प्रसंग क्रमांक 75: सफर-ए-पातशाही नौवीं श्रृंखला की समीक्षा।

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इस श्रृंखला के अंतर्गत विगत 74 प्रसंगों में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की जीवन यात्रा का इतिहास विस्तार से एक वृतांत के रूप में हमने संगत (पाठकों)  के सम्मुख रखने का अभिनय प्रयत्न  किया है। श्रृंखला के अनुसार अभी तक गुरु जी की यात्रा सूबा पंजाब के मालवा प्रांत के विभिन्न ग्रामीण अंचलों में गुरु जी अपने पूर्ण डेरे के साथ धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु सिखों को लाम बंद कर यात्रा कर रहे थे एवं साथ ही साथ सिक्खी को सजाने-संवारने का अभूतपूर्व कार्य भी कर रहे थे। जब हम इस मालवा प्रांत के ग्रामीण अंचलों के विभिन्न ग्रामों का दौरा करते हैं तो बहुत से बुजुर्ग और ऐसी संगत के दर्शन होते हैं जिनका अप्रीतम प्यार व स्नेह बंध वर्तमान समय में भी गुरु जी के साथ है। इन ग्रामीण अंचलों में से ऐसे गुरमुख प्यारे है, जिनका वर्णन अरदास (प्रार्थना) में इस तरह अंकित है–

सेई पिआरे मेल जिनां मिलिआं तेरा नाम चित आवे॥

(अरदास)

दूसरी और यह भी आकलन करना होगा कि आज से 400 वर्ष पूर्व इस यात्रा के दौरान गुरु जी पहले कौन से ग्राम में गए थे? और कौन-कौन से विभिन्न ग्रामों का दौरा किया था? आज सन् 2021 ई. में आकलन करना अत्यंत कठिन है परंतु उपलब्ध इतिहास, स्त्रोत और जमीनी हकीकत को जानने के लिए प्रत्यक्ष उन ग्रामीण स्थानों पर पहुंचकर जब इन स्मृति स्थानों पर लगे हुए ऐतिहासिक तख़्तीयों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि गुरु जी प्रथम कौन से ग्राम में आये थे? ओर इसके पश्चात दूसरे कौन-कौन से ग्रामों का भ्रमण किया था? इस पूरे इतिहास को उपलब्ध ऐतिहासिक पुस्तकों का और स्रोतों का अध्ययन कर इस खोज के विषय की समीक्षा की जा सकती है।

हमारी पूरी टीम की और से इस पूरे इतिहास का गहन अध्ययन और विश्लेषण करने के पश्चात इस पूरे इतिहास की समीक्षा कर इसे एक सूत्र में जोड़ने का अभिनव प्रयास निरंतर जारी है। कालानुसार अधिक अध्ययन करने से कई ऐतिहासिक पहलुओं पर से धुंध हटती जाएगी। हमारी टीम की ओर से इन ऐतिहासिक स्मृति स्थलों के चित्र और इतिहास के तख़्तीयों के चित्र भी हम लगातार प्रकाशित कर रहे हैं। इसे हम इतिहास के वीडियो को Pause (ठहराव) करके पढ़ सकते हैं। साथ ही साथ देख भी सकते हैं। इस पूरे ऐतिहासिक तथ्यों की उन सभी विद्यार्थियों को अत्यंत सुविधा हो जाएगी जो इस विषय पर पी.एचडी. करना चाहते हैं या शोध पत्र लिखना चाहते हैं।

इस श्रृंखला  की यह विशेषता है कि सभी स्मृति स्थलों का इतिहास वीडियोग्राफी/फोटोग्राफी, श्रवण कर, ऐतिहासिक तथ्यों को समझ कर एवं स्मृति स्थल पर इतिहास की जो लिखी तख्तियां उपलब्ध है उनका अध्ययन कर इस अनमोल-स्वर्णिम इतिहास जो कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ के प्रकाश से शहादत तक क्रमानुसार उपलब्ध है। जिसमें वर्तमान समय में उपलब्ध वृक्ष, पानी के कुएं ,भवन, चबूतरे और कितने ही ऐतिहासिक गुरुद्वारे जिसका अवशेष मात्र भी शेष नहीं है और इस वर्तमान समय में कितने गुरुद्वारे गुरु जी की स्मृति में शेष है? इन ऐतिहासिक स्थानों पर गुरु जी के कितने सिख वर्तमान समय में मौजूद है? उनके पते क्या है? और वह कहां निवास करते हैं? यह सारा विस्तार पूर्वक इतिहास संगत (पाठकों) को वीडियोग्राफी के माध्यम से दिखाया जा ही रहा है एवं पुरानी जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। पुरातन रीति-रिवाज, रवायतों को भी हम इस श्रृंखला के माध्यम से समझ सकते है। साथ ही साथ हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध स्तंभकार डाॅ. रणजीत सिंह जी अरोरा ‘अर्श’ जो कि पुणे (महाराष्ट्र) के निवासी हैं। डाॅ. रणजीत सिंह जी अरोरा ‘अर्श’ इसे ‘गुरु पंथ खालसा’, की महान सेवा का अवसर मानकर इस पुरे इतिहास को पूरी शिद्दत और सम्मान पूर्वक विश्व की सबसे अधिक बोलचाल की भाषा हिंदी में निरंतर लिख रहे हैं।

इस श्रृंखला के अंतर्गत हमारे अथक प्रयत्नों के द्वारा रचित पुस्तक सफर-ए-पातशाही नौवीं: संस्करण एक और सफर-ए-पातशाही नौवीं: संस्करण दो, विश्व प्रसिद्ध amzon.in app पर हिंदी भाषा में प्रकाशित हो चुकी है। इस संस्करण का शीघ्र ही भविष्य में तीसरा, चौथा और पांचवां संस्करण भी amazon.app पर प्रकाशित होगा। इस पुरे इतिहास को Amzon.in app के माध्यम से आप डाउनलोड करके कालानुसार अध्ययन कर सकते हैं। शीघ्र ही यह संपूर्ण इतिहास अंग्रेजी, मराठी और गुरुमुखी भाषा में भी उपलब्ध होगा। हिंदी में इस संपूर्ण इतिहास को डाॅ. रणजीत सिंह जी अरोरा ‘अर्श’ पुणे निवासी रचित कर रहे हैं। साथ ही इसे अंग्रेजी में उज्जल प्रीत कौर (कौन बनेगा प्यारे का प्यारा टी.वी. श्रृंखला की विजेता) और साथ ही सरदारनी गुरमीत कौर खालसा (एम.ए.सिख स्टडी) के द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा है। साथ ही हमारी टीम के मल्टीमीडिया के प्रमुख वीर गुरदास सिंह जी  (डिप्लोमा इन ह्युमिनिटी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला)  के विद्यार्थी हैं। वीर गुरदास सिंह जी ने इस श्रृंखला की वीडियोग्राफी की सेवा संभाली हुई है। साथ ही हमारी टीम के सरदार गुरदयाल सिंह जी खालसा, सरदार विक्रम सिंह जी अपनी विशेष सेवाओं से इस महान कार्य में सेवा निभा रहे हैं।

सफर-ए-पातशाही नौवीं की संपूर्ण टीम का विशेष प्रयत्न यह है कि गुरु जी से संबंधित सभी ऐतिहासिक स्थलों पर पहुंचकर इस अनमोल-स्वर्णिम इतिहास को खोज कर आप सभी संगत (पाठकों) के सम्मुख रखा जाएगा। यह संपूर्ण इतिहास पुस्तकों के माध्यम से, वीडियोग्राफी के माध्यम से, डिजिटल स्वरूप में, फेसबुक के माध्यम से, यूट्यूब के माध्यम से आप सभी संगत (पाठकों)  तक पहुंचाने का अभिनव प्रयास निरंतर जारी है। जिससे कि हम इस अनमोल-स्वर्णिम इतिहास को अच्छी तरह से समझ कर प्रचारित-प्रसारित कर सकें।

सफर-ए-पातशाही नौवीं की संपूर्ण टीम की और से प्रत्यक्ष रूप से प्रत्येक स्मृति स्थल पर पहुंचकर संगत (पाठकों) के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए इस संपूर्ण इतिहास को संग्रहित कर आपके सम्मुख रखने की सेवा निरंतर जारी रहेगी। साथ ही हमारी पूरी टीम का आप संगत (पाठकों) से विनम्र निवेदन है कि हम से लिखने में, बोलने में या इतिहास को संदर्भित करने में कोई त्रुटि हो जाती है तो उन त्रुटियों को आप गुरु महाराज के अंजान बच्चे समझकर बख्शने की कृपा करें। साथ ही हमारी टीम के लिए अरदास (प्रार्थना) करना कि भविष्य में और सर्वोत्तम ढंग से इस अनमोल-स्वर्णिम इतिहास को प्रस्तुत कर सकें। विशुद्ध रूप से हमारा मकसद है कि जो 100 वर्ष पूर्व इस इतिहास को लिखा गया था उस संपूर्ण इतिहास को सहेज कर, संभाल कर डिजिटल कर आपके सम्मुख प्रस्तुत करें। 

हमारी पूरी टीम आपसे निवेदन करना चाहती है कि इस श्रृंखला के पश्चात ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ का ऐतिहासिक मार्ग जो की बहुत ही विस्तृत है, इस पूरे इतिहास को भी आप संगत (पाठकों) के सम्मुख रखकर प्रस्तुत करेंगे।

अभी तक इस श्रृंखला  के प्रसंगों के माध्यम से हम इस इतिहास के मध्य तक पहुंच चुके हैं। प्रसंग  क्रमांक 76 के अंतर्गत गुरु जी की भविष्य की यात्रा के दौरान तीन अलग-अलग ग्रामों के इतिहास को संगत (पाठकों) से  रूबरू किया जायेगा| 

प्रसंग क्रमांक 76: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के समय ग्राम अली शेर का इतिहास।

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