प्रसंग क्रमांक 68: श्री गुरु तेग बहादर साहिब जी’ की धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा से संबंधित ग्राम गोबिंद पुरा एवम् ग्राम बरै का इतिहास।

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‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम कोट धरमु से चलकर ग्राम गोविंदपुरा नामक स्थान पर पहुंचे थे। इस ग्राम गोविंद पुरा को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ और ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने अपने चरण कमलों से इस धरती को पवित्र किया था। वर्तमान समय में इस स्थान पर सुशोभित भव्य गुरुद्वारा चरण कमल साहिब जी गुरु जी की स्मृति में सुशोभित है। साथ ही विलोभनीय सरोवर साहिब भी इस स्थान पर सुशोभित है।

इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ एवं ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ पधारे थे। इसलिए इस स्थान का नाम गोविंदपुरा और गुरुद्वारा साहिब को चरण कमल साहिब के नाम से संबोधित किया जाता है। 

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस स्थान पर सिख धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। साथ ही स्थानीय ग्रामीणों को सिख धर्म की शिक्षाएं भी दी थी और सिक्खी के साथ उन्हें जोड़ा था।

इस गोविंदपुरा ग्राम से चलकर गुरु जी अपनी भविष्य की यात्रा हेतु ग्राम बरै में पहुंचे थे। इस ग्राम के स्थानीय ग्रामीणों से श्रृंखला के रचयिता को जानकारी प्राप्त हुई कि ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने इस स्थान पर कई दिनों तक निवास किया था। इस स्थान पर पानी की बहुत कमी थी और वर्षा ऋतु में भी बारिश ठीक से नहीं होती थी और तो और जमीन भी बंजर थी इस कारण फसलें ठीक से पैदा नहीं होती थी। इस कारण से स्थानीय निवासी बहुत दुखी थे, ग्रीष्म ऋतु में अकाल के जैसे हालत हो जाते थे। सूखा ग्रस्त इलाका होने के कारण और पानी की कमी के कारण फसलों का उत्पादन नगण्य था।

स्थानीय ग्रामवासी बहुत दुखी थे और अत्यंत कठिनाई में अपना जीवन यापन कर रहे थे। स्थानीय संगत ने एकजुट होकर गुरु जी के चरणों में निवेदन कर अपनी कठिनाइयों को बयान कर गुरु जी से मदद की गुहार लगाई थी।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने ग्राम वासियों को अत्यंत सुंदर तकनीकी सुझाव किये थे। उस समय गुरु जी ने स्वयं इस जमीन का परीक्षण कर ग्राम वासियों को सुझाव दिया था कि इस स्थान की जमीन पर मोठ और बाजरा की खेती करनी चाहिए। मोटे अनाज की खेती करने से इस स्थान पर फसल की उपज उत्तम होगी, क्योंकि मोठ और बाजरा की फसल हेतु पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। 

संगत को दिए गए इस सुझाव से स्पष्ट होता है कि गुरु जी को कृषि विज्ञान का उत्तम ज्ञान था और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अनुसार गुरु जी अपने सुझावों से संगत को प्रेरित करते थे। उस समय गुरु पातशाह जी ने कौन सी फसल को कौन से मौसम में लगाना चाहिए? इसकी पूरी तकनीकी जानकारी स्थानीय ग्रामवासियों को गुरु जी ने उपलब्ध करवाई थी।

 स्थानीय ग्राम वासियों ने मोठ और बाजरे की फसलों को बोना प्रारंभ किया था। गुरु जी के आशीर्वाद से वर्तमान समय में भी इस स्थान में मोटे अनाज की खेती खुशहाली से की जाती है।

यदि हम सिख इतिहास को परिप्रेक्ष्य करें तो जब ‘श्री गुरु राम दास साहिब जी’ के कर-कमलों से चक रामदास पुर नामक ग्राम (अमृतसर नगरी) को बसाया गया था तो उस समय गुरु जी ने एक महान कार्य कर मनुवादी विचारों को धारण करने वालों की सोच पर गहरा प्रहार किया था। उस समय मंदिरों के पुजारियों ने सभी को जात-पात में बांट दिया था। साथ ही पिछड़ी जाति के लोगों को नगर में हमेशा पश्चिम दिशा में बसाया जाता था परंतु गुरु जी ने इसके विपरीत पिछड़ी जाति के लोगों को अमृतसर नगरी में पूर्व दिशा की और बसा कर मनुवादी विचारों पर कुठाराघात का दुनिया को दिखा दिया था कि सिख धर्म व्यावहारिक तौर पर दुनिया का आधुनिक धर्म है, जो सभी मानव जाति को समान रूप से उनके अधिकारों को देने में विश्वास रखता है। वर्तमान समय में भी यदि अमृतसर शहर के नक्शे का अवलोकन करेंगे तो स्पष्ट होगा कि इस शहर में पिछड़ी जाति के लोगों को सम्मान पूर्वक पूर्व में बसाया गया था।

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने ‘श्री गुरु रामदास साहिब जी’ द्वारा निर्मित सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए इस ग्राम बरै में भी पिछड़ी जाति के लोगों को पूर्व में बसाये जाने के लिए प्रोत्साहित किया था। इस स्थान पर गुरु पातशाह जी का नित्य दीवान सजता था। संगत को कीर्तन और नाम-वाणी से जोड़ा जाता था। साथ ही जात-पात के भेद को मिटा कर सांझीवालता से संगत को उपदेशित किया जाता था। इस विषय को नजर में रखते हुए गुरु जी ने वचन किए थे, जिसे इस तरह से गुरबाणी अंकित किया गया है–

जाति जनमु नह पूछीऐ सच घरु लेहु बताइ॥ (अंग क्रमांक 1330)

अर्थात धर्म के नाम पर जात-पात नहीं होनी चाहिए। इंसान की जात की पहचान उसके कर्मों से होना चाहिए, ना कि जात-पात से, धर्म के नाम पर जात-पात के नाम पर, वर्ण भेद करने वालों का गुरु जी ने डटकर विरोध किया था। जिसे गुरबाणी में इस तरह अंकित किया गया है–

विचि सनांती सेवकु होइ॥

नानक पणहीआ पहिरै सोइ॥ (अंग क्रमांक 1256) 

अर्थात ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ ने वचन किए थे कि यदि कोई नीची जाति में जन्म लेकर प्रभु-परमात्मा की बंदगी करें और वह मेरे तन के चमड़े के जूते बनाकर भी पहन ले तो भी मैं उस पर बलिहार जाऊंगा। 

‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ जात-पात का खुलकर विरोध करते थे। इस कारण पुरानी रूढ़िवादी रवायतों को तोड़कर गुरु जी ने वचन कर पिछड़ी जाति के लोगों को पूर्व दिशा में घर बना कर बसाने के लिये प्रोत्साहित किया था।

वर्तमान समय में इस स्थान पर गुरुद्वारा बरै साहिब जी पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस स्थान पर गुरु जी ने कई दिनों तक निवास किया था। पुरातन समय में इस स्थान पर एक बहुत बड़ा वृक्ष था परंतु किसी कारण से इस वृक्ष का नामों-निशान आज मौजूद नहीं है।

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