‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के तहत ग्राम आलोअरख से चलकर ग्राम ढोडें नामक स्थान पर पहुंचे थे। वर्तमान समय में ग्राम ढोडें को भवानी गढ़ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। भवानी गढ़ एक बड़ा नगर है और इससे लगभग दो कोस की दूरी पर ही आलोअरख स्थित है। इस भवानीगढ़ में गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरुद्वारा साहिब पातशाही नौवीं सुशोभित है। इस गुरुद्वारा साहिब का संचालन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की देखरेख में किया जा रहा है।
इस गुरुद्वारा साहिब जी के प्रबंधक सरदार इंद्रजीत सिंह जी ने इस स्थान के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि इस स्थान को ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने अपने चरण-चिन्हों से पवित्र किया था। उसी स्थान पर गुरु जी ने असम के राजा के निवेदन को स्वीकार कर भविष्य की असम यात्रा की योजना को तैयार किया था। गुरु जी उस समय गुनिके और आलोअरख नामक ग्रामों से होते हुए इस स्थान पर पधारे थे।
इस स्थान पर ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने 2 दिन तक निवास कर संगत को उपदेशित किया था। संगत को नाम-वाणी और कीर्तन से जोड़ा था। इस स्थान पर संग्राद का दिवस (गुरमुखी कैलेंडर के अनुसार महीने का प्रथम दिवस) संगत बहुत उत्साह और श्रद्धा के साथ मना कर गुरु घर की खुशियों को प्राप्त करती हैं। इस भवानी गढ़ की समस्त संगत इस गुरुद्वारे से जुड़ी हुई है और एकजुट होकर नाम-वाणी से जुड़ कर अपना जीवन सफल कर रही है। इस ग्राम से गुरु जी चलकर निकट ही ग्राम फगूवाला नामक स्थान पर पहुंचे थे। फगूवाला ग्राम के बाहर की और जो सड़क सुनाम से होकर बरनाला की और जाती है। उस मुख्य सड़क पर ही भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है। इस स्थान पर सरोवर भी स्थित है। इस स्थान पर एक स्थानीय पंडित जी ने गुरु जी के दर्शन कर निवेदन किया कि पातशाह जी मेरे पर आप अपनी कृपा बनाए तो गुरु जी ने वचन करते हुए पंडित को कर्म कांडों से बचने के लिए उपदेश किया और मूर्ति पूजा को छोड़ कर उस एक अकाल पुरख (प्रभु-परमेश्वर) की बंदगी करने के लिये उपदेशित किया था। इन उपदेशों को इस तरह से अंकित किया गया है–
थापिआ न जाइ कीता न होइ॥
आपे आपि निरंजनु सोइ॥ (अंग क्रमांक 2)
अर्थात वह प्रभु-परमेश्वर ना किसी ने स्थापित किया है और ना ही किसी ने बनाया है।
गुरु जी ने उपदेश देकर वचन कहे–
जो पाथर की पाँई पाइ॥
तिस की घाल अजाँई जाइ॥
(अंग क्रमांक 1160)
अर्थात जो पत्थर के पैरों में पड़ता है। उसकी टहल (सेवा) व्यर्थ में जाती है।
एक अकाल पुरख (प्रभु-परमेश्वर) की बंदगी करो। कर्म कांडों से निश्चित ही बचना चाहिए। इन कर्म कांडों से ऊपर उठकर दुनिया की सेवा करो। ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ के द्वारा दिया गया जीवन मंत्र ‘किरत करो, नाम जपो,और वंड़ छको’ को आत्मसात कर अपने इंसानी जीवन को सफल करो।
साथ ही वचन किए–
भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन॥
(अंग क्रमांक 1427)
इस उपरोक्त वचन की परंपरा को आत्मसात कर जीवन में लागू रखो। किसी से भयभीत नहीं होना है और स्वयं के जीवन को ऊंचा और पवित्र रखकर उस प्रभु-परमेश्वर की बंदगी करनी है।
जब गुरु जी उपरोक्त उपदेशों से संगत को उपदेशित कर रहे थे तो उस समय निकट के ग्राम घराचों की संगत ने उपस्थित होकर गुरु जी के दर्शन कर निवेदन किया कि पातशाह जी हम घराचों ग्राम के वासी बहुत मजबूर हैं। आप जी भी हमारी मजबूरी को समझ कर हमारे ग्राम घराचों को अपने चरण-चिन्हों से पवित्र करो। कारण हमारे साथ में बहुत बड़ा धक्का किया जा रहा है। गुरु जी घराचों ग्राम के निवासियों के निवेदन पर ग्राम घराचों की और प्रस्थान कर गए थे। इन ग्राम वासियों की क्या दुविधा थी? क्या गुरु जी ने उनके दुख दर्द दूर किया था?