‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ अपनी धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा के अंतर्गत सहपरिवार अपने 300 प्रमुख सिखों के साथ ग्राम रामगढ़ बौड़ा से चलकर गुनीके नामक स्थान से होते हुए ग्राम काकडा़ की धरती पर पहुंचकर अपना निवास स्थापित किया था। इस स्थान पर एक नीम का वृक्ष था। इस नीम के वृक्ष के नीचे ही तंबू लगाकर गुरु जी के निवास की समुचित व्यवस्था की गई थी। साथ ही उपस्थित 300 सिखों के निवास का भी उत्तम प्रबंध किया गया था।
इस स्थान पर गुरु जी के दीवान सजाए गए थे और रबाबीयों के द्वारा कीर्तन का आयोजन भी किया गया था। जिस स्थान पर गुरु जी का डेरा निवास कर रहा था। उस स्थान की जगह के मालिक को जब ज्ञात हुआ कि गुरु जी ने उनकी जगह पर अपना डेरा लगाया हुआ है तो वह ग्राम काकडा़ निवासी जगह के मालिक सहपरिवार गुरु जी की सेवा में उपस्थित हुए थे।
‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस जगह के मालिक द्वारा की गई सेवाओं से अत्यंत प्रसन्न हुए थे। इस जगह के मालिक को वचन कर कहा कि आप जी ने हम सभी की प्यार और श्रद्धा से सेवा की है। आप मुझसे जो चाहो मांग सकते हो। उसने हाथ जोड़कर गुरु जी से निवेदन किया कि पातशाह जी जो सेवा हमें करनी चाहिए थी उस सेवा का अवसर हमें प्राप्त नहीं हुआ है। हमें आज ही ज्ञात हुआ कि आप जी हमारे इस ग्राम काकडा़ में पधारे हैं और आप जी ने अपने चरण-चिन्हों के स्पर्श से इस ग्राम की धरती को पवित्र किया है। इसी तरह से आप जी मेरे पर भी कृपा करें। श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी उस सिख को गले से लगाकर, स्नेह से उसके सिर पर अपना हाथ रखा था।
उस समय गुरु जी ने वचन किए कि भाई हमने आप से जो सेवा लेनी है वह अत्यंत महान हैं, हम आप से और आप के परिवार से यह सेवा स्वयं ही ले लेंगे और आशीर्वाद वचन कर कहा कि आज से आपके ऊपर ऐसी गुरु की बख्शीश है कि आपको जीवन में किसी भी वस्तु का कोई घाटा नहीं रहेगा। धन-दौलत, नौकर-चाकर, सभी तरह की भौतिक सुविधाओं की अपार कृपा होगी। आप पर अपार धन की बख्शीश होगी परंतु आप इस धन-दौलत को अच्छे से संभाल कर रखना कारण भविष्य में तुम्हें इस धन-दौलत के माध्यम से ही अपनी सेवाओं को समर्पित करना होगा।
इस स्थान से प्रस्थान करते समय इस सिख सेवादार को गुरु जी ने पुनः वचन किए थे कि भविष्य में आप से हमने बहुत कठिन और बड़ी महान सेवा लेनी है। इसलिए जीवन में अडिग रहना है। सच जानना सन् 1665 ई. में ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम काकडा़ में अपने इन वचनों का उद्बोधन किया था और सन् 1704 ई. में लगभग 39 वर्षों के पश्चात इस सिख सेवादार की सेवा ‘गुरु पंथ खालसा’ के सम्मुख आई थी। यह सिख सेवादार वह ही सेवादार था जिसका नाम ‘दीवान टोडरमल’ था।
जब 26 दिसंबर सन् 1704 ई. के दिवस छोटे साहिबजादों को दीवार में चिनवा कर शहीद किया और इस सिख सेवादार भाई टोडरमल को जब यह ज्ञात हुआ तो यह भाई टोडरमल ने शर्त के मुताबिक सोने की खड़ी मुहरों को जगह पर रखकर उस जगह को हुकूमत से खरीदकर छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी, बाबा फतेह सिंह जी और माता गुजरी का अंतिम संस्कार स्वयं के हाथों से किया था। पूरे 39 वर्षों के पश्चात ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने यह कठिन और अत्यंत महान सेवा भाई टोडरमल जी से करवाई थी।
इस संपूर्ण इतिहास के माध्यम से दृष्टिगोचर होता है कि सुबा पंजाब के इस मालवा प्रांत में गुरु जी जहां धर्म प्रचार-प्रसार कर संगत को (लामबंद) जोड़ रहे थे, वहीं पर इन सिख संगत से भविष्य में आने वाले कठिन समय की तैयारी भी करवा रहे थे। साथ ही संगत को नाम-दान की दात बक्श कर उनकी सिक्खी को दृढ़ कर रहे थे। ताकि जब ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ श्री आनंदपुर साहिब जी में खंडे-बाटे के अमृत की दात देकर जब अमृत छकायेंगे (अमृत पान की विधि) तो यही समस्त ग्रामीण भागों की सिख संगत उस अमृत को धारण कर, एकजुट होकर गुरु नानक की फुलवारी में सज सकें।
सन् 1699 ई. अप्रैल में खंडे-बाटे का अमृत ‘श्री गुरु गोविंद सिंह साहिब जी’ ने स्वयं के कर-कमलों से छकाया था परंतु उसकी तैयारी ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ने मालवा के इस ग्रामीण अंचल में पहले से ही प्रारंभ कर दी थी। आज मालवा प्रांत में जितने भी गुरुद्वारा साहिब सुशोभित हैं और सिक्खी चढ़दी कला में है उसका पूरा श्रेय ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की इस धर्म प्रचार-प्रसार यात्रा को जाता है। पहले से यह मालवा प्रांत पिछड़ा इलाका था परंतु गुरु जी की बख्शीश से इस पूरे प्रांत में सबसे अधिक गुरुद्वारे श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की स्मृति में सुशोभित है। सिक्खी का प्रचार-प्रसार वर्तमान समय में इस प्रांत मालवा में सर्वाधिक है।
इस स्थान से गुरु जी चलकर ग्राम आलोअरख में पहुंचे थे। इस स्थान पर भव्य गुरुद्वारा साहिब ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ की स्मृति में सुशोभित है। यहां गुरुद्वारा मंजी साहिब, माता गुजर कौर और छोटे साहिबजादों की स्मृति में भी सुशोभित किया गया है। इन ग्राम वासियों का ऐसा मानना है कि माता गुजरी जी और छोटे साहिबजादों के अंतिम संस्कार के पश्चात उनकी अस्थियों के फूल इस स्थान पर रखकर सुशोभित किए गए थे।
यह ग्राम आलोअरख, भवानी गढ़ के निकट पटियाला शहर के समीप स्थित है। इस स्थान पर गुरु जी की स्मृति में भव्य गुरुद्वारा साहिब सुशोभित है।