंची थी। गुरु जी ने ग्राम की समूह संगत को नाम-वाणी से जुड़ा था। एवं स्थानीय ग्रामीणों को उपदेशित कर वचन किए थे कि कोई भी तंबाकू या तंबाकू जन्य पदार्थों का सेवन नहीं करोगे। यदि तुम तंबाकू का सेवन करोगे तो बर्बाद हो जाओगे। सच जानना. . . . यह सच भी है कि तंबाकू का सेवन करने वाले लोग अक्सर बर्बाद ही होते हैं क्योंकि तंबाकू को ‘जगत जुठ’ के रूप में भी माना गया है। इस उपदेश का स्थानीय ग्रामीणों ने भी सम्मान किया था। वर्तमान समय में इसी स्थान पर गुरुद्वारा साहिब जी गुरु जी की स्मृति में सुशोभित है।

समीप ही ग्राम जोगा में भी गुरु जी की स्मृति में विलोभनीय गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस गुरुद्वारे की प्रबंधक कमेटी से भी हमारी टीम की मुलाकात हुई थी प्रमुख रूप से सरदार रण सिंह जी से वार्तालाप करते हुए ज्ञात हुआ कि इस इलाके में आस-पास धर्म प्रचार-प्रसार के लिए कवीसरी (लोकगीतों के द्वारा धर्म प्रचार-प्रसार) भी करते हैं। सरदार रण सिंह जी स्वयं भी गुरु जी के इतिहास को निरंतर खोज रहे हैं। उनसे वार्तालाप के पश्चात एहसास हुआ कि इस इतिहास को और भी खोजने की आवश्यकता है। विशेष रूप से इस ग्राम के निकट पांडव के कुछ पुरातन मंदिर भी मौजूद हैं। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार बताया जाता है कि इस स्थान पर पांडव भी पधारे थे परंतु सिख इतिहास के अनुसार इस ग्राम जोगा में गुरु जी की स्मृति में केवल भव्य गुरुद्वारा साहिब जी ही सुशोभित है।

इस स्थान से कुछ दूरी पर ही ग्राम भोपाल स्थित है वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में ग्राम भोपाल में भी दो गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस ग्राम भोपाल में जब गुरु जी पधारे थे तो स्थानीय संगत भी उनके दर्शन-दीदार करने हेतु पहुंची थी। गुरु जी ने ग्राम की समूह संगत को नाम-वाणी से जुड़ा था। एवं स्थानीय ग्रामीणों को उपदेशित कर वचन किए थे कि कोई भी तंबाकू या तंबाकू जन्य पदार्थों का सेवन नहीं करोगे। यदि तुम तंबाकू का सेवन करोगे तो बर्बाद हो जाओगे। सच जानना. . . . यह सच भी है कि तंबाकू का सेवन करने वाले लोग अक्सर बर्बाद ही होते हैं क्योंकि तंबाकू को ‘जगत जुठ’ के रूप में भी माना गया है। इस उपदेश का स्थानीय ग्रामीणों ने भी सम्मान किया था। वर्तमान समय में इसी स्थान पर गुरुद्वारा साहिब जी गुरु जी की स्मृति में सुशोभित है।

जब इस ग्राम के स्थानीय बुजुर्गों से मुलाकात की और वार्तालाप किया तो ज्ञात हुआ कि वर्तमान समय में भी इस ग्राम में तंबाकू का उपयोग करने वाले से कोई व्यवहार नहीं करता है और ऐसे इंसानों को अच्छा इंसान भी नहीं माना जाता है। सच जानना. . . . तंबाकू और सिखी का आपस में कोई भी संबंध नहीं है।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जब इस ग्राम से प्रस्थान कर बाहर चले गए तो एक रविदासी भाईचारे समाज के व्यक्ति ने गुरु जी के घोड़े की लगाम को पकड़कर घोड़े को रोक लिया और वचन किए कि गुरु पातशाह जी हमारे ग्राम के लोगों को आपके आने की सूचना प्राप्त नहीं हुई थी। हम सभी ग्रामवासी आपके दर्शन-दीदार कर आपका आशीर्वाद लेना चाहते हैं। गुरु जी कुछ समय के लिए इस स्थान पर ठहर गए थे वर्तमान समय में इस स्थान पर भी गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस स्थान के पीछे भी एक पुरातन गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इस स्थान पर वन के वृक्ष के साथ गुरु जी ने अपना घोड़ा बांधा था। यह स्थान वर्तमान समय में भी मौजूद है। इस स्थान पर एक छोटी सी झपड़ी (स्वच्छ पानी का झरना) भी थी। वर्तमान समय में उस झपड़ी वाले स्थान पर एक छोटा सा सरोवर सुशोभित है।

वर्तमान समय में इस ग्राम में गुरु जी की स्मृति में दो स्थान हैं और दोनों ही स्थानों पर वर्तमान समय में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा साहिब जी सुशोभित है। इस ग्राम के बाहरी इलाके में गुरु जी की स्मृति में गुरुद्वारा अटक साहिब जी भी सुशोभित है।

प्रसंग क्रमांक 78: श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय, ग्राम धलेवां का इतिहास।

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