‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ ग्राम धंगेड़ा और ग्राम अगोल से चलकर ग्राम रोहटा में पधारे थे। यह ग्राम रोहटा, ग्राम अगोल से 12 किलोमीटर दूरी पर और पटियाला से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर एवं शहर नाभा से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
इस ग्राम के बाहर एक सुंदर-रमणीय स्थान पर गुरु जी के सेवादारों ने गुरु जी के निवास के लिए उत्तम व्यवस्था की थी। इस धर्म प्रचार-प्रसार दौरे में गुरु जी के साथ हमेशा 300 की संख्या में सिख मौजूद रहते थे एवं आसपास के इलाकों के सिख भी आपसे इस यात्रा में जुड़ते जाते थे। गुरु जी के साथ इन सभी संगत के लिए भी रहने की व्यवस्था की गई थी। आसपास के सभी स्थानों पर तंबू लगाने की व्यवस्था की गई थी। दीवान सजाये गये थे एवं भजन-बंदगी करने हेतु सर्वोत्तम व्यवस्था की गई थी। उस समय सभी प्रबंधों की समुचित व्यवस्था कर ली गई थी।
शाम को गुरु जी ने जानना चाहा कि इस ग्राम में कोई गुरु नानक नाम लेवा सिख निवास करता है क्या? उस ग्राम के चरवाहों ने जानकारी दी कि गुरु जी इस ग्राम में झंडा नामक एक सिख रहता है, जो कि गुरबाणी का कीर्तन कर आसपास की संगत को नाम-बाणी से जोड़ कर रखता है। गुरु साहिब जी ने भाई झंडा जी को सूचित कर अपने पास बुलाया था, भाई झंडा जी गुरु जी की सेवा में तुरंत हाजिर हुए थे। भाई झंडा जी ने समर्पण के भाव से गुरु जी की सेवा की थी। भाई झंडा जी की सेवा से गुरु साहिब जी अत्यंत प्रसन्न हुए थे।
जब गुरु जी को ज्ञात हुआ कि भाई झंडा जी बहुत ही उत्तम कीर्तन करते हैं तो गुरु जी ने भाई झंडा जी को मान देकर और सम्मान पूर्वक दीवान में कीर्तन की हाजिरी भी लगाई थी। दूसरे दिन भाई झंडा जी के साथ कुछ प्रमुख सिखों ने मिलकर आसपास के इलाकों में श्री गुरु नानक देव साहिब जी की वाणी का प्रचार-प्रसार भी किया था। साथ ही सभी आसपास की संगत को सूचित किया था कि ‘श्री गुरु नानक देव साहिब जी’ की नौवीं ज्योत ‘श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी’ इस स्थान पर पधारे हैं। गुरु साहिब जी ने लोगों के दुख ही दूर नहीं किए अपितु लोगों को नाम-वाणी से जोड़ने का अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य भी किया था।
जब गुरु जी इस ग्राम से प्रस्थान कर गए तो जिस स्थान पर गुरु जी विराजमान थे उस स्थान पर स्थानीय जुलाहा समुदाय के ग्राम वासियों ने एक ऊंचे चबूतरे का निर्माण कर दिया था। साथ ही इस स्थान पर सेवा प्रारंभ कर दी थी। पश्चात वर्तमान समय के सन् 2020 ई. के समय से यदि हम 100 वर्ष पूर्व का इतिहास अवलोकित करते हैं तो इस स्थान पर महाराजा हीरा सिंह और महाराजा रिपुदमन सिंह जी ने 200 बीघा जमीन को इस गुरुद्वारे के नाम पर करवाया था और गुरुद्वारे साहिब की उसारी (निर्माण) स्वयं की देखरेख में करवाया था।
वर्तमान समय में इस विलोभनीय, ऐतिहासिक गुरुद्वारे में नित्य-प्रतिदिन आसा जी की वार का कीर्तन किया जाता है| साथ ही हुकुमनामा साहिब की कथा से उपस्थित संगत को निहाल किया जाता है। आसपास के इलाके की संगत इस गुरुद्वारा साहिब में हाजिरी लगाती है। इस स्थान पर स्थानिय बुजुर्गों से वार्तालाप हुआ तो ज्ञात हुआ कि इस स्थान पर गुरु जी की बहुत कृपा है। संगत खुशहाल (चढ़दी कला) में हैं और गुरबाणी के साथ जुड़कर गुरबाणी के उपदेशों को ग्रहण कर अपना जीवन सफल कर रही हैं।
वर्तमान समय में इस स्थान पर भव्य गुरुद्वारा पातशाही नौवीं ग्राम रोहटा सुशोभित है।